सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘प्राचीन काल में ‘बुद्धि जिसे मानती है, वही सत्य है’, ऐसी वृत्ति का समाज एवं अधिवक्ता आदि न होने के कारण ‘हनुमानजी एक उडान में श्रीलंका पहुंचे‘, जैसे रामायण के तथा महाभारत एवं विविध पुराणों की ऐतिहासिक कथाएं, एवं ‘संत ज्ञानेश्वर ने भैंसे के मुख से वेद कहलवाए’ आदि इतिहास बतानेवालों को दंड नहीं दिया गया । अब अधिवक्ता परामर्श देते हैं कि ‘बुद्धि से परे का कुछ न छापें !‘ इसलिए मानव को बडी घटनाओं और उनके शास्त्र से वंचित रहना पड रहा है । हिन्दू राष्ट्र में बुद्धि से परे का बतानेवालों को गौरवान्वित किया जाएगा ।’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ʻसनातन प्रभातʼ नियतकालिक