शारदीय नवरात्रि : धर्मशिक्षा
७ अक्टूबर (आश्विन शुक्ल प्रतिपदा) से १४ अक्टूबर (आश्विन शुक्ल नवमी) की अवधि में शारदीय नवरात्रोत्सव मनाया जाएगा । पूरे भारत में अत्यंत उत्साह एवं भक्तिमय वातावरण में नवरात्रि के व्रत का पालन किया जाता है । माता जगदंबा की कृपा पाने हेतु श्रद्धापूर्वक उपवासादि आराधना की जाती है । नवरात्रि की अवधि में घटस्थापना, मालाबंधन, अखंडदीप, सप्तशतीपाठ, गागर (घडा) फूंकना, डांडिया खेलना आदि कृत्य देवी के व्रत के ही विविध अंग हैं । इस लेख के माध्यम से देवी के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति में अधिकाधिक वृद्धि हो, ऐसी जगज्जननी श्री जगदंबा के चरणों में प्रार्थना है !
व्रत करने की पद्धति
यह व्रत कई परिवारों में कुलाचार के रूप में मनाया जाता है । आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन यह व्रत प्रारंभ होता है ।
१. घर में पवित्र स्थान पर एक वेदी बनाकर उस पर सिंहारूढ अष्टभुजादेवी की एवं यंत्र की स्थापना करें । यंत्र के समीप घट स्थापित कर उसकी एवं देवी की विधि-विधान से पूजा करें ।
२. नवरात्रि महोत्सव में कुलाचार के अनुसार घटस्थापना एवं मालाबंधन करें । खेत की मिट्टी लाकर उससे उंगली के दो पोर इतना मोटा चौकोनी परत बनाकर उसपर (पांच अथवा) सात प्रकार के अन्न बीज बोएं । जौ, गेहूं, तिल, मूंग, राल, सांवा, चना, ये सप्तान्न हैं ।
३. नौ दिन तक प्रतिदिन कुमारिकापूजन कर उन्हें भोजन कराएं । सुहागिन अर्थात प्रकट शक्ति, तथा कुमारिका अर्थात अप्रकट शक्ति । प्रकट शक्ति का कुछ मात्रा में अपव्यय होने के कारण सुहागिन की तुलना में कुमारिका में कुल शक्ति अधिक होती है ।
४. ‘अखंड दीपप्रज्वलन, उस देवी के माहात्म्य का पठन (चंडीपाठ), सप्तशतीपाठ देवीभागवत, ब्रह्मांडपुराण में वर्णित ललितोपाख्यान का श्रवण; ललितापूजन, सरस्वतीपूजन, उपवास, जागरण आदि कार्यक्रम कर अपने सामर्थ्यानुसार नवरात्रि महोत्सव मनाएं ।
५. भक्त का उपवास हो, तो भी देवता को नित्य के समान अन्न का भोग लगाएं ।
६. इस अवधि में उत्तम आचार का एक अंग मानकर श्मश्रू न करना (दाढी-मूंछ एवं सिर के बाल न काटना), कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना, पलंग एवं गद्दे पर न सोना, सीमा का उल्लंघन न करना, पादत्राण (जूते-चप्पल) न पहनना, ऐसे विविध आचारों का पालन किया जाता है ।
७. नवरात्रि की संख्या को महत्त्व देकर कुछ लोग अंतिम दिन भी नवरात्रि रखते हैं; परंतु शास्त्रानुसार अंतिम दिन नवरात्रि विसर्जन आवश्यक है । उस दिन भोजनप्रसाद होने पर उसी दिन सर्व देवताओं का अभिषेक एवं षोडशोपचार पूजा करें । अन्यथा दूसरे दिन पूजाभिषेक करें ।
८. घटस्थापना के दिन बोए हुए अन्न के अंकुरित पौधे विसर्जन के समय देवी को चढाते हैं । उन पौधों को ‘शाकंभरी देवी’ मानकर स्त्रियां उन्हें सिर पर रखकर विसर्जन करने के लिए ले जाती हैं ।
९. नवरात्रि की स्थापना एवं विसर्जन के समय देवताओं का ‘उद्वार्जन’ अवश्य करें । (उद्वार्जन करना अर्थात देवता की प्रतिमा को स्वच्छ कर उन्हें चमकाना ।)
१०. अंत में स्थापित घट एवं देवता का विसर्जन करें ।
११. नवरात्रि अथवा अन्य धार्मिक विधियों में दीप अखंड जलते रहना, यह पूजाविधि का ही भाग है । इस कारण वह दीप वायु, तेल की मात्रा घटने से, कालिख इत्यादि कारणों से बुझने पर उन कारणों को दूर कर दीप पुनः प्रज्वलित करें और प्रायश्चित स्वरूप अधिष्ठात्री देवता का १०८ अथवा १००८ बार नामजप करें ।
१२. दुर्गाष्टमी : दुर्गापूजा का उत्सव बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में व्यापक स्तर पर एवं धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन देवी उपासना के अनेक अनुष्ठान होते हैं, इस कारण यह तिथि महाष्टमी के नाम से जानी जाती है । अष्टमी एवं नवमी तिथियों के संधिकाल में देवी शक्ति धारण करती हैं, इसलिए दुर्गा के चामुंडा नामक रूप की ‘संधिपूजा’ की जाती है । महाष्टमी पर प्रातःकाल शुचिर्भूत होकर भगवती की वस्त्र, शस्त्र, छत्र, चामर आदि राजचिह्नों सहित पूजा करनी चाहिए । उस समय भद्रावतीयोग हो तो पूजा संध्याकाल में करें एवं अर्धरात्रि में बलि प्रदान करें ।
१३. गागर फूंकना : इस दिन चावल के आटे से देवी का मुखौटा बनाकर उसे वस्त्रालंकार से सजाकर देवी को स्थापित करते हैं । पूजन करने के पश्चात सुहागिनें ब्राह्मण स्त्रियां गागर फूंकती हैं । वे दोनों हाथों से गागर उठाकर उसमें फूंक मारती हैं, जिससे नाद की निर्मिति होती है ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘शक्ति की उपासना’)
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