पृथ्वी का कोई भी स्थान प्रदूषण-मुक्त नहीं है ! – शोध

वर्तमान में प्रयोग कर रहे ३ लाख ५० सहस्र से अधिक रसायनों से पर्यावरण प्रदूषित !

स्टॉकहोम (स्विडेन) – स्टॉकहोम विश्‍वविद्यालय के प्राकृतिक विज्ञान विभाग के वैज्ञेनिकों ने एक शोध द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है, ‘प्रशांत महासागर में २६ सहस्र २४६ फूट गहराई तक प्रदूषण फैल गया है । २० वें शतक में मानव निर्मित प्रदूषणों में से ६० प्रतिशत प्रदूषण समुद्र की गहराई तक इकट्ठा हुआ है । इससे पृथ्वी का कोई भी स्थान प्रदूषण-मुक्त नहीं है ।’ ‘द नेचर’ नामक वैज्ञानिक नियतकालिक द्वारा अप्रैल माह में यह अनुसंधान प्रस्तुत किया गया है ।

१. शोधकर्ता का कहना है कि वर्तमान में पूरे विश्व में प्रयोग किए जा रहे ३ लाख ५० सहस्र से अधिक रसायन पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं । प्रशांत महासागर के तल में व्याप्त प्रदूषण मानव के लिए संकटकारी है ।

२. पैसिफिक महासागर की २६ सहस्र २४६ फूट गहराई में पृथ्वी पर स्थित सबसे गहरे एवं दुर्गम स्थान पर ‘अटाकामा ट्रेंच’ नामक मानव निर्मित प्रदूषण कुछ दिन पूर्व ही मिले हैं । शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसे दुर्गम स्थान पर ‘पालीक्लोरिनेटेड बाइफेनिल्स’ नामक प्रदूषक मिले हैं ।

पिछले शतक में ‘पालिक्लोरिनेटेड बाइफेनिल्स’ का हुआ अतिरिक्त प्रयोग !

‍१९३० से १९७० के दशक में अधिकांश उत्तरी गोलार्ध में ‘पालिक्लोरिनेटेड बाइफेनिल्स’ का बडी मात्रा में निर्माण किया गया । यह विद्युत उपकरण, ‘पेइंट’ (रंग) एवं अन्य अनेक वस्तुओं के लिए प्रयोग में लाया गया । वर्ष १९६० के दशक में ध्यान में आया कि यह समुद्री जीव को हानि पहुंचा रहा है । इस कारण १९७० के दशक के मध्य में उनके प्रयोग पर वैश्विक स्तर पर प्रतिबंध लगाया गया ।

संपादकीय भूमिका 

प्रकृति के लिए हानिकारक रसायनों की निर्मिति करनेवाले विज्ञान का क्या यही फल है ? इससे प्रश्न उठता है, ‘विज्ञान मानव के लिए वरदान अथवा अभिशाप ?’