आतंकवादियों से घबराकर हिन्दुआें ने धर्म-परिवर्तन किया होता, तो पैतृक संपत्ति को भोगते हुए वे विलासपूर्ण जीवनयापन कर रहे होते; परंतु स्वधर्म की रक्षा हेतु उन्होंने घर-द्वार सहित अपनी चल-अचल संपत्ति का त्याग कर विस्थापितों का यातनामय जीवन स्वीकारा !
जन्मभूमि कश्मीर के लिए २३ वर्ष अविरत लडनेवाले कश्मीरी हिन्दू !
कश्मीरी हिन्दुआें को १९ जनवरी १९९० में अपने ही घरों से खदेड दिया गया । कश्मीर से बेघर हुए साढे चार लाख हिन्दुओं के सुख-संपन्न घरों को आतंकवादियों ने नष्ट किया और कौडी के मोल में बेच दिया । हिन्दुओं के बाग-बगीचे एवं जमीनें भी हडपी गईं । हमारे ही भारतीय बंधु यह सब होते हुए शांति से देखते रहे । ऐसी परिस्थिति का धैर्यपूर्वक सामना कर इन सभी ने गत २३ वर्ष जन्मभूमि के लिए यह संघर्ष सफलतापूर्वक जारी रखने का कठिन कार्य किया है ।
कश्मीरी हिन्दुआें का कहना है कि ‘‘१९ जनवरी १९९० का विस्थापन पहला नहीं, अपितु सातवां था । भारत के प्रवेशद्वार पर ही रहने से भारत पर जब भी आक्रमण हुआ, उन्हें ही उसका सामना करना पडा । हम इस विश्वास से लडे कि संपूर्ण भारत हमारे साथ है; परंतु कुछ समय पश्चात ज्ञात हुआ कि शेष भारतीयों के ध्यान में इस बलिदान का महत्त्व कभी आया ही नहीं ।’’ देश द्वारा की गई उपेक्षा से व्यथित होने पर भी पंजाब के सिख गुरुआें ने उनकी रक्षा और महाराष्ट्र ने उनकी सहायता की इसलिए पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों के प्रति कश्मीरियों के मन में आदर है ।