‘इंडक्‍शन’ अंगीठी, ‘गैस’ की अंगीठी और मिट्टी के चूल्‍हे पर रसोई बनाते समय ध्‍यान में आए सूत्र

आहार एवं आचार के संबंध में अद्वितीय शोधकार्य करनेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय

‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ के आहार एवं आचार के संदर्भ में किए गए अद्वितीय शोधकार्य की लेखमाला के संबंध में…

     समाज को अध्‍यात्‍मशास्‍त्र समझना सरल हो; इसके लिए ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा किया जा रहा नवीनतापूर्ण और अद्वितीय शोधकार्य शास्‍त्रीय भाषा में ‘सनातन प्रभात’ के नियतकालिकों में प्रकाशित हो रहा है । इसमें यज्ञयाग, पूजा, विविध प्रकार की आध्‍यात्मिक विधियां, संगीत, कला आदि विषय सम्‍मिलित हैं ।

     ‘अन्‍न पूर्ण ब्रह्म होता है !’ अन्‍न हमारे जीवन का अभिन्‍न अंग है । इसके अनुसार अन्‍न का अर्थात नित्‍य जीवन में हम जो आहार ग्रहण करते हैं, उसका हमारे जीवन पर विशेष परिणाम होता है । इसलिए ‘सत्त्व, रज और तमोगुणी अन्‍न ग्रहण करने पर उसका हमारी देह पर क्‍या परिणाम होता है’, साथ ही अन्‍नपदार्थ खरीदना, उन्‍हें काटना, पकाना और उससे विविध पदार्थ बनाना, इन सभी प्रक्रियाआें का उस अन्‍नपदार्थ पर क्‍या परिणाम होता है ?’ ‘आहार एवं आचार’ के संदर्भ में किया गया अद्वितीय शोधकार्य समाज तक पहुंचाने हेतु आज से उसे ‘सनातन प्रभात’ में लेख के रूप में प्रकाशित किया जानेवाला है । साथ ही आनेवाले आपातकाल में अन्‍नपदार्थों का संग्रह करना और उन्‍हें पकाने के संदर्भ में ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ ने वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से जितना शोध किया जा सके, उतना करने पर अधिक बल दिया है; क्‍योंकि वह समय की मांग है । इस लेखमाला से शोधकार्य से संबंधित कुछ विशेषताआें पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है । हिन्‍दुुत्‍वनिष्‍ठों, धर्मप्रेमियों, विज्ञापनदाताआें, अर्पणदाताआें और पाठकों को इस लेखमाला से निश्‍चितरूप से लाभ मिलेगा !

– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले, संस्‍थापक, सनातन संस्‍था.

श्री. ऋत्‍विज ढवण

     ‘मनुष्‍य जहां विज्ञान का उदात्तीकरण कर रहा है, उसी समय अनेक पारंपरिक और हमारे पूर्वजों द्वारा दी गई समृद्ध विरासत नष्‍ट होने की स्‍थिति में है । उनमें से एक है मिट्टी का चूल्‍हा ! अनुमानित ३ दशक पूर्व भी पूरे भारत में मिट्टी के चूल्‍हे पर ही भोजन बनाया जाता था; किंतु अब उसका स्‍थान ‘गैस’ की अंगीठी और उसके उपरांत ‘इंडक्‍शन’ अंगीठी ने लिया है । औद्योगिक क्रांति से ‘मिट्टी के चूल्‍हे कब घर से बाहर हुए ?’, यह ज्ञात ही नहीं हो पाया । प्रकृति ने लाखों वर्षों से वृक्षों के माध्‍यम से वातावरण में व्‍याप्‍त ‘कार्बन’ का संग्रह भूमि में किया था; परंतु ईंधन के नाम पर मनुष्‍य ने उस ‘कार्बन’ को पुनः वातावरण में प्रवाहित कर दिया । हमारे नित्‍य उपयोगवाला ‘गैस’ भूमि से तेल निकालते समय उस पर प्रक्रिया कर प्राप्‍त किया जाता है ।‘इंडक्‍शन’ के लिए आवश्‍यक बिजली भी भूमि से ही निकाले जानेवाले कोयले से बनती है । इससे ‘प्रकृति को हानि पहुंचाकर किया गया कृत्‍य असात्त्विक है’, ऐसा प्रतीत होता है । ४.९.२०२० को ‘इंडक्‍शन’ अंगीठी, ‘गैस’ की अंगीठी और मिट्टी के चूल्‍हे पर अन्‍न पकाने के प्रयोग में ध्‍यान रखने योग्‍य सूत्र आगे दिए गए हैं –

