विगत ८ मासों (महीनों) में चीनी वस्तुओंकी खरीद में ३% की वृद्धि !

  • गलवान संघर्ष के पश्चात चीनी वस्तुओं के बहिष्कार करने का आह्वान हुआ विफल !

  • परंतु, भारत से चीन को होनेवाला निर्यात २८% से न्यून हुआ !

  • इससे पता चलता है कि भारतीयों की देशभक्ति कितनी खोखली है ! जब एक ओर, चीनी साहित्य के विरुद्ध बहिष्कार की बात की जा रही थी, उसी समय दूसरी ओर, प्रसार माध्यम चीनी भ्रमणभाष एवं अन्य वस्तुओंके विज्ञापन तथा समाचार प्रसारित कर रहे थे ! ऐसी स्थिति में भारत कभी भी चीन को सबक सिखा सकता है क्या ?

  • अब तक के सभी पार्टी के शासकों द्वारा लोगों को देशभक्ति न सिखाने का ही यह परिणाम है ! जब भारतीय लोग चीन से देशभक्ति सीखेंगे, वह बहुत बड़ा शुभ दिन होगा !

नई देहली : गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई मुठभेडों में २० भारतीय सैनिक हुतात्मा गए तथा ४५ चीनी सैनिक मारे गए थे । इसके उपरांत, भारत में चीन के विरुद्ध क्रोध की लहर भडक उठी एवं विभिन्न प्रसार माध्यमों द्वारा चीनी साहित्य के बहिष्कार की मांग ने पुनः एक बार तूल पकड लिया । इसके पश्चात, केंद्र सरकार ने भी कई चीनी प्रतिष्ठानों के साथ हुए करारों को भी निरस्त कर दिया । परिणामस्वरूप, भारत के साथ चीन का व्यापार अल्प होनेकी अपेक्षा थी; परंतु वास्तव में यह देखा गया कि, इधर विगत ८ महीनों में वह अधिक रहा है। आंकडें दर्शाते है कि, इस अवधि में, भारतीयों द्वारा की गई विदेशी खरीद का १८ प्रतिशत चीन से था ।

वाणिज्य मंत्रालय की वेबसाइट पर नवंबर २०२० तक के आंकडें उपलब्ध हैं, जिसमें यह जानकारी दी गई है । वर्ष २०१९ में, यह खरीद मात्र १५ प्रतिशत थी । अर्थात, गलवान घाटी में हुए संघर्ष के पश्चात के आठ महीनों में, भारतीयों ने चीनी सामानों की खरीद में ३ प्रतिशत की वृद्धि की है। इसके विपरीत, भारत का निर्यात २८ प्रतिशत न्यून हो गया । चीन के निर्यात में भी १२ फीसदी की गिरावट आई है । इसका अर्थ यह है कि चीनी नागरिकों ने भारतीय साहित्य को लेने से नकारा, जबकि भारतीयों ने किसी भी अन्य समय की तुलना में अधिक चीनी साहित्य खरीदा ।

१. अप्रैल २०२० से नवंबर २०२० तक, भारतीयों ने १६ लाख ३३ सहस्त्र करोड रुपये का विदेशी साहित्य खरीदा, जबकि भारत ने विदेशों में १३ लाख करोड रुपये के साहित्य का विक्रय किया । इसमें १ लाख करोड रुपये से अधिक की सामग्री चीन को बेची ।

२. वर्ष २०११-१२ तक, संयुक्त अरब अमीरात भारत का सबसे बडा व्यापारिक भागीदार था; परंतु उसके पश्चात वर्ष २०१७ तक चीन ने यह स्थान बना लिया था । अगले दो वर्षों के लिए अमेरिका ने यह स्थान ले लिया और अब चीन ने पुनः यह स्थान प्राप्त कर लिया है । गत वर्ष, भारत एवं चीन के दरम्यान ३ लाख ९१ सहस्त्र रुपये का व्यापार हुआ; परंतु, इसमें चीन के पास अधिक व्यापार है, जबकि भारत का अंश न्यून है । चीन का व्यापार भारत की तुलना में १ लाख ८७ सहस्त्र रुपये से अधिक है ।