आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्‍यक पूर्वतैयारी

आपातकाल में अखिल मानवजाति की प्राणरक्षा हेतु आवश्‍यक तैयारी
करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आपातकाल संबंधी इस लेखमाला में अभी तक हमने ‘भोजन के अभाव में भूखे न रहना पडे, इसके लिए क्‍या करें’, साथ ही अनाज का रोपण, गोपालन इत्‍यादि विषय देखे । मनुष्‍य पानी के बिना नहीं जी सकता और बिजली के बिना जीवन जीने की कल्‍पना भी नहीं कर सकता । इसलिए पानी की व्‍यवस्‍था करना, उसे संग्रहित करने और उसके शुद्धीकरण की पद्धति, साथ ही बिजली के वैकल्‍पिक साधन, इन विषयों की जानकारी इस लेख में दी है । लेखांक ५


१. आपातकाल की दृष्‍टि से शारीरिक स्‍तर पर आवश्‍यक विभिन्‍न तैयारियां !

१ आ. जल के अभाव में कष्‍ट से बचने के लिए ये करें !

१ आ १. आपातकाल में जलसंकट अनुभव न हो, इसके लिए कुआं अभी से खुदवाना और यह संभव न हो, तब बोरवेल लगवाना कुछ गांवों, नगरों और महानगरों में पंचायत, नगरपालिका आदि बांध अथवा जलाशय का पानी नल से पहुंचाते हैं । आपातकाल में अनेक दिन बिजली न रहना, अतिवृष्‍टि से बांध टूटना, जलाशय के क्षेत्र में पर्याप्‍त वर्षा न होना आदि कारणों से नल के माध्‍यम से होनेवाली जलापूर्ति रुक सकती है । ऐसी स्‍थिति में शासन कभी-कभी ‘टैंकर’ से पानी पहुंचाता है; परंतु आपातकाल में ईंधन के अभाव में ‘टैंकर’ से परिवहन भी ठप्‍प हो सकता है । अकाल (सूखा) में गांव के पास से बहनेवाली नदियां सूख सकती हैं । इस प्रकार की अनेक समस्‍याआें का विचार कर, यथाशीघ्र घर के पास, जहां भूगर्भीय पानी लग सकता है, वहां कुआं खुदवा लें और यह संभव न हो, तब बोरवेल लगवा लें । बोरवेल की अपेक्षा कुआं बनवाना अधिक उचित रहेगा; क्‍योंकि आपातकाल में बोरवेल सुधरवाने के लिए आवश्‍यक उपकरण (स्‍पेयर पार्ट), मिस्‍त्री (मेकैनिक) आदि मिलना कठिन होता है । कुआं खुदवाने अथवा बोरवेल के लिए बोरिंग करवाने से पहले किसी जानकार से भूमि के नीचे पानी लगने के विषय में पूछ लें । भूमि में पानी लगनेवाला हो, तभी खुदाई करवाएं । कुएं अथवा बोरवेल में पर्याप्‍त पानी लगने पर, उसका उपयोग खेती, उद्यानिकी (बागबानी) आदि के लिए कर सकते हैं ।

१ आ १ अ. भूगर्भ का जलस्‍तर बढाने के लिए विविध उपाय करना : वर्षा अपर्याप्‍त होना, भूमि से जलदोहन अधिक होना आदि कारणों से भूगर्भ का जलस्‍तर बहुत नीचे चला जाता है । आगे बताए प्रयत्न से यह स्‍तर बढने पर परिसर के कुएं, नलकूप आदि का भी जलस्‍तर बढता है । आगे बताए अनुसार जहां वर्षा का पानी रुकता हो, ऐसे जलग्रहणक्षेत्रों में गांव के सब लोग मिलकर बांध बनाएं तथा नदीपात्र में हल चलाएं । यह करने से पहले शासन से लिखित अनुमति अवश्‍य लें ।

१ आ १ अ १. शासकीय योजनाआें का लाभ लें : गांव के नागरिक निजी स्‍तर पर अथवा सामूहिक रूप से ऐसी योजनाआें से लाभ लेने का प्रयत्न करें; उदा. महाराष्‍ट्र शासन की ओर से राज्‍य में चलाई जा रही ‘पानी रोकें, जलस्‍तर बढाएं’ योजना ।

१ आ १ अ २. बरसाती नालों पर विभिन्‍न स्‍थानों पर छोटे बांध बनाएं !

१ आ १ अ ३. गांव के पास बहनेवाली नदी के पाट में हल चलाना : प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में नदी में मिट्‍टी युक्‍त पानी आता है और मिट्टी के सूक्ष्म कणों (फाइन पार्टीकल्‍स) की परत नदीपात्र (नदी का पाट) की बालू पर जमा हो जाती है । ऐसा अनेक वर्ष होते रहने पर नदी की बालू पर मिट्टी की मोटी परत जम जाती है । इससे, नदी में बहनेवाला अधिकांश पानी बालू से होकर भूमि के भीतर नहीं जा पाता । इस कारण, नदी के परिसर में भूगर्भ का जलस्‍तर प्रतिवर्ष घटता जाता है । यह समस्‍या दूर करने के लिए कुछ गांवों में नदी का पाट जोतने का एक सफल प्रयोग किया गया । इस विषय में अधिक जानकारी आगे दी है ।

अ. नदी के पाट को जोतकर भूगर्भीय जलस्‍तर बढानेवाले गोमई नदी के तट पर बसे गांव के ग्रामीण ! : उपर्युक्‍त घटना ग्राम डांबरखेडा, त. शहादा, जिला नंदुरबार, महाराष्‍ट्र की है । यह गांव गोमई नदी के तट पर बसा है । इस नदी में ४ से ६ महीने पानी रहता है । फिर भी, यहां के कुएं और नलकूपों का जलस्‍तर ५०० से ७०० फुट नीचे चला गया । इस समस्‍या को दूर करने के लिए यहां के ग्रामीणों ने ग्रीष्‍मकाल में सूखी पडी गोमई नदी को ट्रैक्‍टर, लकडी के हल, लोहे के हल आदि से लगभग एक किलोमीटर तक खडे और आडे जोता । इससे वर्षाकाल में नदी में पानी आने पर वह बडी मात्रा में नहीं बहा, अपितु नदी के पाट की भूमि से भीतर पर्याप्‍त मात्रा में अवशोषित हो गया । परिणामस्‍वरूप, केवल २४ घंटे में परिसर के कुएं और बोरवेल का जलस्‍तर ५०० से ७०० फुट से ऊपर उठकर ९० फुट पर आ गया !
तदुपरांत मध्‍य प्रदेश के खेतिया तक के अनेक गांवों के ग्रामीणों ने भी अपने गांव के पास से बहनेवाली गोमई नदी को हल से जोता और वर्षाकाल में बहनेवाले पानी को नदी के पाट की भूमि के भीतर पहुंचाकर भूमि का जलस्‍तर बढाने का सफल प्रयास किया ।’
(संदर्भ : ‘वॉट्‌सएप’ का लेख)

आपातकाल में जलसंकट अनुभव न हो, इसके लिए कुआं अभी से खुदवाएं

१ आ १ आ. कुछ सुझाव

१. जब किसी परिवार की आर्थिक स्‍थिति ऐसी न हो कि वह अकेले कुआं खोदवा सके अथवा नलकूप लगवा सके, तब कुछ परिवार मिलकर यह कार्य कर सकते हैं ।
२. कुएं पर रहट (गडारी) भी लगवा लें । रहट से पानी निकालने का अभ्‍यास करें । रहट की रस्‍सी घिस जाने पर बदलनी पडती है, यह विचार कर, इसके लिए एक अतिरिक्‍त रस्‍सी खरीदकर रखें । यथासंभव कुएं में सौरऊर्जा से चलनेवाला पंप भी लगवा लें । सौर-पंप लगवाने पर भी हाथ से चलनेवाले रहट की व्‍यवस्‍था अवश्‍य करें, अन्‍यथा जिस दिन बादल होंगे, उस दिन सौरपंप नहीं चल पाएगा ।
३. वर्षा आरंभ होने तक पुराने कुएं से पर्याप्‍त पानी न मिलता हो, तब किसी जानकार से पूछकर कुएं को अधिक गहरा कर लें, जिससे वर्षा आरंभ होने तक पर्याप्‍त पानी मिले ।
४. किसी के यहां पहले से बिजली पर चलनेवाला नलकूप हो, तब वह सौरपंप और हैंडपंप भी लगवा ले । नए खुदे कुएं में भी यह व्‍यवस्‍था कर लें ।
५. कुएं और नलकूप का जलस्रोत मानवीय चूकों से दूषित न हो, इस ओर ध्‍यान रखें ।

१ आ २. आपातकाल में परिवार को न्‍यूनतम (कम से कम) १० से १५ दिन पानी मिलता रहे, इतना जल संग्रहित करने की व्‍यवस्‍था करना
आपातकाल में शासकीय जलापूर्ति अनियमित रहना, कुएं अथवा नलकूप में लगा बिजली का पंप बिगडना आदि संभावित समस्‍याआें का विचार कर परिवार को न्‍यूनतम १० से १५ दिन पानी मिलता रहे, इस हेतु जल संग्रहित करने की व्‍यवस्‍था करें; उदा. पानी की टंकी लगवाएं ।
१ आ ३. बिजली के अभाव में घर का जलशोधक यंत्र (वॉटर प्‍युरिफायर) काम नहीं करेगा, यह विचार कर आगे बताई व्‍यवस्‍था करना

१ आ ३ अ. ‘कैण्‍डल फिल्‍टर’ खरीदकर रखना

१ आ ३ आ. पानी स्‍वच्‍छ करने के लिए फिटकरी का उपयोग करना : जब हंडे अथवा मध्‍यम आकार की टंकी में जमा थोडा मटमैला पानी पीने के लिए अथवा भोजन बनाने के लिए लेना हो, तब उसे आगे दिए अनुसार फिटकरी से शुद्ध कर लें ।  फिटकरी का लगभग ३ – ४ सें.मी. लंबा-चौडा टुकडा अथवा नींबू के आकार का टुकडा स्‍वच्‍छ धुले हाथ में लेकर हंडे अथवा टंकी के मटमैले पानी में गोल-गोल घडी की सुईयों की दिशा में २ – ३ बार पश्‍चात उतनी ही बार विरुद्ध दिशा में घुमाएं । ऐसा करने पर ३ – ४ घंटे में उस पानी में घुली मिट्टी तली में बैठने लगेगी । पानी को पूर्णतः स्‍वच्‍छ होने में एक दिन लगता है । पानी स्‍वच्‍छ होने तक उसे न हिलाएं । ऐसा करने से नीचे जमी मिट्टी पुनः ऊपर आती है ।
जब हंडे अथवा टंकी से पानी निकालना हो, तब ऊपर का स्‍वच्‍छ पानी धीरे से दूसरे पात्र में निकाल लें और नीचे का मटमैला पानी पेड-पौधों में डाल दें ।

१ आ ३ इ. पानी छानकर और उबालकर पीना : पीने का पानी टंकी में भरने से पहले उसके मुख पर एक स्‍वच्‍छ धुला मोटा कपडा बांध दें और उससे पानी छान लें । इस पानी का उपयोग भोजन बनाने के लिए कर सकते हैं । पानी छानने के पश्‍चात वह कपडा स्‍वच्‍छ धोकर सुखा लें । इस कपडे का उपयोग केवल पानी छानने के लिए ही करें । छाने हुए पानी में से जितना पीने के लिए लगता है, उतना उबालकर दूसरे बरतन में रख लें ।

१ आ ३ ई. पानी शुद्ध करनेवाली प्रणाली से युक्‍त बोतल का उपयोग करना : इस बोतल में भरा अशुद्ध पानी कुछ समय में पीने योग्‍य शुद्ध हो जाता है । इस प्रकार की बोतल का अधिक उपयोग उस समय होगा जब आपातकाल में अचानक यात्रा करनी पडे अथवा दूसरे गांव में रहना पडे । क्‍योंकि, तब प्रत्‍येक समय पीने योग्‍य शुद्ध पानी उपलब्‍ध नहीं रहेगा । पानी शुद्ध करनेवाली ऐसी बोतलों का मूल्‍य लगभग रु. ५०० अथवा इससे अधिक होता है । ऐसी बोतलें ‘ऑनलाइन’ मिलती हैं ।

१ आ ४. बिजली के अभाव में पानी ठंडा करनेवाले यंत्र कार्य नहीं करेंगे, इस बात का विचार कर पानी ठंडा करने के अन्‍य सरल साधनों का विचार करना

१ आ ४ अ. मिट्टी का कुंडा अथवा घडे का उपयोग करना : ‘गांव के कुछ घरों में पानी ठंडा करने के लिए मिट्टी के कुंडा का उपयोग किया जाता है । घर में कुंडा रखने की व्‍यवस्‍था करने के लिए एक गड्‍ढा खोदकर उसमें कुंडा थोडा तिरछा रखते हैं । यह भूमि की सतह से लगभग एक फुट ऊपर रहना चाहिए । इसे तिरछा गाडने पर उसमें से पानी निकालने और उसे स्‍वच्‍छ करने में सुविधा होती है । पानी ठंडा करने के लिए मिट्टी के घडे का भी उपयोग कर सकते हैं ।

१ आ ४ आ. कांच की बोतल, कलशी अथवा टंकी के चारों ओर भीगा कपडा अथवा टाट लपेटना : कांच की बोतल, कलशी अथवा टंकी में पानी भरकर उसके चारों ओर भीगा हुआ मोटा कपडा कसकर लपेटें । इससे पानी लगभग ३ – ४ घंटे में ठंडा हो जाता है । कपडा सूखने पर उसे पुनः गीला करें । पीने का पानी जब तक ठंडा चाहिए, तब तक बीच-बीच में उस कपडे को गीला करते रहें ।’
– पू. (वैद्य) विनय भावे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१०.१२.२०१९)

१ आ ५. पानी के उपयोग के विषय में कुछ सुझाव

१ आ ५ अ. पानी का उपयोग मितव्‍ययता से करना
१. मुख धोना, स्नान करना, पटिया (फर्श) पोंछना, कपडे धोना, गाडी धोना जैसे काम करते समय जितना आवश्‍यक हो, उतना ही पानी खर्च करने का अभ्‍यास घर के बडे और छोटे सभी सदस्‍य करें ।
२. घर के चारों ओर स्‍थित फुलवारी के लिए अथवा खेती के लिए टपक सिंचन एवं बौछारी सिंचन प्रणालियों का उपयोग करना चाहिए ।
३. ग्रीष्‍मकाल में फुलवारी के पौधे की जड के आसपास सूखी पत्तियां अथवा घास का घेरा बनाएं । ऐसा करनेसे, पौधों को दिए गए पानी का वाष्‍पीकरण तीव्र गति से नहीं होगा और पानी की बचत होगी ।
१ आ ५ आ. वर्षा का पानी टंकी में जमा करना : वर्षाकाल में घर की छत से गिरनेवाले पानी की धार के नीचे टंकी रखकर उसमें पानी जमा करें । ऐसे पानी का उपयोग घर के अनेक कामों के लिए किया जा सकेगा ।

विद्युत आपूर्ति खंडित होने पर वैकल्‍पिक साधनों का विचार करें !

१ इ. विद्युत आपूर्ति खंडित होने पर इन वैकल्‍पिक साधनों का विचार करें ! आपातकाल में विद्युत मंडल की ओर से होनेवाली विद्युत आपूर्ति खंडित होने की संभावना अधिक रहती है । ऐसी स्‍थिति में दीप (लाइट), पंखे आदि विद्युत उपकरण बंद न हों तथा हमारे अन्‍य काम भी होते रहें, इसके लिए आगे बताए विकल्‍पों पर अभी से विचार आरंभ करें । वैकल्‍पिक साधन वही चुनें, जिससे अधिक समय तक बिजली मिले । इन साधनों का उपयोग आपातकाल के उपरांत भी, सदा के लिए होता रहेगा ।

१ इ १ अ. घर की छत पर लगी सौरऊर्जा प्रणाली (रूफ टॉप सोलर पैनल) से विद्युत उत्‍पादन करना : स्‍थानीय विक्रेता सौरऊर्जा (सोलर) से बिजली उत्‍पन्‍न करनेवाले उपकरण लगा देते हैं । इसके लिए अबाध सूर्यप्रकाश से युक्‍त न्‍यूनतम १०० वर्ग फुट क्षेत्र घर की छत पर होना आवश्‍यक है । यहां ‘सोलर पैनल्‍स’ लगाने पर दिनभर बिजली बनती रहती है और बैटरी चार्ज होती है । विद्युत मंडल की विद्युत आपूर्ति खंडित होने पर अथवा बिजली बंद करके भी, इस सौरऊर्जा से घर के दीप, पंखे, फ्रिज आदि उपकरण चलाए जा सकते हैं । यदि सौरऊर्जा प्रणाली अधिक शक्‍तिशाली हो, तो उससे ‘एलइडी बल्‍ब’, टॉर्च, बैटरी से चलनेवाली साइकिल, दोपहिया और चारपहिया वाहन आदि भी चार्ज किए जा सकते हैं । जिनके घर खपरैल अथवा ‘स्‍लैब’ के हैं, वे सौरऊर्जा प्रणाली लगा सकते हैं । जो लोग सदनिका (फ्‍लैट) में रहते हैं, वे सामूहिक रूप से भवन (बिल्‍डिंग) की छत पर यह प्रणाली लगवा सकते हैं ।
सौरऊर्जा प्रणाली से आवश्‍यकता से अधिक बिजली उत्‍पन्‍न होने पर ‘विद्युत वितरण कंपनी’ उसे खरीद लेती है । सौरऊर्जा से विद्युत उत्‍पादन को बढावा देने के लिए सरकार उत्‍पादनकर्ता को अनुदान (सब्‍सिडी) देती है । घरों, दुकानों आदि पर सौरऊर्जा प्रणाली लगाने के लिए अनुदान और छूट देनेवाली योजना उपलब्‍ध है । इस विषय में अधिक जानकारी संबंधित विक्रेता से समझ लें ।

