आगामी भीषण आपातकाल में स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयुक्त औषधीय वनस्पतियों का रोपण अभी से करें !

     आगामी काल में तृतीय विश्‍वयुद्ध होगा और उसमें परमाणु युद्ध के कारण करोडों लोग मारे जाएंगे, साथ ही भीषण प्राकृतिक आपदाएं भी आएंगी, ऐसी संतों की भविष्यवाणी है । संकटकाल में यातायात के साधक, डॉक्टर्स और औषधियां उपलब्ध होंगी, यह निश्‍चित नहीं रहता । आजकल कोरोना संकट के कारण सर्वत्र यही स्थिति अनुभव हो रही है । संकटकाल में औषधीय वनस्पतियों का उपयोग कर, हमें स्वास्थ्यरक्षा करनी पडेगी । उचित समय पर उचित औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध होने हेतु वे हमारे आसपास होनी चाहिए। इसके  लिए अभी से ऐसी वनस्पतियों का रोपण करना समय की मांग है । प्राकृतिक, तथा मनुष्य निर्मित विविध कारणों से अनेक औषधीय वनस्पतियां दुर्लभ हो गई हैं । उनका रोपण करने से औषधियों के संवर्धन के साथ ही हमारा स्वास्थ्य ठीक रहने में भी सहायता मिलेगी । भावी हिन्दू राष्ट्र में आयुर्वेद ही मुख्य चिकित्सा-पद्धति होगी । आयुर्वेद को मुख्य चिकित्सा-पद्धति बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति का प्रयत्न करना आवश्यक है । औषधीय वनस्पतियों का रोपण, यह उसी कार्य का पहला चरण है ।

लेख में दी गई जानकारी सनातन द्वारा प्रकाशित ग्रंथ स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण से संकलित है । विस्तृत जानकारी हेतु पाठक यह ग्रंथ अवश्य पढें ।

गिलोय
दूर्वा
ग्वारपाठा

ऐरावती
निर्गुंडी
कालमेघ
हडजोडा

अपामार्ग

१. औषधीय वनस्पतियों के रोपण से पहले ध्यान देनेयोग्य सूत्र

अ. औषधीय वनस्पतियों का रोपण वर्षा ऋतु के आरंभ में, अर्थात १५ जून से १५ जुलाई के मध्य करने से उनका विकास अच्छा होता है ।

आ. रोपण के पहले बीज, पौधा, गमला आदि सामग्री जुटाना, गड्ढे खोदना जैसे कार्य करने पडते हैं ।

इ. औषधीय वनस्पतियों की संख्या अगणित है । सभी के लिए सभी वनस्पतियों का रोपण करना असंभव एवं अव्यवहार्य है । इसके लिए भूमि की उपलब्धता तथा संबंधित वनस्पति की विविध रोग दूर करने की क्षमता के अनुसार यहां औषधीय वनस्पतियों के रोपण का एक सर्वसामान्य क्रम दिया गया है । इसके अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार इन वनस्पतियों की रोपण करे ।

ई. प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार यह निर्णय ले कि कोई वनस्पति कितनी संख्या में लगानी है । प्रत्येक व्यक्ति ने इस वर्ष जिन वनस्पतियों का रोपण करनेका विचार किया है, उनका न्यूनतम एक पौधा लगाने का संकल्प लें ।

उ. पाठक आवश्यकता के अनुसार सोच-समझकर स्थानीय जानकार अथवा वैद्यों के साथ विचारविमर्श कर रोपण करें ।

ऊ. रोपी गई वनस्पतियों की पहचान परिवार के अन्य सदस्यों को भी कराएं । वनस्पतियों के पास उनके नामकी पट्टी भी लगा सकते हैं । इससे सब लोग इन्हें पहचान पाएंगे ।

ए. समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, यह समझकर समय गंवाए बिना अपनी क्षमतानुसार औषधीय वनस्पतियां रोपने की योजना बनाकर, उसे शीघ्र पूरा करें ।

२. लेख पढते समय ध्यान में रखनेयोग्य सूत्र

अ. इस लेख में भारत के अधिकांश भागों में सहजता से उगाई जानेवाली कुछ चयनित औषधीय वनस्पतियों की जानकारी दी गई है ।

आ. औषधीय वनस्पतियों का नाम प्रदेशानुसार भिन्न हो सकता है । इसलिए प्रत्येक वनस्पति का नाम लैटिन भाषा में भी ग्रंथ के अंत में दिया गया है । लैटिन नाम के आधार पर उस वनस्पति का छायाचित्र तथा अन्य जानकारी इंटरनेट से प्राप्त की जा सकती है ।

इ. जब कोई वनस्पति पहचानी न जा सके, तब उसके विषय में भी स्थानीय जानकार अथवा वैद्य से पूछें ।

