घनघोर आपातकाल में अपनी सुरक्षा हेतु अच्छी साधना करके भगवान का भक्त बनना ही आवश्यक है ! – पूज्य नीलेश सिंगबाळ, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति

पू. नीलेश सिंगबाळजी

वाराणसी (उ.प्र.) – कोरोना के इस महामारी के काल में सभी को यह अनुभव हो गया होगा कि ईश्वर की भक्ति ही हमारी रक्षा कर सकती है । समाज साधना कर आध्यात्मिक बल अर्जित कर सके इस उद्देश्य से ८ मास पूर्व सनातन संस्था की ओर से पूरे देश में ऑनलाइन सत्संग शृंखला का आयोजन किया गया । संस्था की ओर से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल, असम आदि राज्यों के ऑनलाइन सत्संग शृंखला में जुडे जिज्ञासुओं के लिए एक सत्संग समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें संतों की वंदनीय उपस्थिति थी । समारोह का प्रारंभ प्रार्थना के उपरांत संत मार्गदर्शन से हुआ, जिसमें गुरु की अगाध महिमा का वर्णन करते हुए गुरुपूर्णिमा के अवसर पर तन-मन-धन का अधिकाधिक त्याग कर सेवा करने का महत्त्व बताया गया । उसके उपरांत अनुभव कथन सत्र में कुछ जिज्ञासुओं ने सत्संग में बताए प्रयास कर उन्हें हुई अनुभूतियां भावपूर्ण रूप से बताईं । इसका आध्यात्मिक विश्लेषण हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी ने किया ।

आगे उन्होंने जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन करते हुए कहा, ‘‘वर्तमान में कोरोना महामारी, चक्रवाती तूफान इत्यादि संकट आगामी तीव्र आपातकाल के झलक समान है । ऐसे समय में भी ईश्वर की भक्ति ही हमें तारेगी । अध्यात्म पंचमहाभूत एवं निर्गुण ईश्वर से संबंधित है । अध्यात्म अनंत और व्यापक है, जबकि विज्ञान बहुत ही सीमित ।’’ उन्होंने आ रहे इन संकटों का आध्यात्मिक कारण भी बताया । परात्पर गुरुदेवजी द्वारा दिखाया हुआ अध्यात्म का यह मार्ग हमारे लिए एक संजीवनी समान है । उनके द्वारा बताए गए मार्ग से साधना कर आज संस्था में १०७ साधक संत बन चुके हैं और सहस्रों साधक संत बनने के मार्ग पर हैं । श्रद्धा और भक्ति के बल पर आज अनेक पाठक, शुभचिंतक और धर्म प्रेमी भी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो चुके हैं ।

उन्होंने आगे बताया, ‘‘इस घनघोर आपातकाल में अच्छी साधना कर भगवान का भक्त बनना आवश्यक है । क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण जी ने गीता में कहा है, ‘न मे भक्तः प्रणश्यति’ अर्थात, मेरे भक्तों का नाश नहीं होता । आज का यह आपातकाल धर्म कार्य के लिए समृद्धि काल है, इसलिए हमें अपने तन, मन, धन का त्याग कर सत् में रहने का प्रयास करना है, मन को शुद्ध बनाने तथा सतत कृतज्ञभाव में रहने का प्रयास करना है ।’’

अंत में श्रीमती प्राची जुवेकर ने गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर वे सेवा के कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं, इसके विषय में बताया । इस प्रकार समारोह का समापन अत्यंत ही भावपूर्ण तथा चैतन्यमय वातावरण में हुआ । कार्यक्रम का सूत्रसंचालन कु. मधुलिका शर्मा ने किया । इस समारोह का लाभ १९४ जिज्ञासुओं ने उठाया ।

क्षणिकाएं : सत्संग में जिज्ञासुओं द्वारा बताए अनुभव वैशिष्ट्यपूर्ण थे ।