परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधक-कलाकारों द्वारा बनाई गई देवतातत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां एवं सात्त्विक चित्रों में देवताओं के यंत्र की भांति सकारात्‍मक ऊर्जा (चैतन्‍य) होना

यज्ञ-याग संबंधी अद्वितीय अनुसंधान करनेवाला महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय

‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर (यूएएस)’ उपकरण के माध्‍यम से किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

     ‘रंगोली ६४ कलाओं में से एक कला है । यह कला घर-घर पहुंची है । त्‍योहार-समारोह में, देवालयों में और घर-घर में रंगोली बनाई जाती है । रंगोली के दो उद्देश्‍य हैं, सौंदर्य का साक्षात्‍कार और मांगल्‍य की प्राप्‍ति । जहां सात्त्विक रंगोली बनाई जाती है, वहां अपनेआप ही मंगलकारी वातावरण की निर्मिति होती है । हिन्‍दू धर्म के सभी त्‍योहार और धार्मिक विधियां, विविध देवताओं से संबंधित हैं । विशिष्‍ट त्‍योहार के दिन और विधि के समय संबंधित देवता का तत्त्व वातावरण में सदैव की अपेक्षा अधिक होता है और वह रंगोली में आकृष्‍ट होता है । प्रत्‍येक त्‍योहार के अनुसार संबंधित देवता का तत्त्व रंगोली से अधिक मात्रा में आकृष्‍ट होकर उसका सभी को लाभ हो, इस उद्देश्‍य से सनातन के साधक-कलाकारों ने परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में विविध देवताओं के तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली अनेक सात्त्विक रंगोलियां बनाई हैं । सनातन का लघुग्रंथ ‘सात्त्विक रंगोलियां’ में वे रंगोलियां दी हैं । यह सनातन की सात्त्विक रंगोलियां सनातन की साधिका कु. संध्‍या माळी ने बनाई हैं । इन रंगोलियों के कारण देवता का तत्त्व आकृष्‍ट एवं प्रक्षेपित होने के कारण वहां का वातावरण उस तत्त्व से संचारित होकर उसका सभी को लाभ होता है । देवता का तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाले यंत्र, देवता के सात्त्विक चित्र और सात्त्विक रंगोली में से प्रक्षेपित स्‍पंदनों का वैज्ञानिक अध्‍ययन करने के लिए ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा १६.१०.२०१८ को एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर (यूएएस)’ उपकरण का उपयोग किया गया । परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन, निष्‍कर्ष और अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण आगे दिया है ।

१. परीक्षण के घटकों की जानकारी

१ अ. देवता का यंत्र : यंत्र अर्थात एक विशिष्‍ट आकृतिबंध । ७ वीं शताब्‍दी में आद्य शंकराचार्य ने विविध देवताआें के तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाले विविध यंत्रों की निर्मिति की है । उनमें से ‘श्री महालक्ष्मी यंत्र’ श्री लक्ष्मीदेवी का तत्त्व अधिक आकृष्‍ट करता है तथा ‘श्रीयंत्र’ श्री दुर्गादेवी का तत्त्व अधिक आकृष्‍ट करता है ।

सनातन-निर्मित श्री लक्ष्मीदेवी का चित्र
सनातन-निर्मित श्री दुर्गादेवी का चित्र

१ आ. देवताआें के सात्त्विक चित्र : सनातन संस्‍था के साधक-कलाकारों ने परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी का सात्त्विक चित्र बनाया गया है । उसमें विशिष्‍ट देवी का तत्त्व अधिक मात्रा में है ।

 

श्री दुर्गादेवी का तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सात्त्विक रंगोली
श्री लक्ष्मीदेवी का तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सात्त्विक रंगोली

१ इ. सात्त्विक रंगोली : इन रंगोलियों में से एक रंगोली में श्री लक्ष्मीदेवी का तथा दूसरी रंगोली में श्री दुर्गादेवी का तत्त्व अधिक मात्रा में आकृष्‍ट होता है । यह रंगोलियां सनातन की कलाकार साधिका ने परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में बनाई है ।

२. परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन

२ अ. नकारात्‍मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षणों का विवेचन : श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी से संबंधित सात्त्विक रंगोलियां, यंत्र और सात्त्विक चित्रों में नकारात्‍मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।
२ आ. सकारात्‍मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षणों का विवेचन : श्री लक्ष्मीदेवी एवं श्री दुर्गादेवी से संबंधित सात्त्विक रंगोलियां, यंत्र एवं सात्त्विक चित्रों में सकारात्‍मक ऊर्जा पाई जाना

३. निष्‍कर्ष

श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी का तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सनातन-निर्मित सात्त्विक रंगोलियां और सात्त्विक चित्रों में देवियों के यंत्रों के समान सकारात्‍मक ऊर्जा (चैतन्‍य) है ।
उपर्युक्‍त सभी सूत्रों के संदर्भ में अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण ‘सूत्र ४’ में दिया है ।

४. परीक्षण के निरीक्षणों का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण

४ अ. श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी से संबंधित यंत्रों में बहुत चैतन्‍य होना : श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी से संबंधित यंत्र आद्य शंकराचार्यजी ने (अध्‍यात्‍म क्षेत्र के महात्‍मा) बनाए हैं । ७ वीं शताब्‍दी के आद्य शंकराचार्य अवतारी पुरुष थे । उनमें सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्‍पंदन समझने की क्षमता थी, इसलिए उन्‍होंने उपासकों को आध्‍यात्मिक दृष्‍टि से लाभदायक देवताओं के विविध यंत्र निर्माण किए । ये यंत्र बहुत सात्त्विक हैं, तथा इन यंत्रों में संबंधित देवतातत्त्व आकृष्‍ट करने की क्षमता है । इसलिए परीक्षण में श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी से संबंधित यंत्रों में बहुत सकारात्‍मक ऊर्जा पाई गई ।
४ आ. परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधक-कलाकारों द्वारा बनाई गई श्री लक्ष्मीदेवी और श्री दुर्गादेवी का तत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां और सात्त्विक चित्रों में देवी के यंत्र के समान ही सकारात्‍मक स्‍पंदन होना : स्‍पंदनशास्‍त्र के अनुसार किसी देवता का चित्र अथवा मूर्ति उसके मूल रूप से जितनी अधिक मिलती-जुलती होगी, उतना उस चित्र अथवा मूर्ति में उस देवता के स्‍पंदन अधिक आकृष्‍ट होते हैं । सनातन-निर्मित देवताओं के सात्त्विक चित्र साधक-चित्रकारों ने ‘केवल कला के रूपमें नहीं, अपितु ईश्‍वरप्राप्‍ति के लिए’ अर्थात ‘साधना’ स्‍वरूप तथा स्‍पंदनशास्‍त्र का अध्‍ययन कर परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा कालानुसार किए मार्गदर्शन में बनाए हैं । इसलिए उन चित्रों में विशिष्‍ट देवताओं का तत्त्व (चैतन्‍य) आया है । इसलिए वे चित्र बहुत सात्त्विक बने हैं और उन चित्रों में सकारात्‍मक ऊर्जा पाई गई । सामान्‍यत: सभी रंगोलियों में सकारात्‍मक स्‍पंदन नहीं होते । रंगोली जितनी सात्त्विक होगी, उतने उसमें सकारात्‍मक स्‍पंदन अधिक होते हैं । उसका लाभ रंगोली बनानेवाले और देखनेवाले दोनों को ही होता है । स्‍थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे अर्थात ‘सूक्ष्म’ । सात्त्विक रंगोली विकसित करते समय ‘रंगोली में देवता का तत्त्व है क्‍या ?’, यह जानने के लिए चित्रकार में सूक्ष्म के स्‍पंदन समझने की क्षमता होनी चाहिए । यह क्षमता उचित साधना से विकसित होती है । सनातन-निर्मित श्री लक्ष्मीतत्त्व और श्री दुर्गातत्त्व की रंगोलियां सनातन के साधक-कलाकारों ने परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में बनाई हैं । उसे बनाते समय उसमें संबंधित देवता का तत्त्व अधिकाधिक मात्रा में आकर्षित हो, ऐसी ही आकृतियों का प्रयोग किया है । इन रंगोलियों में विशिष्‍ट देवताआें का तत्त्व आया है । अतः उन रंगोलियों में सकारात्‍मक ऊर्जा पाई गई ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (७.१०.२०२०) इ-मेल : [email protected]