क्या इसे वास्तविक बुद्धिवादी का लक्षण माना जा सकता है ?
‘हमें जिस विषय की जानकारी नहीं है, जिस विषय का हमने अध्ययन नहीं किया, उस विषय पर समाज में संदेह निर्माण हो, इस प्रकार की बातें और काम करना, क्या इसे वास्तविक बुद्धिवादी का लक्षण माना जा सकता है ?’
शासक ऐसे होने चाहिए !
‘ईश्वर को देखने के लिए चश्मे की तथा ईश्वर के बोल सुनने के लिए कान में मशीन लगाने की आवश्यकता नहीं होती । उसके लिए केवल शुद्ध अंतःकरण की आवश्यकता होती है । प्रजावत्सल शासक वैसा ही होता है। उसे दुःखी जनता दिखाई देने के लिए चश्मे तथा जनता की समस्याएं सुनाई देने के लिए कान में मशीन लगाने की आवश्यकता नहीं होती ।’
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य हेतु समष्टि साधना आवश्यक !
‘व्यष्टि साधना में एक ही देवता की उपासना होती है; परंतु समष्टि साधना में अनेक देवताओं की उपासना होती है । सेना में थल सेना, टैंक, वायु सेना, नौसेना आदि अनेक विभाग होते हैं । उसी प्रकार हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के समष्टि कार्य में अनेक देवताओं की उपासना, यज्ञ-याग इत्यादि करना पडता है ।’
सस्ते विचारों के अहंकारी बुद्धिवादी !
‘जिस प्रकार नेत्रहीन को स्थूल जगत दिखाई नहीं देता; उस प्रकार साधना न करनेवालों को तथा बुद्धिवादियों को सूक्ष्म जगत दिखाई नहीं देता । नेत्रहीन यह स्वीकार करता है कि उसे दिखाई नहीं देता; परंतु बुद्धिवादी अहंकार से कहते हैं कि ‘सूक्ष्म जगत जैसा कुछ नहीं होता !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले