सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर उसके समर्थक आसमान सिर पर उठा लेते हैं । वे भूल जाते हैं कि प्राणी और मानव इनमें महत्त्वपूर्ण भेद यही है कि प्राणी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुसार अर्थात स्वेच्छा से आचरण करते हैं; इसके विपरीत मानव को व्यक्तिगत स्वतंत्रता भुलाकर, क्रमशः परिवार, समाज राष्ट्र एवं धर्म के हित का विचार कर आचरण करना अर्थात चरण प्रति चरण स्वेच्छा के स्थान पर परेच्छा से आचरण करना अर्थात अंत में ईश्वरेच्छा से आचरण करना उससे अपेक्षित है । ऐसा करने पर ही वह वास्तव में मानव बनता है; अन्यथा वह केवल मानव देहधारी प्राणी रह जाता है !’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ʻसनातन प्रभातʼ नियतकालिक