टीका उत्पादन करने वाली कंपनियां विश्व से कोरोना समाप्त करना नहीं चाहती ! – ‘जी न्यूज’ चैनल का निष्कर्ष

‘फायजर’ कंपनी में पैसा निवेश करनेवालों को ७५ सहस्र करोड रुपयों का लाभ, तो ‘मॉडर्ना’ का उत्पादन ५२ सहस्र करोड रुपयों से अधिक हुआ !

यह निष्कर्ष सही होगा, तो कोरोना के नामपर इन कंपनियों की ओर से विश्वभर के लोगों को लूटा जा रहा है और अनेक देशों को और वहां जनता को त्रस्त किया जा रहा है, ऐसा ही कहना पडेगा ! – संपादक

नई दिल्ली – कोरोना महामारी समाप्त ही ना हो, इसके लिए टीका उत्पादन करने वाली कंपनियां प्रयास कर रही हैं, ऐसा निष्कर्ष विविध स्तरों पर अध्ययन कर ‘जी न्यूज’ इस हिन्दी वृत्त चैनल के ‘डी.एन.ए.’ इस कार्यक्रम से रखा गया । ‘लोगों के मन में कोरोना का भय हमेशा के लिए रहने के लिए ये कंपनियां प्रयासरत हैं । इसके माध्यम से वे आर्थिक स्वार्थ साध रही हैं’, ऐसा इस कार्यक्रम में बताया गया ।

‘डी.एन.ए.’ में रखे गए सूत्र

१. कोरोना के नए रुप ‘ओमिक्रॉन’ का पहला मरीज २४ नवंबर के दिन दक्षिण अफ्रीका में मिला था; लेकिन इसकी जानकारी दिसंबर माह में विश्व को मिली । इससे जो डर निर्माण हुआ, उसके द्वारा कोरोना प्रतिबंधात्मक टीका बनाने वाली कंपनियां मालामाल हो गई हैं ।

२. ओमिक्रॉन के बाद अकेले अमेरिका में ‘फायजर’ और ‘मॉडर्ना’ इस टीका उत्पादक कंपनी में पैसा निवेश करने वालों को एक सप्ताह में ७५ सहस्र करोड रुपयों का लाभ हुआ; कारण ओमिक्रॉन’ के बाद इन कंपनियों के शेयर आसमान छू गए थे । ‘यदि कोरोना के नए नए प्रकारों के कारण ये कंपनियां मालामाल होती होंगी, तो वे कोरोना क्यों समाप्त होने देंगी ?’, ऐसा प्रश्न इस कार्यक्रम में पूछा गया ।

३. विश्व मे जो दवा निर्माण करने वाली कंपनियां कोरोना पर टीका बना रही हैं, वे कोरोना महामारी के पहले घाटे में थीं । वर्ष २०२० में मॉर्डना कंपनी को ४ सहस्र करोड रुपयों का घाटा हुआ था । जब उसकी कोरोना वैक्सिन बाजार में आई इसके बाद उसकी आय ५२ सहस्र ५०० करोड रुपए हुई । इसी प्रकार फायजर कंपनी की आय ६० सहस्र करोड रुपए थी और यह १ लाख ४२ सहस्र करोड इतनी हो गई है ।

४. भारत में ‘कोविशिल्ड’ टीका बनाने वाली कंपनी सीरम इन्स्टिट्यूट की आय ५ सहस्र ४४६ करोड रुपए थी । इस कंपनी को २ सहस्र २५१ करोड रुपयों का लाभ हुआ है । अर्थात इस कंपनी को ४१ प्रतिशत लाभ हुआ है । भारत बायोटेक और अन्य टीका उत्पादक कंपनियों को भी सहस्रो कराड रुपयों का लाभ हुआ है ।

५. सीरम इन्स्टिट्यूट का टीका भारत सरकार को २१५ रुपए में मिलता है, तो अर्जेंटीना और अप्रिâकी देशों में इस टीके की एक डोज ३ सहस्र रुपए तक है । फायजर कंपनी एक डोज बनाने के लिए केवल ७५ रुपए खर्च करती है, तो उसे २ सहस्र २०० रुपए में बेचती है ।

६. ‘यह कंपनियां गरीब और पिछडे देशों में कोरोना का टीका ना पहुंचे’, इसके लिए प्रयासरत रहने का कहा जा रहा है; इस कारण इन देशों में कोरोना का नया नया प्रकार मिलने से उनके टीके को अधिक महत्व मिलेगा । उदाहरणार्थ इन देशों में कोरोना का ओमिक्रॉन जैसा प्रकार मिला ।

७. जबतक विश्व के ८०० करोड लोग टीका नही लेते, तबतक विश्व की कोई भी शक्ति कोरोना को पराजित नही कर सकती, अब ऐसा ही कहा जा रहा है । अब पश्चिमी देशों में वर्धक मात्रा (बूस्टर डोज) देने का प्रयास हो रहा है, तो दूसरी ओर अप्रिâका उपमहाद्वीप के देशों में टीके की एक भी डोज पहुंची नही । वहां केवल ८ प्रतिशत लोगों ने ही टीका लिया है ।

८. अमेरिका के २० प्रतिशत नागरिकों ने टीका लिया है, साथ ही बूस्टर डोज भी लिया है । अर्थात वहां के ५ में से एक नागरिक ने बूस्टर डोज लिया है । अमेरिका के पास वर्तमान में इतना टीका उपलब्ध है कि, उनके नागरिकों को दो बार टीका लग सकता है । कनाडा ३ बार लोगों को टीका दे सकता है, साथ ही बूस्टर डोज भी दे सकता है; लेकिन ऐसा ना करके टीके का स्टॉक कर रहे हैं ।