१. ‘इंडक्‍शन’ अंगीठी

     ‘इंडक्‍शन’ अंगीठी चुंबकीय प्रवर्तनों द्वारा अन्‍न को गरम करती है । उसके कारण अन्‍न तुरंत गरम होता है । चुंबकीय प्रवर्तनों द्वारा अन्‍न पकाते समय बरतन का विशिष्‍ट भाग ही गरम होता है और उसी पर पूरा भोजन पकाया जाता है ।

१ अ. ‘इंडक्‍शन’ अंगीठी पर अन्‍न पकाते समय प्रतीत सूत्र

१. ‘इंडक्‍शन’ अंगीठी पर भोजन बनाने हेतु अंगीठी निकालते समय उसे हाथ में लेते ही मन में विचार बढने लगे ।

२. रसोई बनाते समय मन में विचार बहुत बढे और उसके कारण बडी मात्रा में मन अस्‍थिर ही होता रहा ।

३. चावल पकाते समय पानी में बहुत झाग आ रहा था और चावल भी बहुत शीघ्र पक गए ।

४. रसोई बनाते समय बरतन गरम न होकर केवल अंदर का अन्‍न ही गर्म हो रहा था । प्राकृतिक दृष्‍टि से पहले बरतन गरम होकर उसके उपरांत अन्‍न गरम होने की प्रक्रिया ‘इंडक्‍शन’ में नहीं होती ।

२. ‘गैस’ की अंगीठी

     ‘गैस’ की अंगीठी पर अन्‍न पकाते समय ‘गैस’ से नाइट्रोजन ऑक्‍साइड’, ‘नाइट्रोजन डाइऑक्‍साइड’, साथ ही ‘कार्बन मोनोऑक्‍साइड’ और ‘फॉर्मेल्‍डिहाइड’ वायु का उत्‍सर्जन होता है, जिसका छोटे बच्‍चों पर बहुत परिणाम होता है । ऐसी दूषित वायु के कारण छोटे बच्‍चों में दमा और अन्‍य श्‍वसनविकार होने की संभावना बढती है । ऐसे वातावरण में बच्‍चों का बुध्‍यांक (बुद्धि) क्षीण होने की भी संभावना होती है ।

२ अ.  ‘गैस’ की अंगीठी पर अन्‍न पकाते समय प्रतीत सूत्र

१. ‘गैस’ की अंगीठी पर अन्‍न पकाते समय मन में अनेक विचार आने से मन अस्‍थिर हो रहा था ।

२. इस अंगीठी पर अनेक बार रसोई बनाने पर भी इस समय आत्‍मविश्‍वास अल्‍प था ।

३. चावल पकाते समय बरतन के बाजू से पानी में बहुत झाग निकल रहा था ।

३. मिट्टी के चूल्‍हे पर अन्‍न पकाते समय प्रतीत सूत्र 

अ. मिट्टी के चूल्‍हे पर मैं पहली बार रसोई बना रहा था; इसलिए २ सहसाधिकाएं मुझे ‘चूल्‍हा कैसे सुलगाया (जलाया) जाता है ?’, यह दिखा रही थीं । अनेक बार उनके द्वारा बताए जा रहे सूत्रों से भी घबराए बिना मैं उन सूचनाआें को एकाग्रता से ग्रहण कर पाया ।

आ. इस समय रसोई बनाते समय मन शांत रहा । मेरे मन में व्‍याप्‍त अन्‍य विचारों की मात्रा भी अल्‍प हुई । रसोई बन जाने के उपरांत भी उस अन्‍न की ओर देखकर मन के विचार अल्‍प होते प्रतीत हुए ।

इ. चूल्‍हे पर पहली बार रसोई बनाते हुए भी मुझे आत्‍मविश्‍वास लग रहा था ।

ई. पकाए गए पदार्थ की ओर केवल देखकर ही, ‘यह पदार्थ चूल्‍हे पर बनाया गया है’, यह ध्‍यान में आ रहा था ।

उ. चावल पकाते समय प्राकृतिक रूप से उबलते हुए पानी में जैसे चावल पकते हैं, चावल वैसे ही पक रहे थे ।

ऊ. अन्‍न पकाते समय उस अन्‍न की ओर देखकर ही भाव जागृत हो रहा था ।’

– श्री. ऋत्‍विज ढवण (‘हॉटेल मैनेजमेंट’ विषय का छात्र), महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (४.९.२०२०)