कोरोना संक्रमण से देश के नागरिकों की रक्षा होने के लिए सरकार ने वर्तमान में संचारबंदी का (‘लॉकडाउन’ का) आदेश दिया है । ईश्वर कोई भी परिस्थिति हमारे भले के लिए ही निर्माण करते हैं । अनेक साधु-संतों ने बताया है कि ‘वर्तमान काल भीषण और आपत्तिजनक है ।’ अभी आए हुए संकट के माध्यम से हमें घर में रुकने का अवसर मिला है । आगामी काल के लिए शरीर और मन को तैयार करने के लिए आइए इस अवसर का लाभ उठाएं । इस परिस्थिति को मौज करने की दृष्टि से न देखते हुए स्वयं की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षमता बढाने के लिए गंभीरता से प्रयत्न करने पर आपातकाल में स्वयं के साथ देश की भी रक्षा हो सकती है ।
१. शरीर स्वस्थ रहने के लिए ‘उसमें उचित मात्रा में
प्राणशक्ति (चेतनाशक्ति) प्रवाहित होना तथा उसका नियमन होना अत्यावश्यक
हम दिनभर अर्थार्जन के लिए शरीर का उपयोग करते हैं । उसके बिना हमारा घर चलना असंभव है । व्यावहारिक दृष्टि से जिस प्रकार यह आवश्यक है, उसी प्रकार देह अर्थात शरीर चलने के लिए उसमें उचित मात्रा में प्राणशक्ति (चेतनाशक्ति) प्रवाहित होना और उसका नियमन होना अत्यावश्यक है । इसके लिए संतुलित आहार का सेवन, योग्य दिनचर्या का पालन और नियमित व्यायाम करना आवश्यक होता है । इससे चेतनाशक्ति कार्यरत रहने में सहायता मिलती है ।
२. शारीरिक क्षमता अच्छी रहने के लिए किए जानेवाले प्रयत्न
‘शारीरिक क्षमता अच्छी रहने के लिए हम क्या प्रयत्न कर सकते हैं’ इससे संबंधित जानकारी निम्नानुसार है ।
२ अ. सूर्यप्रकाश में (नरम धूप में) बैठना : पृथ्वी पर सूर्यप्रकाश पडे बिना जीवसृष्टि बनी रहना असंभव है । हम सूर्यनारायण भगवान को ‘विश्व के प्राणदाता’ संबोधित कर सकते हैं । ऐसे सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करना केवल आज के लिए नहीं; अपितु शरीर की दृष्टि से सदैव ही अत्यावश्यक है । सूर्यप्रकाश में बैठना अर्थात चैतन्य और प्राणऊर्जा की फुहार में बैठने के समान है ।
वर्तमान में ‘लॉकडाउन’ होने के कारण घर से बाहर नहीं जा पा रहे हैं, इसलिए हम नरम धूप से वंचित हैं । जिनके लिए संभव है, वे घर के सज्जे में अथवा घर में रहकर सवेरे ७.३० से ९ की अवधि में १५ से २० मिनट नरम धूप में बैठें । जब तक सहन हो, तब तक ही धूप में बैठें । उस समय सीधे सूर्य की ओर न देखें ।
२ अ १. सूर्यप्रकाश में बैठने से होनेवाले लाभ
अ. शरीर में ‘ड’ जीवनसत्त्व (विटामिन डी) निर्माण होने में सहायता मिलती है । उससे हड्डियां मजबूत होकर जोड और स्नायु सशक्त बनते हैं ।
आ. मस्तिष्क में स्थित ‘पीनियल’ ग्रंथियों का कार्य सुधरता है तथा रात को अच्छी नींद आती है ।
इ. सूर्यप्रकाश में बैठने से श्वेत कोशिकाएं त्वचा की सतह पर आकर संक्रामक रोगों से त्वचा की रक्षा होती है । सूर्य से आनेवाली अल्ट्रावायोलेट किरणों के कारण तारुण्यपीटिका (एक्ने), एक्जिमा और सोरायसिस आदि त्वचा के रोगों का निवारण होने में सहायता मिलती है ।
ई. शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है । वैज्ञानिकों के मतानुसार सौरऊर्जा के कारण शरीर की श्वेत रक्त कोशिकाएं कार्यान्वित होती हैं । इसलिए विषाणुआें के संक्रमण से रक्षा होती है ।
उ. उच्च रक्तचाप न्यून होने में सहायता मिलती है ।
२ आ. प्राणायाम करना : शरीर की चयापचय की क्रिया सुचारु रूप से होने के लिए प्राणवायु अग्नि बढाने का कार्य करती है । जिस प्रकार प्राणवायु के बिना (ऑक्सीजन के बिना) दीपक प्रज्वलित नहीं होता, उसी प्रकार प्राणवायु की न्यूनता (कमी) से शरीर की अग्नि मंद हो जाती है । प्राणायाम के कारण शरीर में प्राणवायु अधिक मात्रा में कार्यरत होती है तथा शरीर के सभी अवयवों का कार्य सुधरता है । प्राणवायु के साथ ही प्राणशक्ति ग्रहण कर वह शरीर में फैलाने का महत्कार्य प्राणायाम के माध्यम से होता है ।
२ आ १. प्राणायाम से होनेवाले कुछ चुनिंदा लाभ : अनुलोम-विलोम, कपालभाती, उज्जयी, भ्रामरी और शीतली आदि प्राणायाम करने से आगे दिए हुए लाभ हो सकते हैं ।
अ. ‘प्राणायाम के ‘कुंभक’ के कारण शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है’, ऐसा अनेक शोधों के माध्यम से सिद्ध हो रहा है । प्राणायाम से मानसिक तनाव न्यून होता है । इसलिए भी शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढने में सहायता मिलती है ।
आ. फेफडों की क्षमता बढती है ।
इ. हृदय की क्षमता बढकर रक्तसंचार सुधरता है तथा शरीर की प्राणवायु का संक्रमण सुधरता है ।
ई. प्राणायाम करते समय किए गए उच्छ्वास के माध्यम से शरीर में विद्यमान विष वायुरूप में शरीर से बाहर फेंका जाता है । इसलिए शरीर स्वच्छ और शुद्ध होता है ।
उ. मस्तिष्क को प्राणवायु अधिक मात्रा में उपलब्ध होने से एकाग्रता बढती है । अनावश्यक विचार न्यून होने में सहायता मिलती है ।
ऊ. अच्छी नींद आती है ।
ए. आयु के अनुसार उत्पन्न होनेवाला भुलक्कडपन न्यून होता है ।
ऐ. पाचनशक्ति सुधरती है ।
ओ. त्वचा की गुणवत्ता बढती है ।
२ आ २. प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और योगासन करने संबंधी रूपरेखा : सूर्यनमस्कार और योगासन शरीर द्वारा ग्रहण की गई प्राणशक्ति को शरीर में सर्वत्र व्यवस्थित फैलाने का उत्तम कार्य करते हैं । इससे अकडे हुए स्नायु खुल जाते हैं और उनका बल भी बढता है । व्यायाम अथवा आसन करने से पहले शरीर में उत्साह उत्पन्न होने के लिए (‘वॉर्म अप’ के लिए) सूर्यनमस्कार एक उत्तम माध्यम है । प्रतिदिन न्यूनतम ३० मिनट व्यायाम अथवा योगासन और १० से १२ मिनट प्राणायाम करने के लिए समय दीजिए । इसकी रूपरेखा निम्नानुसार रख सकते हैं ।
अ. प्राणायाम – १० मिनट
आ. शरीर का तापमान बढानेवाले व्यायाम (‘वॉर्म अप एक्सरसाइज’ इसमें ८ से १० सूर्यनमस्कार अथवा अपने स्थान पर कूदना, दौडना आदि का समावेश कर सकते हैं ।) – ५ से ७ मिनट तक उक्त दोनों धूप में बैठकर अथवा खडे रहकर कर सकते हैं ।
इ. योगासन करने की आदत न हो, तो प्रारंभ में वह १० मिनट करें और कुछ दिन पश्चात अवधि बढाते जाएं । प्रतिदिन ३० मिनट योगासन अथवा व्यायाम करना चाहिए । उसमें स्नायु मजबूत करने और शरीर का लचीलापन बढाने के व्यायाम करने चाहिए । वर्तमान में अंतरजाल पर (इंटरनेट पर) विविध आसन और व्यायाम के प्रकारों से संबंधित जानकारी उपलब्ध है । अपने परिचित योग विशेषज्ञ, वैद्य अथवा भौतिकोपचार विशेषज्ञ आदि की सहायता से उनमें से चुनिंदा व्यायाम बारी-बारी से कर सकते हैं ।
ई. ५ मिनट स्नायुआें को विश्राम देनेवाले व्यायाम अथवा आसन (कूल डाउन एक्सरसाइज), उदा. शवासन आदि का समावेश कर सकते हैं ।
इसके अतिरिक्त घर में ही शरीर की गतिविधि होने के लिए जानबूझकर निश्चित कर साधारणरूप से ५ मिनट आगे, ५ मिनट पीछे और ५ मिनट बाजू में इस पद्धति से चलें । इस प्रकार दिन में २ – ३ बार करने से शरीर की गतिविधि में सहायता मिलती है ।
२ आ ३. दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखने और वीडियो गेम खेलने से छोटे बच्चों के शरीर और मन की होनेवाली हानि टालने के लिए उनसे विविध व्यायाम के प्रकार करवा लें ! : आजकल छोटे बच्चे अधिक समय तक दूरदर्शन (टीवी) पर कार्यक्रम देखते हैं और वीडियो गेम खेलते हैं । अभिभावकों को अपने बच्चों से ‘घर के काम में सहायता लेना, उनसे रस्सी कुदवाना, उठक-बैठक करवाना, लटकना, एक ही स्थान पर दौडना, लंगडी करते हुए एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाना, मेंढक कूद करना’ आदि व्यायाम बीच-बीच में करवाने चाहिए । इससे दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखने और वीडियो गेम खेलने के माध्यम से बच्चों के शरीर और मन की होनेवाली हानि टल सकती है ।
२ इ. बिंदुदाब (रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए) : शरीर के कुछ विशिष्ट बिंदु दबाने से चेतनाशक्ति विशिष्ट अवयवों की ओर कार्यरत कर सकते हैं । वर्तमान में अत्यावश्यक रोगप्रतिरोधक शक्ति बढाने के लिए आगे दिए गए बिंदु दिन में तीन बार एक-एक मिनट दबाएं ।
अ. कोहनी मोडने पर जहां उसका मोड समाप्त होता है, वहां के बाहरी ओर
आ. घुटनों के जोड से ४ उंगली नीचे और हड्डी के एक उंगली बाहर की ओर
इ. पैरों के भीतर की ओर टखने की हड्डी से ४ उंगली ऊपर और हड्डी के पीछे
ई. अंगूठा और तर्जनी के बीच गड्ढे में तर्जनी की हड्डी के मध्य पर मांसल भाग में दबाएं
ये सभी बिंदु अंगूठे से दबाकर १ मिनट घडी की सुई की दिशा में गोलाकार घुमाएं ।
३. मनुष्य का चलना-फिरना कम होकर एक स्थान पर खडे रहने और
बैठने की मात्रा बढने पर उसका परिणाम शरीर पर होकर कालांतर से विविध कष्ट उत्पन्न होना
शरीर के अवयवों के होनेवाले उपयोग के अनुसार शरीर को मिलनेवाली चेतनाशक्ति और प्राणवायु संबंधित अवयव में सक्रिय होती है । हमारी गतिविधि अधिक होगी, तो स्नायु और मांसपेशियों में अधिक मात्रा में चेतनाशक्ति कार्यरत होकर उनकी क्षमता बढती है । जब हमारा चलना-फिरना न्यून होकर एक स्थान पर खडे रहने तथा बैठने की मात्रा बढती है, तब उसका परिणाम हमारी रक्तसंचार संस्था, श्वसन संस्था, जोड एवं स्नायुआें पर होकर उनकी क्षमता न्यून होने लगती है । व्यायाम के अभाव के कारण ‘स्नायु अकडना, स्नायु की कमजोरी, जोडों पर तनाव बढकर वे शीघ्र घिसते हैं और वेदना की मात्रा बढने लगती है । शारीरिक स्थिति दुर्बल होने से अनेक चोटें और जोडों की बीमारियां उत्पन्न होती हैं । कोई भी काम करते समय शरीर के अयोग्य ढांचे और कृति के कारण स्नायुआें को अचानक झटका लगना, उन्हें चोट पहुंचना, मेरुदंड की अस्थि अपने स्थान से हटने के कारण नसें दबना, हाथ-पैरों में वेदना होता, सुन्न पडना आदि कष्ट बढने लगते हैं ।
३ अ. उक्त कष्ट टालने के लिए काम करते समय अपनाने योग्य कुछ नियम और किए जानेवाले व्यायाम : योग्य व्यायाम और उसके साथ काम करने की पद्धति के नियमों का पालन करने से उक्त कष्ट टाले जा सकते हैं । हम कौन से काम करते समय कौन से नियमों का पालन कर सकते हैं ?, इससे संबंधित जानकारी आगे दी है ।
३ अ १. निरंतर खडे रहकर काम करते समय : बर्तन साफ करना, रसोई बनाना, कपडे धोना, इस्त्री करना आदि काम निरंतर खडे रहकर करने पडते हैं । उस समय आगे दिए गए नियमों का पालन करना चाहिए ।
अ. निरंतर खडे रहकर काम करते समय दोनों पैरों में थोडा अंतर रखकर खडे रहना चाहिए । थोडे समय दोनों पैरों पर समान भार रखें और बीच बीच में एक पैर का भार न्यून कर दूसरे पैर पर अधिक भार दें । इस प्रकार अलट-पलट करते रहें । इसके लिए एक पैर भूमि पर और दूसरा पैर थोडी ऊंचाई पर पीढे अथवा छोटी ऊंचाई के स्टूल पर रखकर एक के पश्चात एक इस पद्धति से खडे रहें ।
आ. रसोई घर का चबूतरा (प्लेटफॉर्म) अथवा पटल की ऊंचाई व्यक्ति की कोहनी तक आनी चाहिए । चबूतरा अधिक ऊंचा हो, तो पीढे पर खडे रहें ।
इ. २० से २५ बार एडियां उठाकर पंजे पर खडे रहना, यह व्यायाम दिन में २ – ३ बार करें । इससे एडी और पैरों की वेदना न्यून होगी ।
ई. कोई भी काम करते समय जिन वस्तुआें की सदैव आवश्यकता पडती है, वे वस्तुएं निकट ही रखें, जिससे उसके लिए झुकना नहीं पडेगा, उदा. छुरी, साबुन इत्यादि ।
उ. थोडा झुककर काम करना पडता हो, तो बीच-बीच में कमर से पीछे झुकें ।
ऊ. नीचे झुककर कुछ करना हो, तो घुटने मोडकर झुकें ।
३ अ २. निरंतर बैठकर काम करते समय : संगणकीय काम करना, सब्जी काटना, आटा गूंथना, दूरदर्शन के कार्यक्रम देखना आदि काम निरंतर बैठकर करने पडते हैं । उस समय आगे दिए गए नियमों का पालन करें ।
अ. गर्दन अधिक मात्रा में आगे न झुकाते हुए शरीर की रेखा में रखें ।
आ. कंधे आगे न झुकाते हुए पीछे और नीचे रखें । कंधे अपने कानों की रेखा में रखना आदर्श है ।
इ. पीठ से सीधे बैठें, जिससे अपने कान, कंधे और कमर एक रेखा में आएंगे ।
उक्त स्थिति से दूरदर्शन के कार्यक्रम देखते समय और संगणकीय काम करते समय शरीर की होनेवाली हानि टल सकती है ।
उ. ‘नीचे अधिक न झुकना पडे’, इसके लिए उपकरणों का उपयोग करें, उदा. सब्जी काटते समय नीचे पीढा रखना, लिखते समय नीचे छोटा स्टूल रखना
ऊ. बैठे-बैठे बीच-बीच में आगे दिए गए व्यायाम करें ।
१. गर्दन आगे, पीछे और बाजू में झुकाना, दायीं और बायीं ओर घुमाना
२. कंधे आगे और पीछे गोलाकार घुमाना
३. कलाई और टखने गोलाकार घुमाना
४. पैर घुटने से सीधे रखकर झुकाना
भारी काम करने हों, तो अन्यों की सहायता लें । काम आपस में बांट लें और बारी-बारी से करें ।
४. उक्त सूचनाएं साधारण लोगों के लिए हैं । जिन्हें विशिष्ट बीमारी है, उदा. तीव्र कटि वेदना (कमर दर्द), वे सूर्यनमस्कार करने से पहले अथवा व्यायाम करने से पहले चिकित्सक का परामर्श लेकर ही उक्त सूचनाआें का पालन करें ।
ईश्वर ने हमें आपातकाल की दृष्टि से ‘लॉकडाउन’ ईश्वर द्वारा इसकी पूर्वतैय्यारी का एक सुअवसर दिया है । अब ये सर्व नियम एवं व्यायाम अपनी दिनचर्या में अंतर्भूत कर संचारबंदी समाप्त होने के उपरांत भी उसे खंडित न होने दें और उन्हें नियमित करने का प्रयत्न करें ।’
– श्रीमती अक्षता रेडकर एवं श्री. निमिष म्हात्रे, भौतिकोपचार (फिजियोथेरेपी) विशेषज्ञ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (५.४.२०२०)