फिल्म जगत की कथा !

     भारत की पहली बिना संवादवाली फिल्‍म ‘राजा हरिश्‍चंद्र’ ३ मई १९१३ को मुंबई में प्रदर्शित हुई और वहां से भारतीय फिल्‍म जगत का बीज बोया गया । उसकी चर्चा पूरे विश्‍व में हो रही है । दादासाहेब फाळके नामक मराठी व्‍यक्‍ति ने यह बीज बोया । पूरे देश में प्रतिवर्ष सहस्रों फिल्‍में बनती हैं । मुंबई के फिल्‍म जगत को विशेष रूप से हिन्‍दी फिल्‍म जगत को ‘बॉलीवुड’ कहा जाता है । देश के सभी फिल्‍म जगतों से प्रतिवर्ष सहस्रों करोड रुपए का व्‍यवसाय किया जाता है ।

     उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने मुंबई का भ्रमण कर मुंबई के फिल्‍म निर्माताआें, अभिनेताआें और तंत्रज्ञों से ‘नोएडा में बनाए जा रहे फिल्‍म जगत का उपयोग करने का आवाहन किया । उनके इस दौरे के कारण विवाद भी हुआ । यह तो हिन्‍दी फिल्‍म जगत को नोएडा ले जाने का षड्‍यंत्र है, यह आरोप लगाया गया । सत्ताधारी दल ने ‘हम ऐसा नहीं होने देंगे’, यह भी घोषित किया । योगी आदित्‍यनाथ ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि ‘फिल्‍म जगत कोई बटुआ नहीं है, जो कोई आकर उठा ले जाएगा ।’ इसके कारण उनका ऐसा कोई मानस नहीं है अथवा वैसा कोई कर नहीं सकता, यह स्‍पष्‍ट हुआ । राजनीतिक विश्‍लेषकों का कहना है कि यह विवाद राजनीतिक है । ऐसे विवाद होने की अपेक्षा फिल्‍म जगत अधिक परिपक्‍व और प्रगल्‍भ कैसे होगा ?, उसमें भारतीय संस्‍कृति और अध्‍यात्‍म के विषय कैसे आएंगे ? और उससे समाज का उद़्‍बोधन होकर समाज स्‍वस्‍थ और सुसंस्‍कृत कैसे बनेगा ?, इस पर चर्चा होना आवश्‍यक है । एक सभ्‍य और सुसंस्‍कृत व्‍यक्‍ति एवं समाज को ‘आज की फिल्‍में देखकर फिल्‍में बनाना ही बंद किया जाना चाहिए’, ऐसा लगेगा । ऐसा होना असंभव होने से उसमें सुधार लाने का प्रयास हो सकता है और राजनीतिक इच्‍छाशक्‍ति हो, तो वैसा हो भी सकता है ।

‘अनैतिकता’ पर आधारित ‘फिल्‍म’ नहीं बननी चाहिए !

     आज की फिल्‍मों में हिंसा, अनैतिकता, अश्‍लीलता, घिनौनापन और अपराधों का प्रदर्शन किया जाता है और उसके द्वारा उनका उदात्तीकरण भी किया जाता है । फिल्‍मों में समाज सुसंस्‍कृत हो रहा है, ऐसा कहीं-कहीं ही दिखाई देता है । केवल फिल्‍में ही नहीं, अपितु दूरदर्शन-वाहिनियों पर प्रसारित किए जानेवाले धारावाहिकों, साथ ही ‘ओटीटी एप्‍स’ पर प्रसारित वेबसीरिजों के द्वारा भी यही चल रहा है । वेब सीरिज तो इसमें बहुत आगे निकल गए हैं । समाज भले ही इन सबकी ओर मनोरंजन के रूप में देखता हो; परंतु समाजमानस पर उसका अनिष्‍ट परिणाम होकर समाज की नैतिकता रसातल को पहुंच रही है, यही चित्र दिखाई देता है । इसके लिए कुछ अपवाद भी होंगे; परंतु तब भी उसे मिलनेवाला प्रत्‍युत्तर बहुत ही थोडा है । प्रसारमाध्‍यम भी समाज के लिए घातक फिल्‍मों के विरुद्ध अपना मुंह नहीं खोलते, यह बात भी ध्‍यान में आती है । दादासाहेब फाळके की पहली फिल्‍म थी ‘राजा हरिश्‍चंद्र’ ! इस फिल्‍म में ‘राजा हरिश्‍चंद्र के स्‍वप्‍न में ऋषि ने जब उनसे उनके पूरे राज्‍य का दान मांगा, तो उन्‍होंने अपना राज्‍य भी दान में दे दिया था’, इस प्रकार से आदर्श राजा की महिमा दिखाई गई थी । आज की फिल्‍मों में दूसरों की संपत्ति को कैसे हडपना चाहिए, इसकी योजना बनानेवालों और वास्‍तव में उस प्रकार के कृत्‍य करनेवालों का चित्रण किया जाता है और उसे समाज के सामने प्रस्‍तुत किया जाता है । गुडों के जीवन पर फिल्‍में बनाकर उनका उदात्तीकरण किया जाता है । हिन्‍दू धर्म, देवता, ग्रंथ आदि का खुलेआम और अपनी इच्‍छा के अनुसार अनादर किया जाता है । फिल्‍मों में महिलाआें को भोगवस्‍तु दिखाया जाता है । इसे रोकने के लिए किसी भी दल की सरकार प्रयास नहीं करती । केवल सरकार ही नहीं, अपितु महिला आयोग अथवा अन्‍य सामाजिक संगठन भी इसके प्रति जनजागृति करने का प्रयास नहीं करते । इससे समाज का कितना पतन हुआ है अथवा समाज ने, ‘फिल्‍में तो ऐसी ही होती हैं’, इसे स्‍वीकार कर लिया है !

फिल्‍म जगत का शुद्धीकरण होना आवश्‍यक !

     जिस प्रकार फिल्‍में बनती हैं, उसी प्रकार उनमें अभिनय करनेवाले भी वैसा ही आचरण करते हैं, ऐसा दिखाई देता है । फिल्‍म जगत के अभिनेता ही अन्‍य अभिनेताआें के संदर्भ में सार्वजनिक रूप से आलोचना अथवा वक्‍तव्‍य देते हैं । ऐसा कहा जाता है कि हिन्‍दी फिल्‍म जगत पर अंतरराष्‍ट्रीय कुख्‍यात आतंकी दाऊद इब्राहिम का भी कुछ मात्रा में नियंत्रण है । इसके पहले उसके कुछ प्रमाण भी मिले थे और उसके लिए कुछ लोगों को बंदी भी बनाया गया था । फिल्‍में बनाने में दाऊद आर्थिक निवेश करता है और उसके कारण उसकी इच्‍छा के अनुसार फिल्‍में बनाई जाती हैं, ऐसे भी आरोप लगाए जाते हैं । उसके कारण मादक पदार्थ, लव जिहाद, आतंकवाद आदि का उदात्तीकरण किया जाता है । कुछ अभिनेता स्‍वयं मादक पदार्थों का सेवन करते हैं, यह अब सर्वविदित हो चुका है, साथ ही अनेक अभिनेता और अभिनेत्रियों के मध्‍य विवाहपूर्व और विवाहोत्तर शारीरिक संबंध होते हैं, यह भी दिखाई देता है । फिल्‍मों में काम मिलने के लिए अनेक युवतियों को यौन शोषण का सामना करता पडता है, अब यह भी प्रमाणित हो चुका है । फिल्‍म जगत में हिन्‍दू अभिनेत्रियों, गायिकाआें अथवा अन्‍य काम करनेवाली हिन्‍दू युवतियों को लव जिहाद के षड्‍यंत्र के अंतर्गत प्रेमजाल में फंसाते हुए भी दिखाया जाता है । यह सब देखते हुए अब फिल्‍म जगत के शुद्धीकरण की आवश्‍यकता है । समाज के शुद्धीकरण के लिए और उसे सुसंस्‍कृत बनाने के लिए यह अत्‍यंत आवश्‍यक है; क्‍योंकि फिल्‍में तो वैचारिक उद़्‍बोधन का बडा और प्रभावशाली माध्‍यम हैं । अतः प्रधानमंत्री मोदी को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए, यह हिन्‍दुआें की भावना है ।