‘हिन्दू धर्म में हस्तक्षेप करना अर्थात धर्मनिरपेक्षता, जबकि इस्लाम धर्म में हस्तक्षेप करना अर्थात अल्पसंख्यकों को दबाना’ यही वर्तमान काल में लोकतंत्र की विकृत व्याख्या हो गई है । सदैव हिन्दुआें के धार्मिक उत्सवों पर टिप्पणी करनेवाले अग्रदूत (अधम) अब मुसलमान संगठनों की धमकी सुनकर मौन क्यों ? क्या अब वे ऐसी धमकियों के विरुद्ध बोलने का साहस करेंगे ?
मुंबई – परिवहन बंदी का औचित्य साधकर महाविकास गठबंधन की सरकार बकरी ईद में कुर्बानी देने में रुकावटें पैदा कर रही है । बकरों को लानेवाले वाहनों को रोका जा रहा है, जिससे त्योहार मनाना कठिन हो गया है । ऐसी बाधाएं खडी करना यदि बंद नहीं किया तो आंदोलन करेंगे, मुंबई के मौलानाआें एवं संगठनों ने शासन को यह धमकी दी है । बकरी ईद की पार्श्वभूमि पर २९ जुलाई को मुंबई के मौलानाआें की हुई ऑनलाईन बैठक में प्रशासन के कार्य पर असंतोष व्यक्त किया गया ।
इस समय ‘ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल’ के मौलाना मसूद दरयाबादी ने कहा, ‘‘मुसलमान विधायक व मंत्रियों पर हमें भरोसा था कि वे प्रशासन पर दबाव डालकर बकरी ईद के लिए सुधारित नियमावली जारी करवाएंगे । उन्होंने प्रयत्न भी किए । ( इस प्रकार कितने हिन्दू लोकप्रतिनिधि धर्माचरण के पक्ष में एकत्र आते हैं ? – संपादक ) स्वयं राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार ने इसकी मध्यस्थता की थी । तब भी मुसलमान समाज को संतोष नहीं हुआ । (यदि ऐसा है तो एक ओर राममंदिर भूमिपूजन का विरोध करना तथा दूसरी ओर ईद के अवसर पर कुर्बानी के लिए मध्यस्थता करना, इस दोहरी नीति को हिन्दू पहचानें ! – संपादक)
अमन समिति के प्रमुख फरीद शेख ने कहा, ‘‘देवनार के कसाई गृह में सामान्यत: अन्य समय नियमित भैंसें काटी जाती हैं; किंतु कुर्बानी के लिए भैंस काटने की अनुमति नहीं है ! यह कैसा नियम है । कांग्रेस के नेता नसीम खान ने कहा, ‘‘कोरोना की पार्श्वभूमि पर कुछ लोगों ने मुसलमान समाज को प्रतीकात्मक कुर्बानी देने का सुझाव दिया हैै; किंतु इस्लाम में प्रतीकात्मक कुर्बानी मान्य नहीं है ।