‘अश्लील (पॉर्न) वीडियो देखना’, यह आजकल की सामान्य बात हो गई है । उसमें कुछ भी बुराई नहीं है, ऐसा कुछ लोगों को लगता है । वास्तव में ‘पॉर्न’ देखने की आदत सर्वाधिक बुरी है तथा कालांतर में संपूर्ण समाज को उसके परिणाम भुगतने पडेंगे । बडे बच्चे अश्लील वीडियो देखते हैं; परंतु अब धार्मिक क्षेत्र के मान्यवर भी यह कृत्य कर रहे हैं, यह क्षोभजनक है । ईसाई धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने यह स्वीकार किया है कि नन एवं पादरी इस प्रकार के वीडियो देखते हैं । तथाकथिक आधुनिकतावादियों एवं धर्मनिरपेक्षवादियों ने तो इस लज्जाजनक दुष्कृत्य का विरोध भी नहीं किया और उसके विरुद्ध मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला । पोप ने भविष्य में होनेवाले पादरियों के लिए आयोजित सभा में यह बात स्वीकार की थी । उन्होंने यह भी कहा कि सामान्य मनुष्य इसी पद्धति से शैतान बन रहा है । ‘भविष्य के पादरियों को इससे बोध लेकर अच्छी बातें अपनानी चाहिए । स्वयं को धर्म के विद्वान कहलानेवालों ने अथवा धर्म के विषय में हितोपदेश देनेवालों ने ऐसा कृत्य किया, तो ईसाई धर्म का पतन हो सकता है, नन एवं पादरियों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए । क्या ऐसे कृत्य करनेवालों को इस पद पर रहने का अधिकार है ? पोप ने यह भी कहा, ‘जो प्रतिदिन शुद्ध हृदय से प्रभु यीशू का पूजन करता है, वह अश्लीलता के अधीन नहीं हो सकता । ‘यीशू के प्रति आदर का भाव न रखनेवाले तथा उसी कारण अश्लीलता की ओर अग्रसर नन एवं पादरी तो ईसाई धर्म के लिए कलंक ही हैं’, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा ।
अश्लील वीडियो देखे जाते हैं, उसका अर्थ यही है कि उन विचारों का बीज तो मन में होगा ही ! इसी यौन भावना के चलते अनेक पादरी अन्यों पर यौन अत्याचार करते हैं । पादरियों द्वारा होनेवाले यौन शोषण की केवल लडकियां ही नहीं; अपितु लडके भी बलि चढते हैं । अनेक पादरियों ने वहां की ननों के साथ बलात्कार भी किए हैं । यह अनेक दशकों से चलता आ रहा है । आज के समय में तो ऐसी घटनाओं की संख्या और बढती जा रही है । ऐसे पादरियों का होना ईसाई धर्म के लिए कलंक ही है । इसके कारण ईसाई धर्म धीरे-धीरे पतन की ओर बढ रहा है । ईसाई धर्म पर लगा यह कलंक मिटाने के लिए पोप को कठोर कदम उठाने चाहिए । इसके लिए कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है; परंतु अभी तक घटित अनेक प्रकरणों में किसी प्रकार की कार्यवाही हुई ही नहीं है, अपराध पंजीकृत नहीं हुआ है तथा प्रमाणित आरोपी संबंधित पादरियों को कारावास का दंड भी नहीं दिया गया है । इसके कारण वासनांध पादरियों का यह उन्माद बढता चला गया । आत्मसंयम के अभाव में उनमें यौन अत्याचार करने का साहस बढता गया । इसके फलस्वरूप यौन अत्याचारों की घटनाओं में वृद्धि हुई । इस पृष्ठभूमि पर विश्व स्तर पर एक परिषद का भी आयोजन किया जाता है । वास्तव में देखा जाए, तो ऐसी बातों के लिए परिषद का आयोजन करने की स्थिति आना ही दुर्भाग्यजनक है । इसे टालने के लिए कठोर से कठोर दंड देना ही इन वासनांधों पर लगाम लगाने का उत्तम उपाय है ।
चर्च पर प्रतिबंध लगना चाहिए !
