अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ‘चंद्रयान-१’ के डेटा का अध्ययन करने के उपरांत दावा किया है !
वॉशिंग्टन (अमेरिका) – अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भारत के ‘चंद्रयान-१’ द्वारा भेजी जानकारी का अध्ययन करने के उपरांत दावा किया है कि पृथ्वी पर स्थित उच्च ऊर्जा के ‘इलेक्ट्रॉन’ (सूक्ष्म कण) चंद्रमा पर पानी बना रहे हैं । ये इलेक्ट्रॉन पृथ्वी के ‘प्लाज्मा शीट’ में (सूक्ष्म कणों के आवरण में) हैं, उनके कारण पृथ्वी के मौसम में परिवर्तन होता है । ‘नेचर एस्ट्रॉनॉमी’ जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया है ।
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— Tech Gyan (@TechGyanlife) September 15, 2023
१. इन वैज्ञानिकों का दावा है कि ये इलेक्ट्रॉन चंद्रमा पर स्थित चट्टानों एवं खनिजों को पिघला रहे हैं । इस कारण चंद्रमा के मौसम में भी परिवर्तन हो रहा है । इन इलेक्ट्रॉन्स के कारण चंद्रमा पर पानी बनने में सहायता हुई होगी ।
२. चंद्रमा पर १४ दिन रात्रि एवं १४ दिन सूर्य का प्रकाश रहता है । दावा किया जाता है कि जब यहां सूर्य का प्रकाश नहीं होता, तब सौर वायु की वर्षा होती है । इसी अवधि में पानी की निर्मिति होती है ।
३. वर्ष २००८ में ‘चंद्रयान-१’ प्रक्षेपित किया गया था । इस अंतरिक्ष यान द्वारा भेजी जानकारी से प्रमाणित हो गया कि चंद्रमा पर बर्फ है । वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय प्रदेश में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता । इस कारण वहां का तापमान माईनस २०० अंश सेल्सियस से अल्प हो सकता है, जो बर्फ के रूप में पानी का अस्तित्व दर्शाता है । तदुपरांत पानी की खोज में वहां ‘चंद्रयान-३’ को भेजा गया है ।
संपादकीय भूमिकाऋषि-मुनियों ने कहा है, ‘पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन चंद्रमा के कारण पृथ्वी के वातावरण में सूक्ष्म स्तर पर कुछ परिवर्तन होते रहते हैं । मानव मन पर भी उसका परिणाम होता है ।’ वैज्ञानिकों को अब इस पर भी गहन अध्ययन करना चाहिए ! |