सप्तर्षियों का ५.७.२०२० को गुरुपूर्णिमा के (व्यासपूर्णिमा के) उपलक्ष्य में साधकों के लिए संदेश !

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

१. साधकों को सनातन की गुरुपरंपरा के परात्पर गुरु डॉ. आठवले,
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी,
इन ३ गुरूओ की छत्रछाया में रहना आपातकाल में रक्षा होने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण !

     ‘गुरुकृपा अर्थात गुरु की छत्रछाया ! यह छत्रछाया साधकों के लिए एक प्रकार का रक्षाकवच है । साधकों का गुरुदेवजी की छत्रछाया में रहना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । गुरुदेव ने अब अपने दोनों आध्यात्मिक उत्तराधिकारियों को अपनी शक्ति दी है । अब साधकों को सनातन की गुरुपरंपरा की छत्रछाया में रहने का प्रयत्न करना चाहिए, अर्थात सनातन के तीन गुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का आज्ञापालन करना चाहिए ।

     जो साधक सनातन के तीन गुरुओं की छत्रछाया में है । जो उनका निरंतर स्मरण करते हैं, उनका आज्ञापालन करते हैं और उन पर श्रद्धा रखते हैं, उन साधकों की इस आपातकाल में रक्षा होगी । ऐसे साधकों की आध्यात्मिक प्रगति होगी और उनकी सर्वांगीण उन्नति भी होगी । भगवान भी उनकी सहायता करेंगे ।

२. तीन गुरुओं का आज्ञापालन महत्त्वपूर्ण

     जो साधक सनातन के तीन गुरुओं का आज्ञापालन करेंगे, वे ‘हंस’ समान अध्यात्म में ऊंची उडान भरेंगे और जो आज्ञापालन नहीं करेंगे, वे ‘कंस’ समान असुरी वृत्ति के चंगुल में फंस जाएंगे ।

     (‘अध्यात्म में हंस वर्ण को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । सत्ययुग में सभी जन हंस वर्ण के और वे सोऽहं भाव में थे । यह वर्ण साधकों को मुक्ति देनेवाला, इसके साथ ही मोक्ष की ओर ले जानेवाला है ।’ – संकलनकर्ता)

३. साधकों को इंद्रियों का दास न बन, गुरु का दास बनना चाहिए !

     आपातकाल घोर और भीषण है । साधकों को मेरा घर, मेरी संपत्ति, मेरी भूमि इत्यादि की इच्छा अब छोड देनी चाहिए । ‘मुझे यह अच्छा लगता है, वह अच्छा लगता है’, इसका अब विचार नहीं करना चाहिए । इतिहास साक्षी है, ‘जो राजा इंद्रियों का दास हो गया, वह नष्ट हो गया और जो राजा अध्यात्म के दास हो गए, उनके राज्य आगे साम्राज्य में रूपांतर हो गए ।’ हम  भी अध्यात्म के दास होने पर गुरुदेव हमें सर्वोच्च आध्यात्मिक ज्ञान देकर अध्यात्म के शिखर पर ले जानेवाले हैं !

४. सनातन के तीन गुरुओं पर रखी श्रद्धा के कारण साधकों की रक्षा होनेवाली है !

     आज तक का इतिहास है, ‘जिन शिष्यों ने संकटकाल में गुरु पर श्रद्धा रखी, उनका हाथ भगवान ने कभी नहीं छोडा । वानरशिष्यों ने अपने गुरु पर, अर्थात श्रीराम पर श्रद्धा रखी, शिष्य अर्जुन ने जगद्गुरु श्रीकृष्ण पर श्रद्धा रखी । भगवान ने इन सभी की समय-समय पर रक्षा की ।’ अब कलियुग में भी ऐसा ही है । साधकों द्वारा सनातन के तीन गुरुओं पर रखी जानेवाली श्रद्धा के कारण ही उनकी रक्षा होनेवाली है और यह सर्व इतिहास बनेगा । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सनातन के तीन गुरु, ईश्‍वर के अवतार हैं । अध्यात्म में, सत्य और धर्म की राह पर चलनेवाले सनातन के इन तीन गुरुओं पर जो साधक श्रद्धा रखेगा, उनके शरीर को, शरीर की प्रत्येक कोशिका को, रक्तवाहिनियों को, हड्डियों और केश तक को रत्ती भर भी हानि नहीं पहुंचेगी ।

५. इस गुरुपूर्णिमा पर ईश्‍वर साधकों को बता रहे हैं,
‘तुम केवल गुरु की सुनो, शेष सर्व ‘मैं’ देख लूंगा !’

     तुम गुरुदेवजी की कृपाछत्र के नीचे रहो । तुम्हारा सब कुछ ‘मैं’ (ईश्‍वर) देख लूंगा । सनातन के तीन गुरु, यही साधकों के गुरु हैं । यह ईश्‍वरीय नियोजन है । साधक को गुरु ढूंढना नहीं होता । इस जन्म में ही नहीं, अपितु आगे आनेवाले किसी भी जन्म में सनातन के साधकों के परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ही गुरु रहनेवाले हैं ।

६. तीनों गुरुओं का आज्ञापालन करना, यही साधकों का परमोच्च कर्तव्य है !

     श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी का कार्य पूर्ण करने हेतु पृथ्वी पर उनकी शिष्या बनकर आईं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘अवतार’ ही हैं । इन तीन गुरुओं का आज्ञापालन करना, यही साधकों का परमोच्च कर्तव्य है । तीन गुरुओं के मन में इन साधकों की रक्षा हो, ऐसा विचार जब आता है, तब उस साधक की रक्षा होती ही है !’

– सप्तर्षि [पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के नाडीपट्टिका वाचन के माध्यम से (२२.६.२०२०)]

महर्षि की दिव्‍यवाणी अर्थात जीवनाडी-पट्टिका क्‍या है ?

अखिल मानवजाति के विषय में शिव-पार्वती में जो संवाद हुआ, वह सप्‍तर्षियों ने सुना । उन्‍होंने वह मानवजाति के कल्‍याण हेतु एवं आध्‍यात्मिक जीवों की शीघ्र आध्‍यात्मिक उन्‍नति हेतु लिखकर रखा, यही है नाडीभविष्‍य ! यह ताडपत्र पर लिखा है । ‘जीवनाडी सजीव होती है । उसका श्‍वासोच्‍छ्‌वास होता है । पढते समय उसके अक्षरों में अपनेआप परिवर्तन होता है । नाडी पढते समय साक्षात शिव-पार्वती नर्तन करते हैं, ऐसा तमिलनाडु के पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्‌जी ने बताया है ! लाखों वर्ष पहले महर्षियों द्वारा लिखा नाडीभविष्‍य पढनेवाले अत्‍यल्‍प लोग ही बचे हैं। तमिल में ‘नाडी’ शब्‍द का अर्थ होता है ‘शोध लेना’ । संक्षेप में, ‘स्‍व’ का शोध लेना ।

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी, सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने कभी नहीं कहा है, ‘मैं अवतार हूं ।’ ‘परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी विष्‍णु के अवतार हैं’ सद़्‍गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं सद़्‍गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘श्री महालक्ष्मी देवी के अवतार हैं’ ऐसा महर्षियों ने नाडीपट्टिका में कहा है । साधकों का व सनातन प्रभात की संपादक समिति का महर्षियों के प्रति भाव (श्रद्धा) है, इसलिए हम महर्षि की आज्ञा के रूप में यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं । – संपादक