अखिल मानवजाति को आपातकाल में जीवित रहने की तैयारी
करने संबंधी मार्गदर्शन करनेवाले एकमेव परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !
बाढ, भूकंप, तृतीय विश्वयुद्ध, कोरोना महामारी आदि संकटों से भरे आपातकाल में अपनी रक्षा के लिए की जानेवाली पूर्वतैयारी संबंधी इस लेखमाला के पहले भाग में चूल्हा, गोबर-गैस आदि के विषय में आपने पढा । अब दूसरे भाग में हम प्रमुख रूप से सब्जी और फलदार वृक्ष लगाने के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे । आपातकाल में हमें भूखा न रहना पडे, इसके लिए घर में पहले से ही पर्याप्त मात्रा में अनाज खरीदकर रखना आवश्यक है । अनाज कितना भी संग्रहित करें, वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है । ऐसे समय में दाने-दाने के लिए तरसने से बचने के लिए इसकी पूर्वतैयारी के रूप में अनाज की खेती करना भी आवश्यक है । धान (चावल), दलहन आदि की खेती करना सबके लिए संभव नहीं है; परंतु कंदमूल, अल्प पानी में अधिक उपज देनेवाली बारहमासी सब्जियां और बहुपयोगी फलवृक्ष सदनिका (‘फ्लैट’) के बारजा (बरामदे) में तथा घर के परिसर में भी लगा सकते हैं । इस विषय में अधिक जानकारी इस लेख में दी गई है ।
लेखांक २
१. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर आवश्यक तैयारी
१ अ ३. अनाज का रोपण, गोपालन आदि करना अभी से आरंभ करना
हम कितना भी अनाज संग्रहित कर लें, वह धीरे-धीरे समाप्त होता है । ऐसे समय में भूखा न रहना पडे, इसकी पूर्वतैयारी के लिए अनाज का रोपण, गोपालन आदि करना आवश्यक है ।
१ अ ३ अ. धान, दलहन (द्विदल अनाज) आदि उगाना : जो लोग किसान नहीं हैं, वे इस विषय में जानकार लोगों से सीख लें ।
१ अ ३ आ. सब्जियां, कंदवर्गीय सब्जियां और फलवृक्ष लगाना : इस विषय से परिचित कराने के लिए आगे संक्षिप्त मार्गदर्शन किया गया है । ‘सब्जियां, फलवृक्ष आदि का प्रत्यक्ष रोपण और संवर्धन कैसे करें’, इस विषय पर सनातन का एक ग्रंथ शीघ्र ही प्रकाशित होगा ।
१ अ ३ आ १. सब्जियां, कंदवर्गीय सब्जियां और फलवृक्ष लगाने की आवश्यकता
अ. कुछ महीने परिवार के लिए पर्याप्त हो इतना अनाज, दलहन आदि संग्रहित कर सकते हैं; परंतु इनकी तुलना में सब्जियां, फल आदि का संग्रह करना संभव नहीं होता ।
आ. आपातकाल में आहार में सब्जियों का उपयोग करने पर संग्रहित दलहन अधिक दिन चलेंगे ।
इ. अनाज और दलहन उगाने के लिए बडी/ फैली हुई कृषियोग्य भूमि की आवश्यकता होती है; परंतु सब्जियां, फलवृक्ष आदि घर के बारजा और परिसर में भी लगा सकते हैं ।
ई. अनाज और दलहन की तुलना में अनेक सब्जियां अल्पकाल में तैयार होती हैं ।
उ. शरीर के लिए आवश्यक पोषक घटक, उदा. कुछ जीवनसत्त्व (विटामिन), खनिज, तंतुमय पदार्थ (फायबर), ये सब सब्जी, कंदमूल और फलों से मिलते हैं । इसलिए आहारशास्त्र कहता है, आहार में कुछ मात्रा में सब्जी, कंद और फल होने चाहिए ।
ऊ. आपातकाल में प्रतिदिन दाल, रोटी खाने से आई एकरसता, सब्जी से दूर होती है तथा भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है ।
ए. सब्जी और फलों का उपयोग औषधि की भांति भी किया जा सकता है ।
१ अ ३ आ २. आपातकाल की दृष्टि से कौन-कौनसी सब्जियां, कंदवर्गीय सब्जियां और फलवृक्ष लगाना अधिक लाभदायक है ?
‘आपातकाल में अल्प अवधि में अधिक उपज अथवा फल मिलना आवश्यक होता है’, यह ध्यान में रखकर आगे बताए अनुसार सब्जियां और फलवृक्ष लगाना लाभदायक है – अरबी छोडकर अधिकतर पत्तेवाली सब्जियां; ग्वारफली, पत्तागोभी, मटर, फूलगोभी, टमाटर, बैंगन, भिंडी, मिर्च, शिमला मिर्च और सब लतावर्गीय सब्जियां (उदा. सेम, कुंदरु); आलू, शकरकंद, गाजर, मूली, विदारीकंद, करोंदा, कोनफल और कनागी, ये कंदवर्गीय सब्जियां; अनानास, पपीता, केला, चीकू और दाडिम (अनार) फलवृक्ष ।
१ अ ३ आ ३. सब्जी, कंदवर्गीय सब्जी तथा फलवृक्ष कब लगाएं ?
‘अधिकतर शाक (साग), बैंगन, टमाटर और भिंडी कभी भी लगाए जा सकते हैं । लतावर्गीय (उदा. कुंदरु) और सेमवर्गीय (उदा. ग्वार) सब्जियां वर्षा ऋतु के आरंभ में अथवा शीत ऋतु के अंत में लगाएं । कंदवर्गीय सब्जियां (उदा. शकरकंद) और फलवृक्ष वर्षा ऋतु आरंभ होने पर लगाएं ।’
– श्री. अविनाश जाधव, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (मार्च २०२०)
१ अ ३ आ ४. आपातकाल की दृष्टि से सदनिका (फ्लैट) के बारजा (बरामदे) में तथा छत पर सब्जी और साग बोने के लिए मिट्टी के गमलों के स्थान पर अन्य साधनों का उपयोग करने की आवश्यकता
‘मिट्टी के गमलों में पेड लगाना’, पेड के विकास की दृष्टि से उत्तम है; परंतु मिट्टी के गमले उठाते-रखते समय टूट सकते हैं । ‘आपातकाल में कब क्या होगा, यह कहा नहीं जा सकता । इसलिए ये गमले टूटने से होनेवाली हानि टालने के लिए मिट्टी के गमलों के स्थान पर टिन के पीपे; तेल के खाली डिब्बे; प्लास्टिक की बोरियां, थैलियां, डब्बे, चौडे टब आदि वैकल्पिक साधनों का उपयोग करना अधिक अच्छा है । इन वैकल्पिक साधनों में से अतिरिक्त पानी निकलने के लिए उनकी पेंदी से आधा इंच ऊपर समान अंतर पर २ – ३ छेद कर दें । पेंदी में छेद न करें; क्योंकि पेड की जडें उनसे निकलकर भूमि में जा सकती हैं ।’
– श्री. माधव रामचंद्र पराडकर, डिचोली, गोवा. (२८.५.२०२०)