अध्ययन की अपेक्षा मानसिकता का महत्त्व अधिक है । किसी व्यक्ति का किसी विषय में अच्छा अध्ययन है; पर उसकी मानसिकता ठीक नहीं होगी, तो वह उस ज्ञान का दुरुपयोग ही करेगा । इसी दृष्टि से, मुसलमान विद्यार्थियों को भारतीय प्रशासनिक सेवाआें में भरती होने के लिए छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण देनेवाली ‘जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ नामक संस्था की ओर देखना चाहिए । यह संस्था विश्व में इस्लाम का प्रसार करने की नीति पर कार्य करती है । भारत सरकार ने जाकिर नाइक की जिस ‘इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन’ को प्रतिबंधित किया है, उसका भी ‘जकात फाउंडेशन’ से निकट का संबंध है । यदि आतंकवादियों से संबंधित कोई संस्था प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति देकर मुसलमान विद्यार्थियों को भारतीय प्रशासनिक सेवाआें में (सिविल सेवाआें में) प्रवेश दिलाने में सहयोग करती है और इस विषय में किसी के मन में शंका उत्पन्न होती है, तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता ।
‘जकात फाउंडेशन’ वर्ष २००९ से केंद्रीय लोकसेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के इच्छुक मुसलमान प्रतियोगियों के लिए बडी धनराशि खर्च कर रही है । अगस्त २०१९ की भारतीय प्रशासनिक सेवाआें का परीक्षाफल घोषित हुआ । इसमें, विविध प्रशासनिक सेवाआें की परीक्षा में सफल हुए कुल ८२९ लोगों में ४२ मुसलमान हैं । इन ४२ मुसलमानों में ‘जकात फाउंडेशन’ से संबंधित २७ लोग हैं । क्या हम कह सकते हैं कि ‘आतंकवादियों से संबंधित संस्था से सहायता लेनेवाले विद्यार्थियों में देशप्रेम होगा ?’ इसके विपरीत, ऐसे संगठनों से प्रशिक्षित विद्यार्थियों से भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार की संभावना ही अधिक रहती है । जकात फाउंडेशन के सहारे भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में घुसा पहला कश्मीरी युवक शाह फैजल इसका उदाहरण है । फैजल ने सरकारी पद पर रहते हुए अलगाववाद को बढावा देने का काम किया । अनुच्छेद ३७० हटने से पहले उसने कहा था, ‘यदि यह अनुच्छेद हटाया गया, तो कश्मीर का भारत से संबंध समाप्त हो जाएगा ।’ ये महाशय, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यालय में विशेष अधिकारी के रूप में मुसलमानों को सुविधाएं दिलाने में अग्रणी थे । मुसलमानों को धर्म के आधार पर सुविधाएं देने की सिफारिश करनेवाली सच्चर समिति में वे प्रभारी अधिकारी थे । यही डॉ. जफर महमूद ने सउदी अरब की एक समाचार वाहिनी को दी भेंटवार्ता में धर्म-परिवर्तन को उचित ठहरानेवाली बात कही थी । उनका कहना था, ‘सब हिन्दुआें को इस्लाम में धर्मांतरित करना चाहिए । क्योंकि, ऐसा नहीं किया गया, तो गैरमुसलमान मरने के बाद नरक की आग में जलते रहेंगे ।’ राममंदिर प्रकरण में इन्हीं डॉ. महमूद ने कहा था कि ‘मुसलमानों की ८ मांगें मान ली जाएंगी, तो मैं राममंदिर निर्माण का समर्थन करूंगा ।’ ये मांगें थीं, ‘मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में संसद में प्रतिनिधित्व मिले । कोई व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों के लिए पकडा गया और आगे न्यायालय ने उसे निर्दोष छोडा, तो सरकार उसे हानिभरपाई के रूप में ५० लाख रुपए दे । यह पैसा, उस व्यक्ति को अनुचित ढंग से पकडनेवाले कर्मचारियों के वेतन, भविष्यनिर्वाह निधि आदि से वसूल किया जाए ।’ ऐसी मांगों के कारण ही इस ‘जकात’ संस्था का राष्ट्र और हिन्दू धर्म विरोधी चेहरा उजागर होता है । इस संस्था ने नागरिकता संशोधन विधेयक का भी विरोध किया था । जो संस्था भारत के लिए हितकारी बातों का विरोध करती हो, उससे सहायताप्राप्त विद्यार्थी जब भारत के प्रशासनतंत्र का अंग बनेंगे, तो क्या वे देशहित हेतु कार्य करेंगे ? इसीलिए, ‘जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ की जांच की मांग तेज हो रही है । ‘मानुषी’ जालस्थान की संपादिका मधुपूर्णिमा किश्वर ने इस विषय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है । इस पत्र में उन्होंने यह भी मांग की है कि ‘जकात’ के मार्गदर्शन से भारतीय प्रशासनिक सेवाआें में महत्त्व के पदों पर बैठे मुसलमानों की जांच होने तक उन्हें पद से दूर रखा जाए । जकात जैसी संस्थाआें के माध्यम से प्रशासन का इस्लामीकरण हो रहा है क्या, यह जानना आवश्यक है ।
गुणवत्ता जांच की जाए !
इस्लाम में नमाज के पश्चात दूसरा स्थान ‘जकात’ का होता है । ‘जकात’ का अर्थ है, मुसलमान व्यक्ति का धार्मिक कर्तव्य के रूप में धन दान करना । ‘मदीना ट्रस्ट’ यह ‘जकात फाउंडेशन’ में भागीदार है । यह ट्रस्ट भी भारतविरोधी गतिविधियों के लिए जानी जाती है । लंदन स्थित ‘मदीना ट्रस्ट’ की ओर से जकात फाउंडेशन को वर्ष २०१८-१९ में १३ लाख ६४ हजार ६९४ रुपए मिले थे । इन पैसों से पोसे गए विद्यार्थियों में क्या रत्तीभर भी राष्ट्रभक्ति हो सकती है ? इसीलिए, सरकार को इस विषय में ध्यान देना चाहिए और ‘जकात’ तथा उससे निकले तथा प्रशासन में घुसे लोगों की गुणवत्ता जांच होनी चाहिए ।
अल्पसंख्यकों के विकास के लिए सरकार प्रतिवर्ष करोडों रुपए खर्च करती है । वास्तविक, ‘धर्मनिरपेक्ष’ सरकार से यह अपेक्षित नहीं है कि वह किसी की इसलिए आर्थिक सहायता करे कि लाभार्थी अल्पसंख्यक है । फिर भी, अल्पसंख्यकों को पैसे बांटे जाते हैं, तो उसका उपयोग उचित कार्य के लिए हो रहा है न, यह देखना सरकार का दायित्व बनता है । वास्तविक, प्रशासन में उच्च पद पर बैठे अधिकारी से अपेक्षा रहती है कि वह सबसे पहले राष्ट्र का विचार करे । जकात से सहायताप्राप्त विद्यार्थी क्या ‘राष्ट्र प्रथम’, इस नीति का अनुसरण करेंगे ? इसीलिए, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बडे संकट के रूप में ‘जकात फाउंडेशन’ की ओर देखना चाहिए ।
‘सरकारें आती-जाती रहती हैं, किंतु प्रशासन स्थायी रहता है । यह प्रशासन ही यदि देशविरोधी मानसिकतावाले लोगों के हाथ में चला गया, तो उसका राष्ट्रहित पर बुरा प्रभाव पडेगा । इसीलिए, प्रशासन का सूत्र जिनके हाथों में है, वे राष्ट्र का हित साध रहे हैं अथवा अहित कर रहे हैं, इस बात की जांच समय-समय पर होती रहनी चाहिए । अन्यथा, ऐसे लोग इस्लाम के अनुसार हिन्दू जनता से जिजिया कर वसूलने लगेंगे !