भारत में मिली भगवान शिवजी की मूर्ति २८ सहस्र ४५० वर्ष प्राचीन अर्थात द्वापरयुग की होने का स्‍पष्‍ट !

इससे ‘हिन्‍दू धर्म कितना प्राचीन है तथा उसके पास कितना विकसित ज्ञान था’, यह बात ध्‍यान में आती है ! भारत के तथाकथित आधुनिकतावादी क्‍या अब तो हिन्‍दू धर्म के प्रति श्रद्धा रखेंगे अथवा अभी भी अपनी बुद्धि ही चलाते रहेंगे ?

नई देहली – भारत में ‘कल्‍प विग्रह’ के नाम से जानी जानेवाली भगवान शिवजी की धातु से बनी मूर्ति विश्‍व में अभी तक मिली अनेक मूर्तियों में सबसे प्राचीन मूर्ति मानी जाती है । यह मूर्ति एक लकडी की पेटी में रखी गई थी । इस पेटी पर तथा उसमें स्‍थित दरारों में जमे जैविक तलछट के संदर्भ में कैलिफोर्निया विश्‍वविद्यालय की प्रयोगशाला में ‘कार्बन डेटिंग’ प्रक्रिया कर उसका जीवनकाल खोजने पर यह मूर्ति २८ सहस्र ४५० वर्ष प्राचीन होने की बात स्‍पष्‍ट हुई । इसका अर्थ यह मूर्ति कलियुग की (वर्तमान में कलियुग का ५ सहस्र १२२ वां वर्ष चल रहा है) नहीं, अपितु उसके द्वापरयुग के होने की बात स्‍पष्‍ट हुई है । प्रसिद्ध पुरातत्‍व विशेषज्ञ के.के. मोहम्‍मद ने ट्‍वीट कर इसकी जानकारी दी है । मोहम्‍मद ने कहा है कि २८ सहस्र ४५० वर्ष पूर्व इजिप्‍त, ग्रीस, मेसोपोटामिया, मोहंजोदाडो-हडप्‍पा संस्‍कृति का भी अस्‍तित्‍व नहीं था ।
के.के. मोहम्‍मद श्रीरामजन्‍म भूमि की खुदाई करनेवाले दल में सहभागी थे । सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा ‘यह भूमि श्रीरामजी की जन्‍मभूमि है’, इसे प्रमाणित करने में के.के. मोहम्‍मद का बडा योगदान था ।