छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का निर्णय !
रायपुर (छत्तीसगढ़) – छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक हिन्दू पति को ईसाई पत्नी से तलाक देने के पारिवारिक न्यायालय के निर्णय को यथावत रखते हुए कहा है कि यदि पत्नी पति की धार्मिक मान्यताओं का उपहास करती है, तो पति को तलाक का अधिकार है। इस बार पारिवारिक न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध पत्नी की चुनौती सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त कर दी ।
सुनवाई के समय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने पिछले १० साल से किसी भी हिन्दू अनुष्ठान में भाग नहीं लिया है । वह पूजा करने के बजाय चर्च जाने लगीं । यह दो अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच शादी का प्रकरण नहीं है । यहां धार्मिक प्रथाओं की आपसी समझ अपेक्षित है। इस मामले में पति ने कहा, ‘पत्नी बार-बार उसकी धार्मिक मान्यताओं का अपमान करती है । उसने कई बार उसके देवताओं का अपमान किया है।” एक पत्नी से अपेक्षा की जाती है कि वह ‘सहधर्मिणी’ के रूप में व्यवहार करे, ऐसा न करना एक धर्मनिष्ठ पति के प्रति मानसिक क्रूरता है। ऐसी स्थिति में पति को तलाक देने का अधिकार है। महाभारत और रामायण में ही नहीं बल्कि मनुस्मृति में भी कहा गया है कि ‘पत्नी के बिना कोई भी यज्ञ अधूरा होता है।’ पत्नी धार्मिक कार्यों में पति की बराबर की भागीदार होती है।” पति अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। ऐसे में उन्हें परिवार के सदस्यों के लिए धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते हैं।
क्या है मामला ?
मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले के करंजिया की रहने वाली नेहा ने ७ फरवरी २०१६ को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के विकास चंद्र से हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह की थी। विकास दिल्ली में नौकरी करता था । नेहा कुछ दिनों तक अपने पति विकास के साथ दिल्ली में रहीं । इसके बाद वह बिलासपुर लौट आईं। इसी समय नेहा ने ईसाई धर्म अपना लिया और चर्च जाने लगीं। ईसाई धर्म अपनाने के बाद नेहा ने हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और देवी-देवताओं का उपहास करना शुरू कर दिया। विकास ने कई बार नेहा को समझाने का प्रयास किया; लेकिन उसने छेड़खानी बंद करने से मना कर दिया । अंत में विकास ने अपनी पत्नी के व्यवहार से त्रस्त होकर तलाक लेने का निर्णय लिया । उन्होंने पारिवारिक न्यायालय में तलाक की याचिका प्रविष्ट की। सुनवाई के बाद पारिवारिक न्यायालय ने विकास के पक्ष में निर्णय सुनाया । इस निर्णय को नेहा ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी ।
संपादकीय भूमिकाहिन्दू कभी भी दूसरे धर्मों की मान्यताओं का उपहास नहीं करते; किंतु अन्य धर्म विशेषकर ईसाई और ईसाई मिशनरियां हिन्दुओं की मान्यताओं का उपहास उड़ाते दिखते हैं। उन पर कोई कार्यवाही नहीं होने से वे उद्धाम हो गये हैं । ऐसे लोगों को उचित दंड देने के लिए हिंदुओं को केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाने की आवश्यकता है ! |