हरिद्वार (उत्तराखंड) – ‘सनातन संस्था केवल संस्था नहीं है, अपितु वह ईश्वर की वाणी है ।’ मुत्तुरू, कर्नाटक की सच्चिदानंद वेद वेदांत पाठशाला के स्वामी बोधानंदेंद्र सरस्वती महाराजजी ने ऐसा प्रतिपादन किया । यहां कुंभपर्व में हिन्दू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्था के संयुक्त आयोजन में ‘सनातन धर्मशिक्षा एवं हिन्दू राष्ट्र्र-जागृति केंद्र’ बनाया गया है । उसके उद़्घाटन के समय स्वामी बोधानंदेंद्र सरस्वती ऐसा बोल रहे थे । इस अवसर पर कर्नाटक के स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वतीजी एवं हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्र्रीय मार्गदर्शक सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी उपस्थित थे । इस प्रदर्शनी में मंदिरों के दर्शन, आदर्श दिनचर्या, गोरक्षा, गंगारक्षा, क्रांतिकारियों का गौरवशाली इतिहास, हिन्दू राष्ट्र्र आदि विषयों पर जानकारी देनेवाले फलक लगाए गए ।
इस समय दीपप्रज्वलन कर मंगलमय वातावरण में इस प्रदर्शनी का उद़्घाटन किया गया । शंखनाद और वेदमंत्रों के जयघोष में कार्यक्रम आरंभ किया गया । कार्यक्रम का सूत्रसंचालन समिति के मध्य प्रदेश एवं राजस्थान समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने किया । कार्यक्रम के आरंभ में संतद्वयियों को सम्मानित किया गया ।
अपने उद्धार हेतु हमें धर्मकार्य करना आवश्यक ! – स्वामी बोधानंदेंद्र सरस्वती महाराज
स्वयं धर्माचरण कर अन्यों को भी धर्माचरण करने के लिए प्रेरित किया, तो उससे अच्छे समाज का निर्माण हो सकेगा । ‘सनातन’ शब्द की उत्पत्ति वेदों से हुई है तथा यह परमात्मा की वाणी है । धर्मजागृति से संबंधित यह प्रदर्शनी बहुत अच्छी है । हिमालय में बडी संख्या में साधु-संत हैं तथा वे सभी धर्मकार्य करने आ रहे हैं । सनातन हिन्दू धर्म का विनाश नहीं हो सकता । मुसलमानों ने १ सहस्र वर्ष तक हम पर राज्य किया; परंतु तब भी कुछ नहीं हो सका । इसलिए सभी को धर्माचरण करना आवश्यक है । अपने उद्धार हेतु हमें धर्मकार्य करना आवश्यक है ।
प्रदर्शनी के माध्यम से समाज में धर्माचरण से लेकर
धर्मरक्षण तक जागृति लाने का प्रयास !- सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे
आजकल राष्ट्र्र एवं धर्म संकट में हैं । हिन्दुओं में वैचारिक भ्रम उत्पन्न किया जा रहा है । जिस राष्ट्र्र को धर्माधिष्ठित राज्यव्यवस्था प्राप्त थी, ऐसा हमारा राष्ट्र्र धर्म से दूर जाकर दिशाहीन हो रहा है । ऐसे कठिन समय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र्र-स्थापना की प्रेरणा दी है । इस प्रदर्शनी से समाज में धर्माचरण से लेकर धर्मरक्षण तक जागृति लाने का प्रयास किया जा रहा है । हिन्दू समाज धर्मशिक्षा से वंचित होने के कारण हमारे ही धर्मबंधु धर्म पर प्रश्न उठा रहे हैं । हमारे धर्म पर वैचारिक आक्रमण हो रहे हैं । इस वैचारिक आक्रमण को रोकने हेतु निश्चित रूप से यह प्रदर्शनी लाभदायक सिद्ध होगी ।
ईश्वर की पुस्तक में सर्वप्रथम धर्मकार्य करनेवाले साधकों का नाम ! – स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वतीजीस्वामी विश्वात्मानंद सरस्वतीजी ने कहा, ‘आप कार्य करते हुए आगे बढिए; साक्षात ईश्वर आपके साथ हैं । आपके सौभाग्य के कारण आपको इस धर्मप्रसार का कार्य करने का अवसर मिल रहा है, जिस पर अगली पीढी गर्व करेगी । आप यहां अपना घर छोडकर नहीं, अपितु अपने घर में आए हैं । आप बहुत ही निःस्वार्थभाव और प्रेमभाव से स्वामीजी का (परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का) कार्य कर रहे हैं । आप सभी कार्य ईश्वरेच्छा से कर रहे हैं; इसलिए आप श्रेष्ठ हैं । ईश्वर की पुस्तक में आपका नाम प्रथम स्थान पर होगा । आप पर आपके गुरुदेवजी की कृपा होने से उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम करना चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम अपनी एक संतान को धर्मकार्य हेतु प्रेरित करना चाहिए । कुंभपर्व के उपरांत ४ साधकों को हरिद्वार में धर्मप्रसार का कार्य करने हेतु रुकने का नियोजन कीजिए । मैं स्वयं उनकी व्यवस्था देखूंगा और उनके साथ रहूंगा । |