सहस्रों करोड रुपए के घोटाला प्रकरण में उत्तरदायी प्रत्येक व्यक्ति को दण्ड मिलना आवश्यक !
वर्ष २००३ में सामने आया अब्दुल करीम तेलगी का ३० सहस्र करोड रुपए के ‘फर्जी (झूठे) स्टाम्प पेपर घोटाले’ की चर्चा एक बार पुन: राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के माध्यम से चर्चा में है । ‘तेलगी घोटाला प्रकरण में भुजबळ का त्यागपत्र नहीं लिया होता, तो छगन भुजबळ कारागृह में जाते’, राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार ने जनपद-अध्यक्षों की सभा में ऐसा कहा । ‘वर्ष २००३ में त्यागपत्र लेने के उपरांत शरद पवार वर्ष २०२३ में यह जानकारी क्यों दे रहे हैं ?’, सामान्य लोगों के मन में ऐसा प्रश्न आ रहा है । राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन एक राजनेता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल ऐसी जानकारी उपलब्ध कराए, अपितु उस घोटाले के दोषियों पर कार्यवाही करने का प्रयास करे । ‘फर्जी (झूठा) स्टाम्प पेपर घोटाले’ ने महाराष्ट्र सहित अनेक राज्यों की अर्थव्यवस्था को भी हानि पहुंचाई है तथा अनेक फर्जी (झूठा) ‘स्टाम्पों’ पर हुए लेनदेन को नियमित करने में जो हानि हुई है, वह अलग ! इसलिए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के इस कीचड में घोटाले के अन्य आरोपियों को कब दण्ड होगा ? इस प्रसंग में यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न भी उठ रहा है ।
घोटाले से संबद्ध अनेक नाम रहस्यमय !
यह घोटाला महाराष्ट्र सहित अनेक राज्यों में फैला था, जिसमें तेलगी को सहायता करनेवाले सरकारी कर्मचारी, अधिकारी तथा जन प्रतिनिधियों का भी समावेश था । इस प्रकरण में मुंबई के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी पकडे गए थे । आरंभ में महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक ‘विशेष जांच दल (एसआईटी)’ जांच कर रही थी; किंतु कुछ समय पश्चात यह प्रकरण केंद्रीय जांच ब्यूरो को (‘सीबीआई’ को) सौंप दिया गया । यह जांच सीबीआई को देने पर उसने धीमी गति से इसकी जांच की । इस प्रकरण में तेलगी की ‘नार्को’ जांच की एक ‘सीडी’ (ध्वनिचित्र चक्रिका) जनता के सामने आई जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस के बडे नेताओं के नाम थे । विशेष बात यह कि जांच पूर्ण होने के पूर्व ही सीबीआई प्रवक्ता ने यह कहकर जांच पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया कि इसमें जिनके नाम लिए गए हैं, उनकी संलिप्तता के कोई प्रमाण नहीं मिले !
तत्पश्चात अपराध स्वीकारने पर तेलगी को ३० वर्षों का कारावास एवं २०२ करोड रुपए का दण्ड हुआ । दण्ड मिलने के उपरांत मधुमेह तथा अन्य व्याधियों से अक्तूबर २०१७ में तेलगी का निधन हो गया तथा इस घोटाले से संबंधित अन्य कार्यवाहियां भी सदा के लिए बंद हो गईं । तेलगी के घोटाले ने लगभग बारह (एक दर्जन) राज्यों में हाथ पैर फैला रखे थे । महाराष्ट्र सहित कर्नाटक तथा अन्य कुछ राज्यों में सरकारी स्टाम्प बेचे नहीं जा रहे थे, अपितु हाट में मिलनेवाले स्टाम्प बेचे जा रहे थे । इस प्रकरण में ‘एस.आइ.टी.’ ने ६६ लोगों को पकडा था, जिसमें ४५ अभियुक्तों ने अपराध स्वीकार किया परंतु उनमें से अधिकांश लोग दण्ड भुगतकर बाहर आ गए । शेष १२ अभियुक्तों पर अभियोग चल रहा है । इनमें पूर्व मंत्री, सनदी अधिकारी, तथा तेलगी के परिवार के सदस्य भी सम्मिलत हैं । जांच चलते समय तेलगी ने अनेक बार कहा था, ‘इस प्रकरण में मैं अकेला नहीं हूं अपितु मुझे सहायता करनेवाले अनेक लोग हैं ।’ उस प्रसंग से संबंधित सभी धारिकाएं(फाइल्स) एवं उनके साक्ष्य (प्रमाण) उसने अपने अधिवक्ताओं को दिए थे; दुर्भाग्य से उसे कभी न्यायालय के सामने नहीं लाया गया, जिस कारण वे नाम सदा छिपे ही रहे ।
पार्टी विभाजन के पश्चात ही घोटाले पर टिप्पणी !
छगन भुजबळ जबतक शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस में थे, तब तक कभी भी उन्होंने इस प्रकरण पर विशेष टिप्पणी नहीं की; किंतु जब उन्होंने पार्टी छोडी, तो सर्वप्रथम उन्होंने शरद पवार पर बिना कारण तेलगी प्रकरण में मेरा त्यागपत्र लेने का आरोप लगाया, जिस पर पवार ने भी प्रतिक्रिया दी । इस प्रकरण में विधायक जितेंद्र आव्हाड ने भी ‘ट्वीट’ कर कहा कि आरंभ में ‘सीबीआइ के आरोपपत्र में कुछ लोगों के नाम थे । उन्होंने कहा, इसके पश्चात उन्हें हटा दिया गया । इसका अर्थ यह है कि यदि आव्हाड के पास उसी समय यह जानकारी थी, तो इतने वर्षाें के उपरांत वे यह जानकारी क्यों दे रहे हैं ? राष्ट्रवादी कांग्रेस से कुछ विधायकों के पार्टी छोडकर जाने के पश्चात इस घोटाले पर टिप्पणी क्याें हो रही है ? सभी यदि एक ही पक्ष में होते, तो क्या इस प्रकार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते ? इस पर कठोर कार्यवाही आवश्यक !
७० सहस्र करोड सिंचाई रुपए के सिंचाई घोटाला प्रकरण में उपमुख्यमंत्री अजित पवार पर भी आरोप लगा था । अजित पवार १९९९ से २००९ की अवधि में जल संसाधन मंत्री थे, उसी समय ये सभी प्रकरण हुए । इस प्रोजेक्ट में घटिया काम, अनियमितता तथा भ्रष्टाचार के प्ररकरण में इसके ठेकेदारों एवं अधिकारियों के विरुद्ध अपराध लिखाए गए । तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी आरोप लगाया था कि वर्ष २०१४ में ‘सिंचाई परियोजनाओं में केवल ३ प्रतिशत लाभ हुआ था किंतु प्रत्यक्ष में अजित पवार पर कोई अपराध पंजीकृत नहीं किया गया । इसलिए स्टाम्प पेपर घोटाले में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस के बडे नेताओं के नाम सदा चर्चा में रहे; किंतु प्रत्यक्ष में इनमें से किसी पर भी अपराध नहीं लिखाया गया, न ही उन्हें दण्ड दिया गया ।यदि ऐसा है, तो जनता के कर (टैक्स)से सहस्रों करोड रुपए की लूट का उत्तरदायी कौन ? उन्हें दण्ड कब दिया जाएगा? सरकारी-प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार सबसे बडा कीट है, जिससे देश की जनता की बहुत बडी हानि हो रही है । इससे देश की अपकीर्ति होती है । इसलिए वर्तमान केंद्र सरकार को स्टाम्प पेपर घोटाले के सभी आरोपियों को ढूंढकर उन्हें दण्ड दिलाने तका प्रयास करना चाहिए, साथ ही भ्रष्टाचारियों को तत्काल कठोर दण्ड दिया जाए, ऐसा नियम तथा उसके प्रभावी कार्यान्वयन का प्रयास करना चाहिए, राष्ट्रप्रेमियों की ऐसी ही अपेक्षा है !