सनातन पर अखंड कृपावर्षा करनेवाले कृपावत्सल प.पू. भक्तराज महाराज !

प.पू. भक्तराज महाराजजी के जन्मशताब्दी निमित्त (७ जुलाई २०२०) !

सनातन के कार्य को मिले प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद !

परम पूज्य भक्तराज महाराज के कृपाशीर्वाद से स्थापित सनातन ‘भारतीय संस्कृति संस्था’ !

     क्या आप जानते हैं कि ‘सनातन संस्था की स्थापना कैसे हुई ?’ घटना वर्ष १९९१ की है । एक बार डॉ. श्रीमती कुंदाजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की धर्मपत्नी) ने दूरभाष किया कि ‘प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) नासिक में हैं ।’ तब मैं, डॉ. आठवले और श्रीमती कुंदाजी नासिक गए । उस दिन बाबा उंटवाडी में श्री. गिरीश दीक्षित के घर ठहरे थे । सवेरे का समय था । बाबा पलंग पर लेटे थे । तब डॉक्टरजी ने बाबा से कहा, ‘सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए हमें एक संस्था बनानी चाहिए ।’ यह सुनकर बाबा बोले, ”विचार बहुत अच्छा है । आ’प संस्था बनाइए ।” उस समय प्रश्‍न उठा कि इस नई संस्था का नाम क्या रखाजाए ? इतने में पलंग पर लेटे बाबा ने जोर से कहा, ”सनातन भारतीय संस्कृति संस्था !” उसी दिन ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ का जन्म हुआ !  – श्री. जयंत बोरकर, विक्रोळी, मुंबई. (२३.२.२०१५)

     प्रत्यक्ष में १.८.१९९१ को प.पू. भक्तराज महाराजजी की कृपा से ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना हुई । तत्पश्‍चात प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिए अभ्यासवर्ग, गुरुपूर्णिमा महोत्सव तथा वर्ष १९९६ से वर्ष १९९८ की अवधि में ली गई सैकडों सभाओं से सहस्त्रों जिज्ञासु और साधक संस्था से जुड गए । तत्पश्‍चात अध्यात्मप्रसार की व्याप्ति बढने पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २३ मार्च १९९९ को सनातन संस्था की स्थापना की । प.पू. भक्तराज महाराजजी के सदैव आशीर्वाद प्राप्त इस संस्था के कार्य का विस्तार आज अनेक गुना बढ गया है और सहस्रो साधक सनातन के मार्गदर्शनमें तथा प.पू. गुरुदेव डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधनारत हैं । – संपादक

‘सनातन मैं चलाऊंगा !’

     प.पू. भक्तराज महाराजजी खाट पर सोए थे । मैं वहीं खडा था । बीच में ही वे झटसे उठे और उंगली उठाकर बोल कि ”सनातन मैं
चलाऊंगा !” – श्री. अनिल जोग, इंदौर, मध्यप्रदेश. (वर्ष १९९५)

अमृत महोत्सव के समय प.पू. बाबाने  परात्पर गुरु
डॉ. आठवलेजी को दिया चांदी का श्रीकृष्णार्जुन रथ (वर्ष १९९५)

     वर्ष ९.२.१९९५ – ८ और ९.२.१९९५ को बाबा का देव-दुर्लभ अमृतमहोत्सव वर्ष पदार्पण समारोह संपन्न हुआ । समारोह के उपरांत बाबा ने मुझे श्रीकृष्ण-अर्जुन का महत्त्व विषद किया । तदुपरांत मेरे हाथ में श्रीकृष्ण-अर्जुन का चांदी का एक रथ दिया और कहा, ”गोवा में अपना कार्यालय होगा । वहां रखना !” अब ‘सनातन संस्था’ का मुख्य कार्यालय भी (आश्रम भी) गोवा में ही है ।

१. वर्ष १९९१ से १९९५ – परम पूज्य भक्तराज महाराज (परम पूज्य बाबा ने) ने डॉक्टरजी को धर्मप्रसार करने के लिए कहा ।

१ अ. १ आ. वर्ष १९९३ : परम पूज्य बाबा ने कहा, ”अब पूरे भारत में धर्मप्रसार करो ।”

सनातन पर अखंड कृपावर्षा करनेवाले कृपावत्सल प.पू. भक्तराज महाराज ! परम पूज्य बाबा ने कहा, ”अब पूरे संसार में धर्मप्रसार करो ।”

१ इ. वर्ष १९९५ : परम पूज्य बाबा ने कहा, ”अब पूरे संसार में धर्मप्रसार करो ।”

     बाबा ने वर्ष १९९३ में इस कार्य के लिए मानो आशीर्वाद के रूप में ही अपनी मोटर का झंडा मुझे दिया और कहा, ”यह झंडा लगाकर सर्वत्र प्रसार के लिए भ्रमण करो !”

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

प.पू. भक्तराज महाराजजी के इंदौर और कांदळी आश्रम की छायाचित्रात्मक स्मृति !

भक्तवात्सल्याश्रम, इंदौर की प.पू. भक्तराज महाराजजी का चैतन्यदायी कक्ष !
यहीं पर प.पू. रामानंद महाराजजी, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने प.पू. बाबा की सेवा की ।

 

प.पू. भक्तराज महाराजजी की कांदळी (पुणे) के आश्रम की समाधी

कांदळी, पुणे का प.पू. बाबा का खेत । प.पू. बाबा  खेत के पास
शिवपिंडी के (चौकोन में दिखाएनुसार) इस पर्वत का प्रतिदिन दर्शन लेते थे ।