इराणी महिला पत्रकार के द्वारा हिजाब हटाने का वीडियो प्रसारित कर अन्य महिलाओं को भी उसका अनुसरण करने का आवाहन !

भारत की तथाकथित महिलावादी नेता, संगठन, महिला आयोग आदि क्या इराण की इस महिला का समर्थन करेंगी ? – संपादक

तेहरान (इराण) – इराणी महिला पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्री मसिह अलीनेजाद ने महिलाओं पर की जानेवाली हिजाब की जबरदस्ती ठुकरा दी है । मसिह ने एक वीडियो प्रसारित किया है । इस वीडियो में कुछ सेकंद के लिए मसिह हिजाब पहनी हुई दिखाई दे रही हैं । ‘इस्लामिक रिपब्लिक, तालिबान और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन हमें इस रूप में देखना चाहते हैं’, ऐसा उन्होंने हिजाब पहने हुए रूप के विषय में कहा; परंतु उन्होंने तुरंत ही हिजाब हटाकर ‘यह मेरा वास्तविक रूप है’, ऐसा कहते हुए वे ऐसा कह रही है । इस वीडियो में उन्होंने मुसलमान महिलाओं से हिजाब न पहनने का आवाहन किया है ।

मसिह ने इस वीडियो में आगे कहा है कि,

१. हिजाब निकाला, तो मुझे इराण में केशों के साथ लटकाया जाएगा, विद्यालय से हटा दिया जाएगा, कोडे मारे जाएंगे, कारागार में डाला जाएगा, आर्थिक दंड सुनाया जाएगा, सडक पर पुलिस मुझे मारेगी और मेरे साथ बलात्कार भी हुआ, तब भी वह मेरी ही चूक होगी’, जैसे कई धमकियां दी जाएंगी ।

२. मैने हिजाब निकाला, तो मेरी ही मातृभुमि में मैं स्त्री की भांति जी नहीं सकूंगी । पश्चिमी देशों में मुझे बताया गया कि यदि मैने अपनी व्यथाएं किसी को बताईं, तो इस्लामोफोबिया (इस्लाम के प्रति के विद्वेष के लिए) मैं ही उत्तरदायी रहूंगी ।

३. मैं मध्य-पूर्व एशिया की एक महिला हूं । मुझे इस्लामी कानूनों से भय प्रतीत होता है । मैने जिन क्रूरताओं का अनुभव किया है, उनसे मुझे भय लगता है । ‘फोबिया’ (किसी बात का भय लगना) यह एक अतार्किक भय है; परंतु मेरे और मध्य-पूर्व के कई महिलाओं के शरीया कानून के अधीन रहने के भय के पीछे एक तर्क है, चलें बोलेंगे’, ऐसा कहते हुए उन्होंने महिलाओं का आवाहन किया है ।

४. आपको ऐसे कितने देश ज्ञात हैं, जहां महिलाओं को हिजाब न पहनने पर कारागार में डाला जाता है अथवा कोडे मारे जाते हैं ? हिजाब की अनिवार्यता के विरुद्ध आवाज उठानेवाली न्यूनतम ५ कार्यकर्त्रियां कारागार में बंद हैं । सबा कोर्दफशारी केवल २० वर्ष की थी, उसे २७ वर्ष का कारावास और यास्मान को १६ वर्ष का दंड सुनाया गया ।

५. यह २१वीं शताब्दी है और बिना कष्ट के मुक्ततापूर्ण जीवन व्यतीत करने की हमारी इच्छा है । हमें बिना किसी बंधन के किसी भी धर्म की आलोचना करने की स्वतंत्रता चाहिए ।