यौन शोषण का यह रोग विदेशों में भी बडे स्तर पर फैल रहा है । वर्ष २०२१ में यह जानकारी सार्वजनिक हुई थी कि फ्रांस में वर्ष १९५० से लेकर अब तक लगभग २ लाख १६ सहस्र छोटे बच्चे कैथोलिक पादरियों के यौन शोषण की बलि चढ गए हैं । जर्मनी स्थित १ सहस्र ६७० पादरियों द्वारा वर्ष १९४६ से वर्ष २०१४ की अवधि में ३ सहस्र ६७७ अवयस्क बच्चों पर यौन अत्याचार किए गए । संक्षेप में बताना हो, तो ‘चर्च उपासना के केंद्र अथवा प्रार्थना के केंद्र नहीं; अपितु यौन अत्याचार के केंद्र बन गए हैं’, ऐसा कहना पडेगा । अनेक बार अपराधी पादरियों को संरक्षण दिए जाने से ही यौन शोषण की घटनाएं बढती चली गईं । इस प्रकार समाज के सामने ईसाईयों के प्रार्थनास्थलों की पोल खुलती जा रही है । लैंगिकता की विषलता के कारण ईसाई पंथ की नींव डगमगा रही है । चर्च से प्रेमभाव एवं शांति की नहीं, अपितु क्या यौन अत्याचारों की ही सीख दी जाती है ?, यह प्रश्न उठता है । क्या ऐसा करना शांति, प्रेम एवं सहिष्णुता की डींगें हांकनेवाले पादरियों को शोभा देता है ? इसमें केवल पादरी ही नहीं; अपितु बिशप अथवा कार्डिनल का भी समावेश होता है । यौन अत्याचारों की बढती विकृति को रोकने के लिए सर्वप्रथम चर्च में निश्चित रूप से क्या चलता है ?, इसकी खोज करना आवश्यक होगा । चर्च यौन अत्याचारों के केंद्र तो हैं ही; परंतु वहां से धर्मांतरण का बीज भी बोया जा रहा है, इस वास्तविकता को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता । इसलिए चर्च का प्रतिदिन उजागर हो रहा काला पक्ष देखते हुए किसी ने उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की, तो उसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए !
ईसाई तुष्टीकरण का परिणाम !
हिन्दू संतों पर जब यौन अत्याचारों के झूठे आरोप लगते हैं, तब सर्वत्र के प्रसारमाध्यम पूरा बल देकर हिन्दू धर्म का विरोध करने के लिए तैयार खडे होते हैं; परंतु जब नन अथवा पादरियों द्वारा अश्लील वीडियो देखे जाने की घटना कितने समाचारपत्रों और समाचार वाहिनियों ने समाज के सामने उजागर की, इसका यदि शोध किया जाए; तो उनकी संख्या बहुत ही अल्प होगी ! ऐसे माध्यम तो मानो ईसाईयों के हाथों की कठपुतलियां ही हैं ! हिन्दू धर्म की ओर ‘धर्मद्वेष’ की दृष्टि से देखनेवाले ईसाई धर्म में चल रहे इन दुष्कृत्यों के विषय में कुछ भी क्यों नहीं बोलते ? इसी से उनका ईसाईप्रेम उजागर होता है, यही सत्य है ! हिन्दू पुजारियों के संदर्भ में प्रत्येक स्तर पर विरोधात्मक भूमिका ली जाती है; परंतु पादरियों के किसी भी कृत्य का समर्थन किया जाता है । यह धर्मद्वेषी मानसिकता ही ऐसी घटनाओं का मूल है । पादरियों के दुष्कृत्यों के विषय में मौन धारण करनेवालों के कारण अथवा उनका छुपा समर्थन करनेवालों के कारण ही ऐसी घटनाएं कम नहीं होती, इसे ध्यान में लेना पडेगा । चर्च में पल-बढ रही इस वासनांध एवं दानवी वृत्ति को रोकना ही समय की मांग है ।