एन.सी.ई.आर.टी. के पास उसके पुस्तक में सती प्रथा के संदर्भ में दी गई अनुचित जानकारी का प्रमाण नहीं !

  • सूचना के अधिकार से एन.सी.ई.आर.टी. का झूठ पुनः उजागर !

  • ‘महिलाएं शिक्षित हुईं, तो वे विधवा हो जाएंगी’ ; ऐसा भारत में बोले जाने का किया था दावा !

केंद्र की भाजपा सरकार को उसकी कार्यकक्षा में आनेवाली एन.सी.ई.आर.टी. का हिन्दू-द्वेष रोकने हेतु प्रयास करना चाहिए ; यह हिन्दुओं की अपेक्षा है !

नई दिल्ली : राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण (एन.सी.ई.आर.टी.) की पुस्तक में सती प्रथा कब से आरंभ हुई, इसका इतिहास दिया गया है । सूचना के अधिकार के अंतर्गत इसके प्रमाण मांगे जाने पर एन.सी.ई.आर.टी. ने, ‘हमारे पास इसके कोई प्रमाण नहीं है’, यह उत्तर दिए जाने की घटना सामने आई है । सामाजिक कार्यकर्ता विवेक पाण्डेय ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत यह जानकारी मांगी थी ।

१. एन.सी.ई.आर.टी. की ८वीं कक्षा के ‘वुमन : कास्ट एन्ड रिफॉर्म्स पाठ’ में सती प्रथा के संदर्भ में जानकारी दी गई है । इसमें ऐसा कहा गया है, कि भारत के कुछ क्षेत्रों में जो विधवाएं उनके पति के निधन के उपरांत उसकी चिता में स्वयं को समर्पित कर प्राण त्याग देती थीं, उनकी प्रशंसा की जाती थी । उस समय विधवाओं के संपत्ति अधिकारों पर भी प्रतिबंध था । महिलाओं को शिक्षा भी नहीं दी जाती थी । देश के कुछ भागों में तो ऐसा माना जाता था कि महिलाएं शिक्षित हुईं, तो विधवा बन जाएंगी । (इस प्रकार से जानबूझकर हिन्दुओं के धर्मशास्त्र में न होनेवाली प्रथा के संदर्भ में अनुचित जानकारी फैलाकर हिन्दू धर्म को बदनाम करने का ही यह प्रयास है । हिन्दुत्वनिष्ठ और धार्मिक संस्थाओं को इसका वैधानिक पद्धति से विरोध कर इस जानकारी को हटाने का प्रयास किया जाना चाहिए ! – संपादक)

एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तक में इससे पूर्व के आपत्ति-जनक पाठ एवं लेखन !

१. एन.सी.ई.आर.टी. की १२वीं कक्षा की पुस्तक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने युद्ध काल में हिन्दुओं के क्षति ग्रस्त मंदिरों का नवीनीकरण करने के लिए आर्थिक प्रबंध किया था ; ऐसा कहा है । इस संदर्भ में एन.सी.ई.आर.टी. से प्रमाण मांगे जाने पर वे नहीं दे पाए थे ।

२. एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तक में कुतुबुद्दीन ऐबक एवं इल्तुमिश ने दिल्ली के कुतुब मीनार का निर्माण किया ; ऐसा कहा गया है । इसके भी प्रमाण मांगने पर वे नहीं दे पाए थे ।

३. पहली कक्षा की पुस्तक में ‘आम की टोकरी’ नाम की कविता है । यह कविता द्विअर्थी है तथा उससे अश्लील अर्थ निकलता है ; यह बताते हुए सामाजिक माध्यमों पर उसकी आलोचना की गई थी । साथ ही, उसे पुस्तक से हटाने की मांग भी की गई थी ।

४. एन.सी.ई.आर.टी. की वर्ष २००७ में प्रकाशित की गई एक पुस्तक में निहित ‘द लिटिल बुली’ नाम के एक पाठ में एक लडके का नाम ‘हरि’ रखा गया है । वह लडकियों को चिढाता है, उन पर अपना रौब जमाता है और उन्हें छेडता है । उसके कारण सभी उससे डरते हैं और उसका द्वेष करते हैं । अंत में एक केकडा उसे काट लेता है और उसे पाठ पढाता है, ऐसा लिखा गया है । इससे भगवान विष्णु के नाम को बुरा प्रमाणित करने का प्रयास किया गया है ।