परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवले

     ‘क्‍या एक भी समाचारपत्र समाज को त्‍याग करना सिखाता है ? केवल ‘सनातन प्रभात’ सिखाता है । इसलिए, ‘सनातन प्रभात’ के पाठकों की आध्‍यात्मिक प्रगति होती है, तो अन्‍य समाचारपत्रों के पाठक माया में फंसे रहते हैं ।’

     ‘अश्‍लील चलचित्र, ‘पब’, ‘लिव इन रिलेशनशिप’ जैसे विषयोंको शासकों ने मान्‍यता दी है । इससे राष्‍ट्र की जनता का चरित्र भ्रष्‍ट हो रहा है । ‘रामराज्‍य’ एवं छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘हिन्‍दवी स्‍वराज्‍य’ आदर्श था; क्‍योंकि उन राज्‍यों की प्रजा चरित्रवान थी । क्‍या आज के शासक इस तथ्‍य की ओर ध्‍यान देकर ‘चरित्रसंपन्‍न राष्‍ट्र’ बनाने के लिए प्रयत्न करेंगे ? भविष्‍य का हिन्‍दू राष्‍ट्र चरित्रसंपन्‍न लोगों का ही होगा ।’

हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना के लिए हमें भगवान का भक्‍त बनना आवश्‍यक !

     ‘श्रीराम ईश्‍वर के अवतार थे । पांडवों के समय पूर्णावतार श्रीकृष्‍ण थे । छत्रपति शिवाजी महाराज के समय समर्थ रामदासस्‍वामी थे । इससे स्‍पष्‍ट होता है कि ईश्‍वरीय राज्‍य की स्‍थापना ईश्‍वर स्‍वयं करते हैं अथवा संतों से करवाते हैं । ‘अब हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना ईश्‍वर करे अथवा वह संतों से करवाए’, इसके लिए हमें उनका भक्‍त बनना आवश्‍यक है ।’

कहां कुछ ही वर्षों में भूल जानेवाले माया के विषय, तो कहां युगों-युगों तक पढे जानेवाले अध्‍यात्‍म के ग्रंथ !

     ‘माया के विषय लोग शीघ्र भूल जाते हैं । इसलिए पहला और दूसरा विश्‍वयुद्ध ही नहीं, नोबल पुरस्‍कार प्राप्‍त करनेवाले शास्‍त्रों के नाम भी २५ से ५० वर्ष तक लोगों के स्‍मरण में नहीं रहते । इसके विपरीत, अध्‍यात्‍म का इतिहास और उसके ग्रंथ युगों-युगों तक मनुष्‍य के स्‍मरण में रहते हैं; क्‍योंकि वे मानव का मार्गदर्शन करते हैं !’

     ‘एकाध रोग न हो, इसके लिए टीकाकरण (वैक्‍सिनेशन) होता है; उसी प्रकार तीसरे विश्‍वयुद्ध के समय प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है ।’

– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले