परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु प.पू. भक्‍तराज महाराजजी का प्रकट दिन

 

प.पू. भक्‍तराज महाराज

 

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी के भजनों में निहित चैतन्‍य की अनुभूति !

‘श्री अनंतानंद साईशजी के भंडारे में अनेक संत आए थे । उस दिन प.पू. बाबा (प.पू. भक्‍तराज महाराज) सवेरे आंगन में व्यासपीठ पर बैठकर भजन गा रहे थे ।

 जब भक्‍तजन भजन सुन रहे थे, तब दोपहर में अचानक एक व्‍यक्‍ति भूमि पर लोटने लगा। भजनगायन समाप्‍त होने पर, प.पू. बाबा का उस व्‍यक्‍ति को दूध पिलाने के लिए मुझे कहना: दोपहर के लगभग १२-१२.३० बजे होंगे । अनेक भक्‍त भजन सुन रहे थे । उस समय अचानक एक व्‍यक्ति भूमि पर लोटने लगा । सबके मन में प्रश्‍न उठा, ‘इन्‍हें अचानक क्‍या हो गया ?’ मैं दूर खडा था। मैं प.पू. बाबा और भूमि पर लोटनेवाले व्यक्ति की ओर देख रहा था । भजन पूरा होने पर प.पू. बाबा ने कहा, ‘‘उसे थोडा दूध पिला दो, धूप अधिक होने के कारण उसका सिर गरम हो गया होगा ।’’ मैंने उस व्यक्‍ति को पीने के लिए एक प्याला दूध दिया ।

 ‘दिसंबर महीने में ठंड होने पर भी, उस व्‍यक्‍ति का सिर किस कारण गरम हुआ होगा और प.पू. बाबा ने उस व्यक्ति को दूध पिलाने के लिए क्यों कहा’, यह विचार मन में बार-बार आना : उस समय पुराने आश्रम में २ नारंगी और १ मोसंबी के पेड थे । वह व्‍यक्ति नारंगी के पेड के नीचे बैठा था । मन में विचार आया, ‘दिसंबर महीने की कडाके की ठंड में इस व्यक्ति का सिर किस कारण गरम हुआ होगा ? प.पू. बाबा ने उसे दूध पिलाने के लिए क्यों कहा ?’ यह विचार मेरे मन से जा नहीं रहा था ।

 मैंने उस व्‍यक्‍ति को अपना परिचय दिया, तो उसने कहा, ‘शरीर में नागदेवता आते हैं; परंतु प.पू. बाबा के भजनों की चैतन्यशक्ति के कारण मैं स्वयं को संभाल न सका’, ऐसा उसका कहना: मैंने पुन: उस व्‍यक्‍ति के पास जाकर पूछा, ‘क्‍या हुआ ?’ परंतु, उन्‍होंने उत्तर नहीं दिया। उन्होंने मुझसे पूछा, ‘तू कौन है ?’ मैंने कहा, ‘‘मैं प.पू. बाबा का बेटा, रवी हूं ।’’ इसके पश्चात उन्होंने कहा, ‘‘जब भजन हो रहा था, तब मुझे बहुत असह्य कष्ट हुआ कि अपने को संभाल न सका और लोटने लगा । मेरे शरीर में नागदेवता आते हैं न; उन्हें मना भी नहीं कर सकता ! प.पू. बाबा के भजनों में स्थित चैतन्‍यशक्ति के कारण अपनेआप को संभाल न सका ।’’

 प.पू. बाबा को पता होना कि ‘इस व्‍यक्‍ति के शरीर में नागदेवता आए हैं’, इसलिए उसे दूध पिलाने के लिए कहना : उस समय मेरे ध्‍यान में आया, ‘भजन सुन रहे साधु और संतों को पता न चले’, इसके लिए प.पू. बाबा ने ‘इसे दूध पिलाओ’, यह कहकर यह विषय टाल दिया। वास्‍तविक, प.पू. बाबा समझ गए थे कि उस व्‍यक्‍ति के शरीर में नागदेवता आए हैं ।

 प.पू. बाबा की विशेषताएं ! : प.पू. बाबा की यह विशेषता थी कि वे घटना के विषय में किसी को कुछ नहीं बताते थे ।’ गुरु सब जानते हैं; परंतु वे किसी को यह नहीं जताते । यह खरे गुरु की पहचान है ! प.पू. बाबा ज्ञानी हैं; फिर भी अज्ञानी लोगों के समान आचरण करते हैं । प.पू. बाबा की शक्ति का पता आज तक किसी को नहीं लगा है ।

ऐसे थे हमारे प.पू. बाबा ! वे त्रिकालदर्शी थे । उन्‍हें जान पाना कठिन था । एक कहावत है, ‘गुरु करो जान के और पानी पिओ छान के ।’

हरि  ॐ तत्‍सत् । नर्मदे हर ।’

– श्री. रवींद्र कसरेकर (प.पू. भक्‍तराज महाराजजी के पुत्र), नाशिक, महाराष्‍ट्र. (११.२.२०१९, रात ८.५०)

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी की अपने गुरु श्री अनंतानंद साईश के प्रति दृढ श्रद्धा !

प.पू. भक्‍तराज महाराज (प.पू. बाबा) बहुत अस्‍वस्‍थ थे; इसलिए डॉक्‍टर ने उन्‍हें चिकित्‍सालय में भरती होने के लिए कहा । किंतु श्री अनंतानंद साईशजी का भंडारा होने के कारण, ‘मृत्‍यु आने पर भी भंडारा छोडकर कहीं नहीं जाऊंगा’, यह प.पू. बाबा का कहना : ‘मुझे स्‍मरण है, ‘वर्ष १९८८ में प.पू. अनंतानंद साईश का मोरटक्‍का में भंडारा था । उस समय प.पू. बाबा बहुत अस्‍वस्‍थ थे । डॉक्‍टर प.पू. बाबा को चिकित्‍सालय में भरती होने के लिए कह रहे थे । उस समय उन्‍होंने कहा, ‘‘मेरे गुरु का भंडारा है । मैं कहीं नहीं जाऊंगा । मृत्‍यु जा जाए, तो भी चलेगा ।’’ उसी समय प.पू. बाबा ने प.पू. रामजीदादा और प.पू. भाऊ बिडवई का नया नाम (रामानंद और अच्युतानंद) रखा ।

– श्री. रवींद्र कसरेकर (प.पू. भक्‍तराज महाराजजी का पुत्र), नासिक (६.१.२०१९)