भारत का चंद्र‘विक्रम’ !

ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार वैसे तो ‘चंद्रमा’ मानव मन का कारक ! ‘इसी चंद्रमा पर क्या भारत का ‘चंद्रयान-३’ सफलता से उतरेगा?’, इस प्रतीक्षा में १४० कोटि ‘मन’ लगे थे । भारतीय अंतरिक्ष संस्‍था के, अर्थात ‘इसरो के प्रतिभावान वैज्ञानिकों की तपस्या, साथ ही कोटि-कोटि भारतीयों की प्रार्थनाएं, होम-हवनादि अनुष्‍ठान सफल हुए तथा अंतत: भारत का अभियान सफल हुआ ! चंद्रमा पर यशस्‍िवता से चरण रखने में भारत तत्‍कालीन सोवियत युनियन, अमेरिका तथा चीन के पश्चात चौथा देश बना, सर्वप्रथम भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पैर रखने का गौरव प्राप्त हुआ है ।


पराक्रम विशिष्ट है !

भारत का यह पराक्रम अनेक अर्थाें से विशेष है । भारत को ‘चंद्रयान-३’ में हुआ पूरा व्यय ६१५ करोड रुपए अर्थात ७४ मिलियन अमेरिकी डॉलर था । हॉलीवुड के २ हॉलीवुड के चलचित्रों का अध्ययन करने पर ध्यान में आता है कि यह व्यय कितना थोडा था । ‘ग्रेविटी’ गुरुत्‍वाकर्षण का महत्त्व बताकर अंतरिक्ष के रोमांचक अनुभवों पर आधारित वर्ष २०१३ के चलचित्र पर ६४४ करोड रुपए का व्यय हुआ था । ‘भविष्‍य में पृथ्‍वी मानव के रहने के योग्य नहीं रहेगी, इसलिए अन्‍य ग्रहों को ढूंढने निकले मानव को विविध ग्रहों पर हुए विचित्र अनुभवों पर, विशेषकर वर्ष २०१४ में आइंस्टीन के ‘सापेक्षता सिद्धांत’ पर आधारित चलचित्र ‘इंटरस्‍टेलर’ के लिए प्रसिद्ध चित्रपट निर्माता ख्रिस्‍तोफर नोलान को १ सहस्र ३७० करोड रुपए तक व्यय करने पडे थे । यह राशि ‘चंद्रयान-३’ पर हुए व्यय से दुगुनी से भी अधिक है । ये दोनों ‘साइंस फिक्‍शन मूवीज’ हैं,अर्थात वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित कल्‍पना के आविष्‍कार को दर्शाने वाली मूवीज ! यही भारत का यह यथार्थ अभियान है । इसी से भारतीय वैज्ञानिकों की श्रेष्‍ठता ध्यान में आती है !

राष्‍ट्रीय आनंद के इस क्षण में हम भारतीयों पर नाक-भौं सिकोडने वालों को हम नहीं भूल सकते । यह घटना एक दशक पूर्व की है ! ‘न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स’ ने मंगल ग्रह की ओर ‘मंगलयान मिशन’ प्रक्षेपित करने पर भारतद्वेष से ग्रसित एक व्‍यंगचित्र प्रसिद्ध व्यंगपूर्ण चित्र प्रकाशित किया था । उसमें ‘एक कार्यालय में अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रसर देशों के प्रतिनिधि बैठे दिखाए गए थे तथा बाहर एक भारतीय किसान अपनी गाय के साथ दिख रहा था । वह द्वार खोलकर भीतर आने की अनुमति मांग रहा है’, इस प्रकार से यह व्यंग चित्र भारत को अपमानित करनेवाला था । निस्संदेह हमने ‘न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स’ को इसके लिए क्षमा मांगने के लिए बाध्य किया था तथा ३ वर्ष उपरांत ग्रह के मिशन (अभियान) में सफलता प्राप्त की दैनिक के माध्यम से पूरे पश्चिमी विश्व को दांतों तले उंगली दबाने पर बाध्य कर दिया था । आज भी भारत ने वैसा ही पराक्रम कर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अभिमान के साथ भारतीय राष्‍ट्रध्‍वज फहराया । अस्तु!

‘चंद्रयान-३’ की इस सफलता से अब शोध के अनेक द्वार खुल गए हैं । अब ‘विक्रम लैंडर’ से ‘प्रज्ञान रोवर’ नीचे आएगा तथा चंद्रमा पर हिम, पानी, गैस तथा खनिज पदार्थाें का अध्ययन करेगा । अमेरिका एवं चीन भविष्‍य में मनुष्यों को चंद्रमा पर भेजना चाहते हैं । इसमें भारत के इस शोध से बहुत लाभ मिलेगा । इससे पाश्चात्त्यों को भविष्‍य में संभावित मानव उपनिवेश का मार्ग भी सुगम होगा । इसमें उनका उद्देश्य निस्संदेह भारतीय दर्शन के पूर्णत: विपरीत है । पाश्चात्य ज्ञान ‘प्रकृति मनुष्य के लिए है, तथा उसे कैसे लूटा जाए, इसी में व्यय किया जाता है, जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकृति की ओर कृतज्ञता की दृष्टि से देखकर तथा विवेक जागृत रखकर मानव हित में कार्य करती है । इसलिए इसरो तथा भारत कभी भी पृथ्‍वी के संसाधनों को नष्‍ट कर चंद्रमा पर डाका डालने का विचार नहीं करेंगे !

सामान्य भारतीयों को लाभ ही होगा !

‘चंद्रयान-३’ की बडी सफलता में ‘इसरो’ को पूरे देश के २१ संस्‍थानों का योगदान है । ‘इसरो’ के प्रमुख श्रीधर पणिक्कर सोमनाथ के नेतृत्‍व में इन सभी संगठनों ने नया अध्‍याय लिखा; किंतु कुछ लोगों ने प्रश्न उठाया कि चंद्रमा पर पहुंचने के लिए भारत जैसे दरिद्र एवं निर्धन देश को इतना संघर्ष क्यों करना चाहिए ? इसका उत्तर यह केवल इतना ही है, कि विगत ७० वर्षों में विविध देशों ने मिलाकर १११ चंद्र मिशन चलाए, उनमें से केवल ८ अभियानों को ही कुछ मात्रा में सफलता मिली है । ऐसे अनेक अंतरिक्ष अभियान हुए हैं, उनसे सामान्य मानव जीवन को बहुत लाभ हुआ है तथा ‘चंद्रयान-३’ से भारतीयों को भी वही लाभ मिलेगा । ‘खगोल भौतिक शास्‍त्र’ की जटिलता; इंजीनियरिंग, पदार्थ विज्ञान जैसे विभिन्न विज्ञानों में कठिन समीकरणों एसं सिद्धांतों के आधार पर अंतरिक्ष -वाहनों के लिए विकसित तकनीक का उपयोग ‘वैक्‍यूम क्‍लीनर’ जैसी दैनंदिन उपयोग की वस्‍तुओं में किया जाता है, साथ ही विमान की उडान को नियंत्रित करने के लिए सटीक तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिसका उपयोग हृदय का स्पंदन (धडकन)नियंत्रित करने के लिए किया जात है । छायाचित्रकों (कैमरे)में काम आनेवाले पंप ‘सेंसर्स ही नहीं, अपितु इंटरनेट एवं ‘जीपीएस’ तकनीक का उद्गम भी इसी अंतरिक्ष तंत्रज्ञान के विकास से हुआ है । दूसरी बात यह है कि भारत के ‘चंद्रयान-३’ के सफल दूरगामी परिणाम विश्व में भारत का मान बढानेवाले सिद्ध होंगे । अंतरराष्‍ट्रीय राजनीति, व्‍यापार तथा अर्थव्‍यवस्‍था में बहुत सकारात्‍मक परिवर्तन देखने को मिलेंगे ।

अमेरिका तथा अन्‍य कुछ देश जिस प्रकार अंतरिक्ष अभियानों का निजीकरण कर उसका विकास करना चाहते हैं, इसरो भी अब वैसा ही प्रयास कर रहा है । केंद्र सरकार ने ‘इन-स्‍पेस’ प्रतिष्ठान कर उसके द्वारा निजी संस्थानों को भी इस कार्य से जोडना आरंभ कर दिया है । ‘चंद्रयान-३’ की सफलता से अब इस कार्यक्रम को बढावा मिलेगा । अंतरिक्ष विज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ युवाओं को आकर्षित करने के लिए भी इसी तरह की प्रेरणा दी जाएगी । इसलिए ‘विक्रम लैंडर’ द्वारा बनाया गया रिकॉर्ड कुल मिलाकर भारत के लिए सम्मान का ही विषय!

‘चंद्रयान-३’ द्वारा स्‍थापित रिकॉर्ड ने एक बार पुन: विश्व को भारतीय प्रतिभा की उत्कृष्टता दिखाई ।