(कहते हैं) ‘दीपावली के खाद्यपदार्थाें के कारण व्यक्ति मोटा होता है, तो क्रिसमस में बनाए जानेवाले खाद्यपदार्थ भारत को बहुत प्रिय हैं !’

सामाजिक माध्यमों से विरोध

  • ‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ समाचारपत्र का हिन्दूद्वेष !
  • सामाजिक माध्यमों से विरोध
  • प्रसारमाध्यम चतुराई से समाजमन में हिन्दू धर्म का महत्त्व किस प्रकार अल्प करते हैं, अपितु लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति किस प्रकार शंका उत्पन्न की जाती है, इससे यह ध्यान में आता है !
  • हिन्दुओं के देवी-देवता, प्रथा-परंपराएं, त्योहार, संस्कृति और धर्मग्रंथों पर निरंतर कीचड उछाला जाता है । इसके विरुद्ध हिन्दुओं को जागृत होकर व्यापक रूप में उसका संगठित विरोध करना अब समय की मांग है । इसके लिए पूरे भारत के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को सर्वत्र के हिन्दुओं में जागृति लानी चाहिए !
  • कल हिन्दुओं ने ऐसे दैनिकों का बहिष्कार किया, तो उसमें आश्चर्य कैसा ?

नई देहली : पिछले अनेक सप्ताह से विविध विज्ञापन, वेब सीरिज, फिल्म आदि के माध्यम से हिन्दू धर्म, देवता और हिन्दू संस्कृति का हो रहा अनादर रुकने का नाम नहीं ले रहा है । अब अंग्रेजी समाचारपत्र ‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ का हिन्दूद्वेष सामने आया है । उसके जालस्थल पर ‘दीपावली चरबी का त्योहार’ है, ऐसा लिखा गया है । इस लेख के द्वारा ‘इस त्योहार के कारण लोगों में मोटापा बढता है’, यह स्पष्ट संदेश दिया गया है । तो दूसरी ओर पिछले वर्ष के ‘क्रिसमस’ के समय में इसी जालस्थल पर ‘क्रिसमस में बनाए जानेवाले विशेष खाद्यपदार्थ बहुत मीठे होते हैं तथा भारत को वो बहुत प्रिय हैं’, ऐसा लिखकर उनका महत्त्व बढाया गया है ।

१. आजकल चल रही दीपावली की पृष्ठभूमि पर ‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ ने ‘फेस्टिवल ऑफ फैट्स : फ्रॉम दीयाज टू डीप-फ्राईड डेलिकसीज, दीपावली इज अ सेलिब्रेशन ऑफ ऑईल’ अर्थात ‘दीपावली मेद को बढानेवाला त्योहार है तथा दीपों से लेकर तेल में बडी मात्रा में तले जानेवाले स्वादिष्ट खाद्यपदार्थ, दीपावली तेल से मनाई जाती है’, इन शीर्षकों के माध्यम से दीपावली के प्रति एक नकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया गया है ।

२. दूसरी ओर पिछले वर्ष ‘ए शुगरी, स्वीट एक्स’मस : केरेला रमकेक, गोवाज बेबनिका एन्ड अदर डेलिकसीज इंडिया लवज ड्युरींग क्रिसमस’ अर्थात ‘मीठा क्रिसमस : भारत को बहुत प्रिय केरल का रमकेक, गोवा का बेबनिका और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन !’ शीर्षक के अंतर्गत क्रिसमस के संदर्भ में पूरे भारत में आस्था होने का संदेश देने का प्रयास किया गया था ।

३. सामाजिक माध्यमों से बडी मात्रा में इसका विरोध किया जा रहा है । इसके विरुद्ध सामाजिक माध्यमों पर ‘क्या यही है ‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ की धर्मनिरपेक्षता ?’ आदि शब्दों में इसकी आलोचना भी की जा रही है ।