‘अनेक लोग दूसरे स्थान जाते समय अपने साथ चिकित्सकीय परीक्षण ब्यौरे साथ में नहीं ले जाते । ऐसे में यदि किसी को अकस्मात ही स्वास्थ्य से संबंधित कोई समस्याएं उत्पन्न हुईं, तो उन्हें तुरंत चिकित्सक के पास जाना पडता है । ऐसी स्थिति में उनके पास पहले के चिकित्सकीय ब्यौरे नहीं होते अथवा ‘वो उनके घर में (आश्रम में) निश्चित रूप से कहां रखे हैं ?’, यह भी वे बता नहीं सकते और ये चिकित्सकीय परीक्षणों की धारिकाएं यदि साथ में भी हों, तो वे उन्हें ठीक से नहीं रखते । ऐसी स्थिति में ‘रोगी की समस्या का निदान करने, साथ ही उनका उपचार करने में बाधाएं उत्पन्न होती हैं । ऐसे प्रसंगों को टालने हेतु अपने चिकित्सकीय परीक्षणों के कागदपत्रों की एक धारिका बनाकर रखें और दूसरे स्थान जाते समय उसे साथ में लें । घर में (आश्रम में) उसे एक विशिष्ट स्थान पर रखें । ‘वह धारिका कहां है ?’, साथ में रहनेवाले साधक को यह ज्ञात होना चाहिए, जिससे आवश्यकता पडने पर रोगी ने कहीं बाहर से भी उसे दूरभाष किया, तो वह व्यक्ति उस धारिका का उपयोग कर रोगी कीे सहायता कर सकेगा ।
चिकित्सकीय कागदपत्रों की धारिका कैसे बनानी चाहिए ?
१. प्रत्येक व्यक्ति की धारिका अलग होनी चाहिए, उदाहरणार्थ पति-पत्नी की एक ही धारिका नहीं होनी चाहिए । नवजात शिशु और माता की धारिका भी अलग होना अच्छा !
२. धारिका में सबसे पुराने ब्यौरे नीचे और नए ब्यौरे सबमें ऊपर हों, इस प्रकार उन्हें लगाकर रखें ।
३. धारिका में औषधियों की रसीदें, चिकित्सालय में पैसे जमा करने की रसीदें आदि कागदपत्र नहीं होने चाहिए । इन कागदपत्रों को संभालकर रखना आवश्यक भी हो, तो उनकी एक स्वतंत्र धारिका बनाएं । इसके साथ ही इन कागदपत्रों में, उदा. बिजली के बिल, विवाहपत्रिकाएं आदि नहीं होने चाहिए ।
४. क्ष-किरण (एक्सरे प्लेट), सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन की फिल्म्स हों, तो उनके ब्यौरों की छायाप्रति इस धारिका में और मूल प्रति फिल्म्स के पैकेट में रखें । उनकी यदि सीडीज हों, तो उन्हें एक अलग पैकेट में डालकर उस पर लिखकर रखें ।
५. वैद्यों द्वारा परीक्षण करने के उपरांत उनके निष्कर्ष के लेखनवाला कागद, चिकित्सालय द्वारा दिए गए समीक्षा के कागद (डिस्चार्ज समरी अथवा डिस्चार्ज कार्ड) इस धारिका में होने चाहिए ।
६. कुछ लोगों की बीमारियां लंबी अवधि की होती हैं; इसके कारण उनके परीक्षणों के कागद और वैद्यों के लेखन के कागदों की संख्या अधिक होती है । ऐसी स्थिति में उनकी २ स्वतंत्र धारिकाएं बनाई जा सकती हैं अथवा १ – २ वर्ष से भी अधिक अवधि के लिए उपचार और परीक्षण आदि चल रहे हों, तो उससे पहले के कागदपत्रों की स्वतंत्र धारिका बनाएं । वैद्य को प्रधानता से नई धारिका दिखाएं ।
७. कुछ लोगों के पास भिन्न बीमारियों के लिए भिन्न चिकित्सालय अथवा चिकित्सक के उपचार चलते हैं । ऐसे समय में उनकी धारिका अपनी सुविधा के अनुसार एकत्रित अथवा अलग रखनी चाहिए ।
८. रोगी यदि विविध चिकित्सा-पद्धतियों के अनुसार, उदा. एलोपैथी और आयुर्वेद के अनुसार उपचार ले रहा हो, तो उस संबंधित चिकित्सा-पद्धति के अनुसार अलग धारिका होना अच्छा रहेगा । उसके कारण संबंधित उपचारों की प्रविष्टियां स्वतंत्र रहेंगी । एक बीमारी के लिए एलोपैथी और आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा चल रही हो, तो उस बीमारी के मुख्य शीर्षक के नीचे एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों उपचार-पद्धतियों को अलग-अलग जोडें ।
९. जिन्हें संभव हो, वे इन सभी आवश्यक प्रविष्टियों के छायाचित्र खींचकर उन्हें अपने चल-दूरभाष संच (मोबाइल) में संरक्षित रखें । उससे कहीं भी जाने पर अपनेआप ही ये प्रविष्टियां साथ में रहेंगी ।
१०. अब इ-मेल द्वारा भी चिकित्सकीय ब्यौरे मिलते हैं । अतः इन्हें भ्रमणसंगणक (लैपटोप) में रखकर संगणकीय धारिका (फाइल) बना सकते हैं ।’
– डॉ. पांडुरंग मराठे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२८.११.२०२०)