पालघर की अराजकता !

     महाराष्ट्र को संतों की महान परंपरा प्राप्त है । संतों ने साधना कर अपना तथा समाज का उद्धार करने की शिक्षा दी है । इसलिए यहां आज भी संतों का मान-सम्मान किया जाता है; परंतु महाराष्ट्र की इस परंपरा पर १६ अप्रैल को निर्मम प्रहार हुआ । पालघर जनपद के डहाणू तहसील में स्थित गडचिंचले गांव के २०० से अधिक लोगों की भीड ने सुशीलगिरि महाराज, कल्पवृक्षगिरि महाराज और उनके वाहनचालक नीलेश तेलगडे को पीट-पीट कर मार डाला । सुशीलगिरि महाराज और कल्पवृक्षगिरि महाराज श्री पंच दशनाम जुना अखाडा के साधु थे । इस अखाडे में नागा साधुओं का समावेश है । सनातन हिन्दू धर्म के रक्षार्थ नागा साधुओं का योगदान सर्वज्ञात है । उन्होंने वर्ष १६६४ में घनघोर युद्ध कर औरंगजेब को हराया था । जो हाथ साधु-संतों की सेवा करने के लिए, उनका आशीर्वाद लेने के लिए आगे आने चाहिए थे, उन हाथों ने शस्त्र, लाठियां और पत्थर लेकर साधुओं की हत्या की । इसमें साधुओं का क्या दोष था ? जिन्होंने साधना की दीक्षा दी थी, उन गुरु महाराज के अंतिमसंस्कार में सम्मिलित होने के लिए वे जा रहे थे । प्रत्येक शिष्य के जीवन में गुरु का अनन्य स्थान होता है । देहत्याग के पश्‍चात, अपने गुरु के अंतिम दर्शन के पावन उद्देश्य से वे यात्रा कर रहे थे । अंतिमसंस्कार में पैसे की कोई समस्या न आए, इसलिए उन्होंने अपने पास कुछ धन भी रखा था । फिर भी, इन साधुओं को बिना जांचे-परखे, बच्चा-चोरों की टोली ठहराकर हत्या करना, पाशविक मनोवृत्ति का परिचायक है । संत, ईश्‍वर के चलते-बोलते रूप होते हैं । ब्रह्महत्या करने पर जितना पातक लगता है, उतना ही पातक उनकी हत्या करने पर लगता है । यह पातक केवल संबंधित भीड को नहीं लगा है, अपितु साधु-संतों की भीड से रक्षा न करनेवाली पुलिस और सरकारी तंत्र को भी लगा है । यह पाप धोने के लिए पुलिसतंत्र क्या करेगा ?

पुलिस का पाप !

     पालघर में भीड साधुओं को पीटते समय का वीडियो सामाजिक प्रचारमाध्यमों से प्रसारित हुआ है । इसमें ये साधु वहां उपस्थित पुलिस से सहायता मांग रहे थे; परंतु पुलिस ने उन्हें नहीं बचाया । इतना ही नहीं, इन पुलिसकर्मियों ने साधुओं को भीड को सौंप दिया और उन्हें पिटते हुए देखते रहे । उनमें एक साधु ७० वर्ष के थे । वे साधु थे, यह बात हम एक क्षण के लिए छोड भी दें, तो भी एक ७० वर्ष के वृद्ध व्यक्ति को नराधमों की टोली के हवाले करते हुए पुलिस को बुरा क्यों नहीं लगा ? उनकी मानवीय संवेदना इतनी निकृष्ट हो गई है ? सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय । यह पुलिसदल का नारा है, जिसका अर्थ है सज्जनों की रक्षा के लिए एवं दुष्टों को नियंत्रित करने हेतु; परंतु यहां पुलिस का आचरण इसके ठीक विपरीत था । क्या ऐसे कृत्य के लिए ही पुलिस को वेतन दिया जाता है ? यह आचरण महाराष्ट्र पुलिस के लिए अशोभनीय है ।

     कुछ दिन पहले की एक घटना में ठाणे जनपद के एक मंत्री के कहने पर पुलिस ने एक हिन्दुत्वनिष्ठ व्यक्ति को उस मंत्री के बंगले पर ले जाकर उनकी पिटाई की थी । मंत्रियों के हाथ की कठपुतली बनी पुलिस, निरपराध नागरिकों के संकट में फंसने पर किसी प्रकार की सहायता नहीं करती । साधुओं की हत्या के लिए पुलिस उत्तरदायी है । इसलिए उनपर जानबूझकर हत्या कराने के विरोध में प्राथमिकी लिखी जानी चाहिए ।

कानून और व्यवस्था की धज्जियां !

     संचारबंदी होने पर भी इतनी बडी संख्या में भीड हाथ में लाठी, डंडे, पत्थर आदि लेकर सडक पर कैसे आई ? इस बात की जानकारी प्राप्त करने में पुलिस क्यों विफल रही ? सरकार के पुलिस और गुप्तचर विभाग क्या सो रहे थे ? यह सरकारी तंत्र की प्रमुख विफलता है । रेलगाडी छूटने की अफवाह फैलने के कारण वांद्रे परिसर में बडी भीड जमा हो गई थी । १६ अप्रैल को पालघर में भी इतनी भीड जमा हुई थी । संचारबंदी के समय इतनी बडी संख्या में भीड मार्ग पर कैसे आती है ? क्या भीड को पुलिस से भय नहीं लगता ? संचारबंदी के काल में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस और स्थानीय प्रशासन पूर्णतः विफल सिद्ध हुआ है । गुरु के अंतिम दर्शन के लिए जानेवाले साधु बच्चा-चोर हैं, यह अफवाह किसने और क्यों फैलाई ? इस बात की गहन जांच होनी चाहिए । ऐसा होगा, तभी इसके पीछे यदि कोई षड्यंत्र हुआ, तो वह उजागर होगा । महंत नरेंद्र गिरी के बताए अनुसार जिस स्थान पर साधुओं की हत्या हुई है, वह स्थान धर्मांधबहुल है । इसलिए क्या जानबूझकर किसी षड्यंत्र के अंतर्गत हिन्दू साधुओं की हत्या की गई है, इस बिंदु पर भी जांच होनी चाहिए ।

     जिस भूमि में साधु-संतों का आदर-सत्कार नहीं होता, उनकी हत्या की जाती है, उस भूमि के निवासियों का उत्कर्ष कैसे होगा ? भारत पर आए अनेक संकटों को संतों ने ही अपने तपोबल से दूर किया है । इसलिए ऐसे संतों के विषय में कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, अल्प होगी; परंतु जिस भूमि में साधु-संतों के विषय में कृतज्ञता व्यक्त करना तो छोडिए, उनकी हत्या की जाती है, उस भूमि का इससे अधिक दुर्भाग्य दूसरा क्या होगा ? पालघर की इस घटना से संतों की भूमि रहा महाराष्ट्र कलंकित हुआ है । यह कलंक मिटाने के लिए महाराष्ट्र सरकार क्या करती है, यह देखना पडेगा !