ई. इस लेख में बताई गई वनस्पतियों के अतिरिक्त अन्य वनस्पतियां भी आप लगा सकते हैं ।

३. घर के बरामदे (बालकनी) में भी लगाए जानेयोग्य कुछ चयनित औषधीय वनस्पतियां और उनका व्यापक उपयोग

     निम्नांकित सारणी में सर्वत्र रोपी जा सकनेवालीं तथा अति महत्त्वपूर्ण १६ औषधीय वनस्पतियों के नाम दिए गए हैं । प्रत्येक व्यक्ति अपने घर के आसपास ये वनस्पतियां लगाए । सारणी में समाहित वनस्पतियों के नाम महत्त्व के अनुसार दिए गए हैं अर्थात १६ वें क्रम की वनस्पतियों की अपेक्षा १५ वें क्रम की वनस्पति अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस प्रकार पहले क्रमांक की वनस्पति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । अतः १६ वनस्पतियों का रोपण करना संभव न हो, तो महत्त्व के अनुसार जितनी संभव हो, उतनी वनस्पतियों की रोपण करें । इन वनस्पतियों के विस्तृत औषधीय उपयोग सनातन द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण’ में दिए हैं ।

     घर के आसपास पर्याप्त भूमि उपलब्ध न हो, तो गमले अथवा प्लास्टिक की थैलियों में निम्नांकित वनस्पतियों को लगाकर घर के बरामदे में (बाल्कनी में) रखा जा सकता है । इनमें से – गिलोय, जूही, खानेवाला पान, और हडजोड की लताओं को फैलने के लिए आधार की आवश्यकता होती है । निर्गुंडी, अडूसा एवं अडहुल वनस्पतियों को अगले ३ वर्ष तक गमलों में रखा जा सकता है । इन वनस्पतियों का विकास तीव्र गति से होने के कारण ३ वर्ष पश्‍चात उन्हें भूमि में लगाना पडता है; परंतु नियमित कटाई कर उनके विकास को सीमित रखने से उन्हें सदैव गमलों में रखा जा सकता है । अधिकांश बीमारियों पर उपयुक्त होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास इन वनस्पतियों का रोपण करे । भूमि शेष हो, तो इनके अतिरिक्त अन्य वनस्पतियों की भी रोपण करें । भूमि अल्प हो, तो एक ही रचना में वनस्पतियों के गमले एक के ऊपर एक रखें । बरामदे में इन वनस्पतियों की रचना इस प्रकार करें, जिससे उन्हें प्रतिदिन न्यूनतम ३-४ घंटे धूप मिले । जिनके घर के आसपास भूमि उपलब्ध है, वे ऐसी वनस्पतियों को घर के बरामदे में न लगाकर घर के आसपास लगाएं । इनमें से कुछ बेलों को पिछवाडे में बडे वृक्ष (संभवतः नीम) के मूल में अथवा तने पर लगाएं ।

टिप्पणी १ : वनस्पति के लैटिन नाम नीचे की ओर रेखांकित करने की अंतरराष्ट्रीय पद्धति होने से यहां लैटिन नामों को रेखांकित किया गया है ।

टिप्पणी २ – ‘पंच’ का अर्थ ‘पांच’ और ‘अंग’ का अर्थ वनस्पति का भाग । वनस्पति के मूल, शाखाएं, पत्ते और फूल इन पांच अंगों को एकत्रितरूप से ‘पंचांग’ कहते हैं । छोटी औषधीय वनस्पतियों के संदर्भ में ‘पंचांग’ का अर्थ ‘मूल के साथ संपूर्ण वनस्पति ।’

४. उक्त वनस्पतियों की बोआई कर भूमि शेष हो, तो बोआई करनेयोग्य औषधीय वनस्पतियों का आकारादि क्रम के अनुसार नाम

     इनमें से कुछ वनस्पतियों के विस्तृत औषधीय उपयोग सनातन का ग्रंथ ‘११६ वनस्पतियों के औषधीय गुणधर्म’ एवं ‘९५ वनस्पतियों के औषधीय गुणधर्म’ में दिए गए हैं ।

४ अ. छोटे पेड (१ से २ फुट तक बढनेवाली वनस्पतियां)

आ. बेल 

४ इ. क्षुप (२ फुट से अधिक बढनेवाली वनस्पति)

४ ई. वृक्ष

५. पौधारोपण हेतु औषधीय वनस्पतियों के बीज, पौधे आदि कहां मिलते हैं ?