१ इ १ आ. जनित्र (जनरेटर) का उपयोग

१ इ १ इ. हाथ से चलनेवाले जनित्र (हैंड जनरेटर) का उपयोग करना : इससे इतनी ही बिजली उत्‍पन्‍न होती है कि चल-दूरभाष (मोबाइल) की बैटरी प्रभारित हो सके ।

१ इ १ ई. ईंधन से चलनेवाले जनित्र का उपयोग करना : ऐसे जनित्र पेट्रोल, डीजल अथवा गैस से चलते हैं । इनकी विद्युत उत्‍पादन क्षमता कुछ किलोवॉट (१ किलोवॉट = १,००० वाट) होती है ।

१ इ १ उ. विद्युत आपूर्ति अबाधित रखनेवाली प्रणाली [यू.पी.एस. (अनइंटरप्‍टेड पॉवर सप्‍लाई)] लगाना : विद्युत मंडल की ओर से होनेवाली बिजली की आपूर्ति खंडित होने पर यह प्रणाली तुरंत सक्रिय होती है और इसके विद्युत-धारित्र (बैटरी) से विद्युत आपूर्ति निरंतर जारी रहती है । विद्युत मंडल की बिजली आने पर इस प्रणाली का कार्य रुक जाता है और इसका डिस्‍चार्ज हुआ विद्युत-धारित्र (बैटरी) पुनः चार्ज होने लगता है । विद्युत मंडल की बिजली आपूर्ति कुछ घंटों तक खंडित रहने पर यह प्रणाली उपयोगी है ।

१ इ १ ऊ. पवनचक्‍की से विद्युत उत्‍पादन : घरेलू उपयोग के लिए ऊंचे भवन पर जहां वायु वेग से बहती हो, वहां पवनचक्‍की लगाकर उससे उत्‍पन्‍न होनेवाली बिजली को विद्युत-धारित्र में संग्रहित किया जा सकता है । पश्‍चात यह बिजली आवश्‍यकतानुसार उपयोग में लाई जा सकती है । व्‍यावसायिक स्‍तर पर विद्युत उत्‍पादन के लिए पर्वतों पर अथवा खुले पठारों पर पवनचक्‍कियां लगाई जाती हैं ।
सौरऊर्जा की तुलना में पवनचक्‍की से विद्युत उत्‍पादन सीमित होता है । इसलिए पवनचक्‍की से विद्युत उत्‍पादन के विषय में विशेषज्ञों से परामर्श करना चाहिए ।

१ इ १ ए. बिजली से प्रभारित होनेवाले ‘एलइडी बल्‍ब’, विद्युत-धारित्र (बैटरी) आदि उपकरणों का उपयोग करना : पूर्णतः प्रभारित एक ‘एलइडी’ दीप (बल्‍ब), विद्युत-धारित्र, दंडदीप (ट्‍यूबलाइट) आदि वस्‍तुएं कुछ घंटे प्रकाश दे सकती हैं ।                                      (क्रमशः)

(संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्‍यक पूर्वतैयारी’)
(प्रस्‍तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराइट)
‘सनातन भारतीय संस्‍कृति संस्‍था’ के पास सुरक्षित हैं ।)
(यह लेख www.sanatan.org जालस्‍थल (वेबसाइट) पर पढिए ।)