मुंबई – ‘देशभर में सरकारीकृत मंदिरों में हो रहा प्रचंड भ्रष्टाचार; लाखों एकड भूमि की हुई लूट; वर्ष २०१४ मेें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मंदिर भक्तों को पुनः सौंपने का निर्णय देकर भी उस पर अमल न होना, अनेक राज्यों में कानून बनाकर केवल हिन्दू मंदिरों का निरंतर किया जा रहा सरकारीकरण; हिन्दू मंदिरों की देवनिधि व भूमि का अन्य पंथियों में हो रहा अनावश्यक वितरण; कथित समानता और आधुनिकता के नाम पर मंदिर की प्राचीन प्रथा-परंपराआें पर लगाए गए प्रतिबंध; परंपरागत पुजारियों को हेतुतः हटाने के लिए चल रहे अभियान; धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मंदिर व्यवस्थापन में अन्य पंथीय अधिकारियों की होनेवाली नियुक्तियां; धर्मांधों द्वारा मंदिरों पर हो रहे अतिक्रमण, आक्रमण और मूर्तियों की तोडफोड आदि विविध प्रकार से देशभर के मंदिरों पर आघात कर मंदिर संस्कृति नष्ट करने का बडा षड्यंत्र चल रहा है ।
मंदिरों पर होनेवाले इन सर्व आघातों के विरुद्ध अब हिन्दुआें को संगठित होकर राष्ट्रव्यापी संघर्ष करने की आवश्यकता है’, इस प्रकार ऑनलाइन ‘मंदिर संस्कृति-रक्षा राष्ट्रीय अधिवेशन २०२१’ मेें देशभर से सहभागी हुए २२ से अधिक मान्यवरों ने अपना मनोगत व्यक्त किया । ‘मंदिर और धार्मिक संस्था महासंघ’ तथा ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ द्वारा यह पहला अधिवेशन आयोजित किया गया था ।
अमरावती स्थित ‘शिवधारा आश्रम’ के संत पू. डॉ. संतोषकुमार महाराज और सनातन संस्था के पूर्वोत्तर भारत धर्मप्रसारक पू. नीलेश सिंगबाळजी के करकमलों से दीपप्रज्वलन कर अधिवेशन प्रारंभ किया गया । इस अधिवेशन में देशभर के १००० से अधिक संत, मंदिर न्यासी, धार्मिक संस्थाआें के प्रतिनिधि, पुजारी, पुरोहित, अधिवक्ता और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के पदाधिकारी सम्मिलित हुए थे । यह अधिवेशन फेसबुक, यू-ट्यूब और टि्वटर के माध्यम से २०,४३० लोगों ने देखा । अधिवेशन के प्रारंभ में ‘मंदिर सरकारीकरण के दुष्परिणाम और मंदिरों पर हो रहे आघात’ विषय की एक दृश्यश्रव्य-चक्रिका दिखाई गई तथा अंत में मंदिर संस्कृति की रक्षा और संवर्धन करने के लिए विविध प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए ये सर्व प्रस्ताव एकमत से ‘हर हर महादेव’ के जयघोष में पारित किए गए ।
मंदिरों के धन पर २३.५% कर लगाना, ‘जिजिया कर’ से अधिक बुरा ! – सी.एस. रंगराजन्
‘‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५, २६ और २७ हिन्दुआें को हानि पहुंचाने के लिए अंतर्भूत किए गए हैं । इसके अनुच्छेद २६ द्वारा आंध्र प्रदेश के मंदिरों का धन पर २३.५ प्रतिशत कर लगाया जा रहा है । मंदिरों से इस प्रकार कर लेना ‘जिजिया कर’ से अधिक बुरा है । एक प्रकार से हिन्दुआें के साथ दोयम व्यवहार किया जा रहा है’’, ऐसा तेलंगाना के श्री बालाजी मंदिर के न्यासी श्री. सी.एस. रंगराजन ने कहा ।
इस समय श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर संरक्षण कृति समिति के प्रवक्ता ह.भ.प. रामकृष्ण वीर महाराज ने कहा कि ‘‘दर्शन के लिए पैसे मांगना मंदिर का व्यापारीकरण है तथा यह भक्तों की श्रद्धा का अपमान है; इसलिए हमने पंढरपुर में श्री विठ्ठल मंदिर में शासकीय समिति द्वारा प्रारंभ की हुई ‘वीआईपी दर्शन’ की कुप्रथा बंद करने हेतु बाध्य किया ।’’ हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि ‘‘वर्ष २०१९ में श्रीजगन्नाथपुरी मंदिर के संबंध में सुनवाई करते समय सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फटकारते हुए प्रश्न किया था कि ‘क्या सेक्युलर शासन को मंदिरों का व्यवस्थापन देखने की आवश्यकता है ?’ तब भी केंद्र और राज्य सरकारें इस संबंध में कोई कार्यवाही करते हुए दिखाई नहीं देती । देशभर के सरकारीकृत मंदिरों में हुए घोटाले रोकने के लिए हिन्दुआें को सूचना के अधिकार का उपयोग, न्यायालयीन संघर्ष, जनआंदोलन, सोशल मीडिया द्वारा प्रसार, मंदिर न्यासियों का संगठन, जनजागृति बैठकें, पत्रकार परिषदें, स्थानीय स्तर पर मंदिर रक्षा समिति की स्थापना आदि माध्यमों से संघर्ष करने की आवश्यकता है ।’’