५ अ १.  बडी संख्या में औषधीय वनस्पतियोंके पौधे प्राप्त करने हेतु

१ अ. जालस्थल (वेबसाइट) : www herbalgardenindia.org/

१ आ. कुछ राज्यों की महत्त्वपूर्ण शासकीय संस्थाएं

१. सीएसआइआर – केंद्रीय औषधीय एवं सुगंधी वनस्पति संस्थान (सीमैप), लखनऊ, उत्तर प्रदेश. (0522-2718629)

२. औषधीय एवं सुगंधी वनस्पति शोध संचालनालय, बोरीयावी, गुजरात. (02692-271602)

३. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्‍वविद्यालय, जबलपुर, मध्यप्रदेश. (0761-2681706)

४. फाउंडेशन फॉर रीवाइटलाइजेशन ऑफ लोकल हेल्थ ट्रेडिशन्स (एफआरएलएलटी), बेंगलूरु, कर्नाटक. (080-28568000)

अ. छोटे गांव तथा उसके आसपास के जंगल में अनेक औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध होती हैं । वहां के निवासियों को इसकी जानकारी होती है । शहर में रहनेवाले अधिकांश लोग छुट्टी में गांव जाते रहते हैं । उस समय वे आवश्यक वनस्पतियों के बीज या पौधे गांव से ला सकते हैं ।

आ. प्रत्येक राज्य के कृषि विश्‍वविद्यालय, कृषि विभाग तथा वन विभाग में औषधीय वनस्पति या वे कहां मिलती हैं आदि जानकारी मिल सकती है ।

इ. आयुर्वेदिक महाविद्यालयों की रोपवाटिकाएं रहती हैं । स्थानीय आयुर्वेदिक महाविद्यालयों से संपर्क कर औषधीय वनस्पति प्राप्त की जा सकती है ।

     (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण)   

आपातकाल की दृष्टि से मिट्टी के गमलों की अपेक्षा अन्य विकल्पों का उपयोग करना अधिक अच्छा

     ‘मिट्टी के गमलों में पेड लगाना’ पेडों की बोआई की दृष्टि से आदर्श है; परंतु मिट्टी के गमले उपयोग करते समय टूट सकते हैं । संकटकाल में क्या होगा, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता; इसलिए गमले टूटकर होनेवाली हानि टालने हेतु इस काल में मिट्टी के गमलों की अपेक्षा टिन के पीपे, तेल के टिन के डिब्बे, प्लास्टिक की बोरियां, डिब्बे या पिंप आदि वैकल्पिक सामग्री का उपयोग करना अधिक अच्छा होगा । इन वैकल्पिक सामग्री से अतिरिक्त पानी की निकासी होने हेतु उनके तली से आधे इंच ऊंचाई पर २-३ छेद करें । तल में छेद रखने से पेडों के मूल भूमि में जाने की संभावना अधिक होती है; इसलिए तल में छेद न बनाएं । – श्री. माधव रामचंद्र पराडकर, डिचोली, गोवा. (२८.५.२०२०)

सनातन की ग्रंथमाला : आगामी आपातकाल की संजीवनी

आगामी आपातकाल में प्राणरक्षा करने हेतु स्वयं सक्षम बनें !

     आगामी काल में विश्‍वयुद्ध सहित बाढ, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएं भी होंगी । उस समय डॉक्टर, वैद्य, औषधियां आदि उपलब्ध होना कठिन होगा । ऐसे में विकार और आपदाओं का सामना करने की पूर्वतैयारी के रूप में यह ग्रंथमाला पढें ! ये ग्रंथ सामान्यतः भी उपयुक्त हैं ।

स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण

     घर की ‘बालकनी’, आंगन, खेत आदि में लगानेयोग्य २०० औषधीय वनस्पतियों की जानकारी एवं १०० रोगों पर उनका उपयोग ग्रंथ में दिया है । आगामी विश्‍वयुद्धकाल में होनेवाली औषधियों की अनुपलब्धता ध्यान में रख, अभी ही इन वनस्पतियों का रोपण करें !

औषधीय वनस्पतियोंका रोपण कैसे करें ?
(मन्त्र, आध्यात्मिक यन्त्र एवं आध्यात्मिक उपचारों सहित)

     अल्प (कम) मिट्टी में औषधीय वनस्पतियों का रोपण करना, बडी संख्या में रोपण हेतु रोपवाटिका बनाना, मृदा-परीक्षण, जैविक (प्राकृतिक) खाद, औषधीय वनस्पतियों से उपयोगी भाग निकालना एवं संग्रहित करना आदि संबंधी सरल मार्गदर्शन करनेवाला ग्रंथ !

     ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ की ओर से समाजहित में औषधीय पौधों का रोपण आरंभ है । इसमें श्रम, बीज, भूमि, धन आदि का दान कर सहभागी हों !

संपर्क क्रमांक : 8600869666

जालस्थल (वेबसाईट) : Spiritual.University

इ-मेल : [email protected]

ग्रंथ की मांग हेतु संपर्क क्रमांक – 9322315317