- अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के पास लाखों कार्यकर्ता होंगे; परंतु उनसे अपेक्षित धर्मसेवा नहीं होती; क्योंकि उनके पास, साधना न करने के कारण, आध्यात्मिक बल नहीं होता ।
- ‘समाज सात्त्विक बनने हेतु धर्मशिक्षा न देकर केवल अपराधियों को दंडित कर अपराध नहीं टाले जा सकते, इतना भी समझनेवाले आज तक के शासनकर्ता ! हिन्दू राष्ट्र में सभी को धर्मशिक्षा देने से अपराध होंगे ही नहीं !’
- ‘समाज के नैतिक पतन का प्रतिबिंब कथा, नाटक, कहानी, चलचित्र (फिल्म), दूरदर्शन के धारावाहिक इत्यादि में न दिखाते हुए, उनमें समाज को दिशा देनेवाला ‘आदर्श समाज’ दिखाना सभी को अपेक्षित है ।’ हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के लिए हमें भक्त बनना होगा !
- ‘श्रीराम स्वयं ईश्वर के अवतार थे । पांडवों के समय पूर्णावतार श्रीकृष्ण थे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी के समय समर्थ रामदासस्वामी थे । इससे ध्यान में आएगा कि ईश्वरीय राज्य की स्थापना ईश्वर स्वयं करते हैं अथवा संतों द्वारा करवा लेते हैं । ‘अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्वर करें अथवा संतों द्वारा करवा लें’, इसके लिए उनका भक्त बनना होगा ।’
- ‘जैसे कोई अंधा दृश्य का वर्णन करता है; वैसे ही धर्म का जिसे तिलमात्र भी ज्ञान नहीं, उसी प्रकार बुद्धिजीवियों का धर्म के संदर्भ में बोलना होता है ।’
- भारत में विदेशी राजनेता, बुद्धिजीवी अथवा वैज्ञानिकों के कारण नहीं आते; अपितु संतों के कारण, अध्यात्म और साधना सीखने आते हैं । ऐसा होते हुए भी हिन्दुआें को संत और अध्यात्म का मूल्य समझ में नहीं आता ।’
- ‘पैसा कमाने की तुलना में उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मनुष्य वह नहीं करता, यह आश्चर्य है !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले