बिजली पर चलनेवाला फ्रीज (रेफ्रिजरेटर) और मिट्टी से बनाए हुए फ्रीज का तुलनात्मक अध्ययन करते समय प्रतीत हुए सूत्र

आहार एवं आचार के संबंध में अद्वितीय शोधकार्य करनेवाला महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय

श्री. ऋत्‍विज ढवण

     ‘आज के इस आधुनिक युग में समाज के लोगों के लिए बिजली से संचालित उपकरण जीवन के अभिन्‍न अंग हो गए हैं । उनमें से एक है बिजली से संचालित ‘फ्रीज’ (रेफ्रिजरेटर) ! इस भागदौडभरे जीवन में पर्याप्‍त समय न होने से महिलाएं सप्‍ताह में एक ही बार बाजार से फल, सब्‍जियां और अन्‍य पदार्थ खरीदकर फ्रीज में रखती हैं और आवश्‍यकता के अनुसार उनका उपयोग करती हैं । इससे शारीरिक स्‍तर पर तो हानि होती ही है, साथ ही आध्‍यात्मिक स्‍तर पर भी उसके दुष्‍परिणाम ध्‍यान में आते हैं । प्रकृति के विरुद्ध जाकर ठंडे किए हुए पदार्थ हानिकारक होते हैं, साथ ही उनके बासी होने से उनमें समाहित पोषक तत्त्व भी निकल चुके होते हैं । इसके लिए पदार्थों को प्राकृतिक रूप से ठंडे बनाए रखने की प्राचीन काल से चली आ रही प्रक्रियाओं को अपनाना अधिक सुविधाजनक होता है । इस संदर्भ में प्रतीत सूत्र और किए गए कुछ प्रयोग यहां दिए हैं । (भाग २)

२. मिट्टी से बने फ्रीज का अन्‍न पर होनेवाला परिणाम

अ. मिट्टी के फ्रीज के विविध प्रकार : ‘मिट्टी के फ्रीज के विविध प्रकार हैं । कहीं पर मिट्टी को अलमारी का आकार दिया जाता है, तो कहीं भूमि में गड्‍ढा खोदकर उसमें मिट्टी की मटकी रखी जाती है और बाजू से रेत डालकर गड्‍ढे को भरा जाता है । उस रेत पर पानी डालकर उसे गीला किया जाता है । इस पद्धति में अंदर रखे पदार्थों को प्राकृतिक ठंडक मिलती है ।

२ आ. भूमि में विद्यमान प्राकृतिक ठंडक और गीली रेत के कारण रेत में निहित हवा अधिक ठंडी होकर मटके में रखे पदार्थों का अच्‍छी स्‍थिति में रहना : मिट्टी की मटकी का उपयोग कर बनाया गया फ्रीज अधिक अच्‍छा लगता है; क्‍योंकि मटकी को भूमि में रखने पर उसे अधिक ठंडक मिलती है और यह प्राकृतिक ठंडक लंबे समय तक टिकी भी रहती है । मटकी की बाजू से डाली गई रेत के कारण उसमें पानी लंबे समय तक टिका रहता है । रेत के मोटे कण हवा में घूमते रहते हैं और रेत गीली होने से वह हवा और ठंडी होती है । इसके कारण मटकी के अंदर का तापमान न्‍यून होने में सहायता मिलती है । इस प्रकरण में मटकी का तापमान १० अंश सेल्‍सियस तक नीचे गिर जाता है ।

२ इ. प्राकृतिक ठंडक के कारण पदार्थों का प्राकृतिक रूप से अच्‍छी स्‍थिति में रहना : मिट्टी के फ्रीज का तापमान बाहर के वातावरण की तुलना में १० से १५ अंश सेल्‍सियस से न्‍यून रहता है । उसके कारण उसमें रखी गई सब्‍जियां कुछ समय पहले से तोडी गई हों, तब भी उन्‍हें मिट्टी के फ्रीज में रखने से वो प्राकृतिक स्‍थिति में बनी रहती हैं । फ्रीज का वातावरण अति ठंडा न होने से सब्‍जियों में निहित जीवनसत्त्व भी टिके रहते हैं ।

२ ई. सामान्‍य रूप से ठंडे वातावरण में सब्‍जियों की कोशिकाआें का अच्‍छा रहना और मिट्टी की मटकी में निहित ठंडक पोषक होने के कारण मटकी से सब्‍जियों और फलों को बाहर निकालने पर भी उनका अच्‍छी स्‍थिति में रहना : मिट्टी के फ्रीज में फल अथवा सब्‍जियां रखने पर उन्‍हें प्राकृतिक ठंडक मिलने से वो लंबे समय तक टिकी रहती हैं । जैसे जब हम ठंड के ऋतु में सब्‍जियां लाते हैं, तब वे लंबे समय तक ताजी रहती हैं, यही यह प्रक्रिया है । सब्‍जियों की कोशिकाएं ठंडे वातावरण में लंबे समय तक जीवित रहती हैं; परंतु बिजली के फ्रीज में वातावरण अधिक ठंडा होने से ये कोशिकाएं जम जाती हैं । ऐसी ठंडी स्‍थिति में रखी सब्‍जियों को फ्रीज से निकालने पर वातावरण में अकस्‍मात आए बदलाव के कारण ये कोशिकाएं मर जाती हैं । इसके विपरीत मिट्टी के फ्रीज में अधिक ठंडक न होने से इसमें ऐसी प्रक्रिया नहीं होती ।

२ उ. अधिक दिनों तक सब्‍जियों और फलों को संग्रहित कर रखना अनुचित; परंतु आपातकाल के लिए उपयुक्‍त होना : इस प्रकार तैयार किए गए मिट्टी के फ्रीज में सब्‍जियां ८ से १० दिनों तक अच्‍छी रह सकती हैं; परंतु वास्‍तव में इतने दिनों तक उन्‍हें संग्रहित कर रखना अनुचित है; परंतु तब भी आपातकाल की दृष्‍टि से विचार किया जाए तो, इतने दिनों तक सब्‍जियों का टिके रहना अच्‍छा ही है ।

३. बिजली पर संचालित फ्रीज और मिट्टी के फ्रिज में ८ घंटे तक
रखे गए पदार्थों को ग्रहण करने के उपरांत दोनों में प्रतीत भेद दर्शानेवाले सूत्र

टिप्‍पणी – यहां हमारी जानकारी के अनुसार हमने मिट्टी के फ्रीज के २ प्रकार दिए हैं । मिट्टी के फ्रीज का मूल्‍य ५ सहस्र रुपए से आरंभ होता है । किसी को ऐसा फ्रीज लेना संभव न हो, तो हम मिट्टी की मटकी से भी फ्रीज बना सकते हैं ।’

     श्री. मनसुखभाई प्रजापति ने मिट्टी का फ्रीज बनाने की पद्धति का सर्वप्रथम शोध किया था । उसके लिए उन्‍होंने विविध प्रकार की मिट्टियों का मिश्रण कर अधिक समय तक पानी को पकडकर रखे, इस प्रकार की मिट्टी तैयार की थी और उसे फ्रीज का आकार दिया । उन्‍होंने इस पद्धति के ‘स्‍वामित्‍व अधिकार’ (पेटंट) प्राप्‍त किए हैं; इसलिए हमें इस पद्धति का फ्रीज बनाना कठिन हो सकता है, साथ ही पहले ऑनलाइन माध्‍यम के द्वारा इन फ्रीजों की बिक्री होती थी; परंतु अब उन्‍होंने वैसा करना बंद कर दिया है ।’

– श्री. ऋत्‍विज ढवण (पहले का ‘हॉटेल मैनेजमेंट’ का छात्र), महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (१०.९.२०२०)

     (टिप्‍पणी : इस लेख में दी गई जानकारी, आपातकाल हेतु साधक आवश्‍यक व्‍यवस्‍था कर पाएं इस दृष्‍टि से दे रहे हैं, पाठक कृपया इसका संज्ञान लें । – संकलनकर्ता)