- ‘हिन्दू धर्म की सीख है कि ‘ईश्वर सर्वत्र हैं, सभी में हैैं’ । इसीलिए हिन्दुओं को अन्य पंथियों का द्वेष करना नहीं सिखाया जाता ।’
- ‘कहां यंत्र द्वारा शोध कर परिवर्तित (बदले हुए) निष्कर्ष बतानेवाले वैज्ञानिक, तो कहां लाखों वर्षों पूर्व बिना यंत्र अथवा शोधन के अंतिम सत्य बतानेवाले ऋषि !’
- ‘पश्चिमी संस्कृति शरीर, मन व बुद्धि को सुख देने हेतु प्रयत्नशील रहती है; जबकि हिन्दू संस्कृति ईश्वरप्राप्ति का मार्ग दिखाती है ।’
- ‘स्वार्थ के लिए राजकीय दल बदलनेवाले सहस्रों होते हैं, परंतु संप्रदाय बदलने का विचार स्वार्थत्यागी सांप्रदायिकों के मन को एक बार भी नहीं छूता !’
- ‘स्वतंत्रताप्राप्ति से लेकर अब तक भारत में राज्य करनेवाले एक भी राजकीय दल द्वारा जनता को साधना सिखाकर सात्त्विक न बनाने से भारत में प्रतिदिन अनेक प्रकार के अपराध हो रहे हैं ।’
- ‘बुद्धिवादियों में जिज्ञासा न होने से उन्हें जितना अल्प ज्ञान (अज्ञान) है, उतने से ही संतुष्ट रहते हैं । उन्हें उससे अगले-अगले स्तर का ज्ञान कुछ भी समझ में नहीं आता ।’
- ‘सहस्रों वर्षों पूर्व ऋषि-मुनियों ने सृष्टि की उत्पत्ति, विश्व की रचना, सप्तलोक, सप्तपाताल, मंत्रशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र इत्यादि के संदर्भ में जो ज्ञान प्राप्त किया, वह आधुनिक वैज्ञानिकों को अब तक कणभर भी नहीं हुआ !’
- ‘शारीरिक और मानसिक बल की अपेक्षा आध्यात्मिक बल श्रेष्ठ होते हुए भी हिन्दू साधना भूल जाने के कारण चुटकीभर धर्मांध और अंग्रेजों ने कुछ वर्षों में ही संपूर्ण भारत पर राज्यकिया अब वैसा पुन: न हो; इसलिए हिन्दुओं को साधना करना अत्यंत आवश्यक है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले