१. ‘पहले के समय में प्रजा सात्त्विक थी । अतः ऋषियों को समष्टि प्रसारकार्य नहीं करना पडता था । वर्तमान में कलियुग के अधिकतर लोग साधना नहीं करते, इसलिए संतों को समष्टि प्रसारकार्य करना पडता है !’
२. ‘हिन्दू राष्ट्र में सब कानून धर्म पर आधारित होंगे । अतः उनमें संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी । इनके पालन से समाज अपराध-मुक्त होकर साधनारत होगा !’
३. ‘वर्तमान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देवताआें का अनादर हो सकता है; परंतु राजनेताआें का नहीं ! हमें यह बदलना है !’
४. ‘धर्मशिक्षा प्राप्त कर लाखों मुसलमान धर्म के लिए त्याग करने के लिए तत्पर रहते हैं । धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दू बुद्धिजीवी बनकर स्वधर्म में दोष निकालते हैं ।’
५. ‘राजनीतिक दल ‘हम ये देंगे, वो देंगे’ ऐसा कहकर जनता को स्वार्थी बनाते हैं । इस स्वार्थ के ही कारण जनता में विवाद उत्पन्न होता है । इसके विपरीत, साधना त्याग करना सिखाती है । इससे जनता में विवाद नहीं होता; सब लोग एक परिवार के सदस्य की भांति आनंद से रहते हैं !’
६. ‘पाठशाला से महाविद्यालय तक शिक्षा में मानवता न सिखाई जाने के कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जनता को लूटनेवाले व्यापारी एवं नौकरशाह तैयार हुए !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले