पुरातत्व विभाग द्वारा अवशेषों का निरीक्षण
काशी विश्वनाथ मंदिर को तोडकर वहां औरंगजेब ने मस्जिद बनाई, यह इतिहास है और उसके प्रमाण भी उपलब्ध हैं । अतः अब सरकार को और न्यायालय को भी इन प्रमाणों का संज्ञान लेकर मंदिर का मूल स्थान हिन्दुओं को सौंपना चाहिए !
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – यहां के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के पास की जा रही खुदाई में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं । बताया जा रहा है कि ये अवशेष १५ वीं अथवा १६ वीं शताब्दी के हैं । मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर को तोडकर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी । बताया जा रहा है कि ये अवशेष इसी मंदिर के हैं । २ वर्ष पूर्व भी ज्ञानवापी मस्जिद के पूर्वी भाग में स्थित दीवार को हटाते समय भी अवशेष मिले थे । अब पुनः एक बार इन अवशेषों के मिलने से पुनः एक बार काशी और मथुरा के मंदिरों को मुसलमानों के नियंत्रण में मुक्त करने की मांग को बल मिला है ।
१. यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष योजना के अंतर्गत महामार्ग के काम के समय जेसीबी की सहायता से खुदाई की जा रही थी, तब ये अवशेष मिले हैं । इसके पश्चात खुदाई रोकी गई । यहां एक सुरंग भी दिखाई दी है; परंतु इसकी पडताल न होने के कारण यह सुरंग है अथवा अन्य कुछ, यह अभीतक स्पष्ट नहीं हुआ है । अवशेष मिलने के पश्चात पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने यहां आकर इन अवशेषों को अपने नियंत्रण में ले लिया है । उन्होंने इस स्थान के छायाचित्र भी खींचे । उन्होंने इस संदर्भ में कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया; परंतु उन्होंने मंदिर प्रशासन को इन अवशेषों का ब्यौरा देने का आश्वासन दिया है । इसमें क्षेत्रीय अधिकारी सुभाष यादव और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक मारुति तिवारी का समावेश था ।
२. मंदिर परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी के अपारनाथ मठ के पास चल रही खुदाई के समय ये अवशेष मिले हैं । प्राप्त अवशेषोंपर कलाकारी की गई है । इसमें कलश और कमल का फूल दिखाई दिया है । इस संदर्भ में मंदिर प्रशासन द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है ।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
काशी विश्वनाथ मंदिर १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है । यह अनादि काल से यहां स्थित है । यह स्थान शिवजी एवं पार्वतीजी का होने से इसे आदिलिंग के रूप में पहला लिंग माना गया है । उपनिषद और महाभारत में भी इसका उल्लेख है । ईसा पूर्व ११वीं शताब्दी में राजा हरिश्चंद्र ने इस मंदिर का जीर्णाेद्धार किया था । उसके उपरांत सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णाेद्धार किया था । वर्ष ११९४ में मोहम्मद घोरी ने इस मंदिर को लूटकर तोड दिया था । उसके पश्चात उसका पुनर्निर्माण किया गया । वर्ष १४४७ में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इस मंदिर को पुनः तोडा । १८ अप्रैल १६६९ को औरंगजेब के आदेशपर मंदिर को पुनः तोडकर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई । कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में औरंगजेब द्वारा दिए गए आदेश की मूल प्रति है । इसी समय औरंगजेब के आदेश पर काशी के सहस्रों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाया गया था । कहा जाता है कि आज के उत्तर प्रदेश के ९० प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण थे ।