मोहनदास गांधी का नोबेल शांति पुरस्कार ५ बार अस्वीकार किया गया

  • गांधीवाद के लिए इससे बडी पराजय और क्या हो सकती है ? हिन्दुत्वनिष्ठ और अनेक क्रांतिकारिययों का आरंभ से ही कहना है कि गांधी की अहिंसा का सिद्धांत तथाकथित, कुटिल और एकतरफा है, नोबेल समिति ने इसे ही स्वीकारा है !
  • यह सिद्ध करता है कि गांधी की अहिंसा का तथाकथित सिद्धांत दुनिया को स्वीकार्य नहीं था और उन्होंने समय-समय पर इसे अस्वीकार किया ! कांग्रेस और गांधीवादियों के लिए इससे अधिक अपमानजनक और क्या हो सकता है ?
  • गांधी को नोबेल पुरस्कार दिलाने के लिए अंग्रेज प्रयत्न कर सकते थे; किंतु उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया । यहां तक कि अंग्रेजों ने गांधी की तथाकथित अहिंसा को भी स्वीकारोक्ति नहीं दी; क्योंकि उन्होंने इसे हिन्दुओं के विरुद्ध एक हथियार के रूप में भी प्रयोग किया, इससे यह विदित होता है !

स्टॉकहोम (स्वीडन) – मोहनदास गांधी को वर्ष १९३७, १९३८, १९३९, १९४७ और अंततः १९४८ में पांचवीं बार विश्व के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, किंतु अस्वीकार कर दिया गया । स्वीडन की १६ वर्षीय युवती ग्रेटा थनबर्ग को इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है और वर्तमान में यह विश्व में सबसे अधिक चर्चित उम्मीदवार है । इसीलिए गांधी के नोबेल पुरस्कार का विषय एक बार पुन: चर्चा में है ।

मोहनदास गांधी को ५ बार नोबेल पुरस्कार से वंचित करने के कारण

१. पश्चिमी संस्कृति में गांधीवादी विचारों का कोई स्थान नहीं है, ऐसी रिपोर्ट की गई है

वर्ष १९३७ में प्रा. वॉप्स मुलर को गांधी के योगदान पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था । उन्होंने इस आशय की एक रिपोर्ट प्रस्तुत की कि पश्चिमी संस्कृति में गांधी के विचारों का कोई स्थान नहीं है । इसी कारण वर्ष १९३७ का नोबेल पुरस्कार गांधी को नहीं मिल सका, ऐसा उनके समर्थकों ने दावा किया है ।

२. इस बात का डर है कि गांधी का आंदोलन किसी भी समय हिंसक रूप ले सकता है !

इसके उपरांत १९३८ और १९३९ में, नोबेल समिति ने गांधी पर इसी तरह की रिपोर्ट जारी की, फलस्वरूप गांधी का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए अस्वीकार कर दिया गया था । रिपोर्ट में उस समय कहा गया था कि गांधी का आंदोलन किसी भी समय हिंसा को प्रज्वलित कर सकता है ।

३. भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण ५ में से ३ सदस्यों का मतदान गांधी के विरुद्ध !

गांधी को वर्ष १९४७ में चौथी बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था; किंतु उस समय भी नोबेल समिति के ५ में से ३ सदस्यों ने गांधी के विरुद्ध मतदान किया और गांधी को नोबेल पुरस्कार देने का प्रस्ताव बहुमत से रद्द हो गया । इसके विरुद्ध मतदान करनेवाले सदस्यों ने भारत-पाकिस्तान विभाजन को इसका कारण बताया ।

४. मरणोपरांत नोबेल पुरस्कार दिए जाने की परंपरा न होने के कारण अस्वीकार !

१९४८ में गांधी की मृत्यु के उपरांत उन्हें पांचवीं बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था; किंतु मरणोपरांत पुरस्कार देने की परंपरा न होने के कारण नहीं दिया गया । नोबेल समिति पहली बार इस तरह के पुरस्कार पर विचार कर रही थी; किंतु पुरस्कार देनेवाली संस्था स्वीडिश फाऊंडेशन ने स्वीकारोक्ति नहीं दी । इसलिए अंतत: गांधी को पुरस्कार से वंचित रखा गया ।