‘श्रीराम मंदिर का पुनर्निर्माण होने के पश्चात मंदिर की पूजा-अर्चना, धार्मिक विधियों आदि का तथा धर्मनियमों का पालन यदि बुद्धिजीवियों और आधुनिकतावादियों के दबाव में आकर नहीं हुआ, तो हिन्दू पुनश्च व्यक्तिगत और राष्ट्रीय दुःखों से त्रस्त हो सकते हैं । ऐसा हुआ तो श्रीराम एवं देवता क्या उनकी ओर ध्यान देंगे ?’
‘व्यक्ति स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार यह किसी प्राणी की विशेषता हो सकती है; परंतु मनुष्य की नहीं ! ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्रों का अनुकरण करना’ आदि करनेवालों को ही ‘मनुष्य’ कह सकते हैं !’
विश्व की सभी भाषाआें की तुलना में केवल संस्कृत भाषा के उच्चारण सभी स्थानों पर समान !
‘जिस प्रकार लिखते समय अक्षर का रूप महत्त्वपूर्ण होता है; उसी प्रकार उच्चारण करते समय उसका उच्चारण भी महत्त्वपूर्ण होता है । विश्व की सभी भाषाआें की तुलना में केवल संस्कृत भाषा में इसे महत्त्व दिया गया है । यही कारण है कि भारत में सभी जगह वेदोच्चार एक समान और प्रभावी हैं ।
‘जो ऋषि-मुनि साक्षात ईश्वर का शोध कर पाए, उनके लिए वर्तमान वैज्ञानिकों और शास्त्रज्ञों की खोज खिलौने समान लगती होगी !’
‘पाश्चात्य संस्कृति शरीर, मन एवं बुद्धि को सुख देने के लिए प्रयत्नरत है तथा हिन्दू संस्कृति ईश्वरप्राप्ति का मार्ग दिखाती है !’
‘जिज्ञासा न होने के कारण बुद्धिजीवी स्वयं के सीमित ज्ञान में (अर्थात अज्ञान में) रहते हैं । इसीलिए उन्हें उसके आगे का ज्ञान नहीं मिलता ।’
‘पूर्व में लोगों को लगता था कि ‘हिन्दू राष्ट्र’ एक स्वप्न है; ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना असंभव है’ । परंतु अब अधिकतर लोगों को लगता है कि ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अवश्य होगी !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले