चोट से निराश हुए विकलांग भारतीय खिलाडी ने श्रीमद्भगवद्गीता पढने से प्राप्त उत्साह के कारण जीता कांस्य पदक !

टोक्यो (जापान) के पैरालंपिक में एक विशेष घटना !

  • क्या श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व न मानने वाले आधुनिकतावादी अब अपना मुंह खोलेंगे ? – संपादक
  • जो लोग निराशा पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति से उपचार करने के पश्चात भी ठीक नहीं होते हैं, क्या वे अब तो अध्यात्म का महत्व समझेंगे ? – संपादक
कांस्य पदक प्राप्त भारतीय खिलाडी शरद कुमार

टोक्यो (जापान) – यहां चल रहे ‘पैरालंपिक’ (विकलांगों का ओलंपिक) में भारतीय खिलाडी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं । उसमें, भारतीय खिलाडी शरद कुमार ने ऊंची छलांग में कांस्य पदक प्राप्त किया । इस विषय में शरद कुमार ने कहा, ‘अभ्यास के समय मेरे घुटने में चोट लग गई थी । इसलिए, मैं चिंतित था, ‘क्या मैं अंतिम मैच में खेल पाउंगा ?’, ‘क्या मुझे पदक मिलेगा ?’, ऐसे विचार मुझे कष्ट दे रहे थे । मैं अंतिम मैच से हट जाने का विचार कर रहा था । मैच से पूर्व संपूर्ण रात्रि मैं रोता रहा । रात्रि में मैंने अपने परिवारजनों से बात की । मेरे पिता ने मुझे श्रीमद्भगवद्गीता पढने एवं ‘मैं क्या कर सकता हूं ?’ इस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा । ‘जो मेरे हाथ में नहीं है, उस पर ध्यान न देने’ का भी मुझे उन्होंने परामर्श दिया । तत्पश्चात, मैंने श्रीमद्भगवद्गीता पढी । दूसरे दिन मुझे लगी चोट भूलकर मैं अंतिम मैच के समय ऊंची छलांग लगाने के लिए सिद्ध हो गया । प्रत्येक छलांग लगाना, यह मेरे लिए एक युद्ध ही था । मुझे जो कांस्य पदक मिला है, वह (मेरे लिए) स्वर्ण पदक ही है । जब शरद कुमार २ वर्ष के थे, तब उन्हें पोलियो की नकली खुराक दी गई थी । इस कारण उनका बायां पैर लकवाग्रस्त हो गया था ।