वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में तीन दिवसीय संस्कृति संसद का आयोजन !
वाराणसी ( उ.प्र.) – यहां के रुद्राक्ष सभागार में अखिल भारतीय संत समिति एवं काशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा एवं दैनिक जागरण के तत्त्वावधान में तीन दिवसीय संस्कृति संसद का आयोजन किया गया । उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक स्वामी ज्ञानदेव सिंह ने कहा, ‘‘हिन्दू संस्कृति के आधार पर पुनः भारत अखंड होगा । वेद भारतीय संस्कृति का मूल है तथा वेदों का मूल संस्कृति एवं संस्कृत है ।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘माता ही हमारी प्रथम गुरु है, इसीलिए हमें यह शिक्षा दी जाती है – मातृ देवो भवः, अतिथि देवो भवः, आचार्य देवो भवः । हमारे लिए ये सभी महत्त्वपूर्ण हैं ।’’ उन्होंने सभी संप्रदायों के मूल भेद और सभी संस्कृति के वेदों को बताया तथा अंत में कहा कि ‘‘भारत अखंड था और हिन्दू संस्कृति के आधार पर ही पुनः अखंड होगा ।’’ इस तीन दिवसीय संस्कृति संसद में देश के १८ राज्यों से आए प्रतिनिधि उपस्थित थे ।
इस कार्यक्रम में प्रस्ताव पारित किया गया कि भविष्य में कैलाश से कन्याकुमारी तक भारत हमारा होगा व उसे चीन से मुक्त कराएंगे । इसी क्रम में, समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक भेद के समापन, पूजास्थलों को प्राचीन मूल स्थिति में करने, फिल्मों में मान्यता एवं विश्वास विरोधी प्रस्तुति रोकने संबंधी कानून बनाने, चीनी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी अपनाने, गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाए रखने, पर्यावरण रक्षा के लिए वृक्षारोपण एवं सनातन संस्कृति अनुसार जीवन जीने संबंधी प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुए ।
संस्कृति संसद में सहभागी संत एवं मान्यवर
मुख्य अतिथि परमपूज्य शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वतीजी महाराज, परमपूज्य जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी राजराजेश्वराचार्यजी महाराज, श्री महंत स्वामी ज्ञानदेव सिंहजी, अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष आचार्य अविचलदासजी, अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्यक्ष श्री महन्त रवीन्द्र पुरीजी, अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वतीजी, श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी, राज्यसभा सांसद श्रीमती रूपा गांगुली, रा.स्व. संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. इन्द्रेश कुमार, संस्कृति मंत्री नीलकण्ठ तिवार आदि मान्यवर उपस्थित थे ।