वर्षश्राद्ध करने के उपरांत पितृपक्ष में भी श्राद्ध क्यों करें ?
वर्षश्राद्ध करने से व्यष्टि जबकि पितृपक्ष में श्राद्ध करने से समष्टि स्तर पर पितरों के ऋण चुकाने में सहायता होना : ‘वर्षश्राद्ध करने से उस विशिष्ट लिंगदेह को गति मिलती है, जिससे उसका प्रत्यक्ष व्यष्टि स्तर का ऋण चुकाने में सहायता मिलती है । यह हिन्दू धर्म द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर निर्धारित, ऋणमुक्ति की एक व्यष्टि उपासना ही है, जबकि पितृपक्ष में श्राद्ध कर पितरों का समष्टि स्तर पर ऋण चुकाना, समष्टि उपासना का भाग है । व्यष्टि ऋण चुकाना उस लिंगदेह के प्रति प्रत्यक्ष कर्तव्यपालन की सीख देता है, तथा समष्टि ऋण एक ही साथ व्यापक स्तर पर लेन-देन पूरा करता है ।
जिनसे हमारा घनिष्ठ संबंध होता है, ऐसे एक-दो पीढी पूर्व के पितरों का हम श्राद्ध करते हैं; क्योंकि उन पीढियों के साथ हमारा प्रत्यक्ष कर्तव्यस्वरूप संबंध रहता है । अन्य पीढियों की अपेक्षा इन पितरों में परिवार में अटके आसक्तिजनक विचारों की मात्रा अधिक होती है । अतः उनका यह प्रत्यक्ष बंधन अधिक प्रगाढ होता है; इसलिए उससे मुक्त होने के लिए व्यक्तिगत स्वरूप में वार्षिक श्राद्ध संबंधी विधि करना आवश्यक है । उसकी तुलना में उनके पूर्व के अन्य पितरों से हमारे संबंध उतने प्रगाढ नहीं होते, जिसके कारण उनके लिए पितृपक्ष विधि एकत्रित स्वरूप में करना इष्ट होता है; इसलिए वर्षश्राद्ध तथा पितृपक्ष, ये दोनों ही विधियां करना आवश्यक है ।’
पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवता का नाम जपने का महत्त्व
पितृपक्ष में ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप अधिकाधिक करने से पितरों को गति प्राप्त होने में सहायता मिलती है ।
[संदर्भ – सनातन के ग्रंथ ‘श्राद्ध (२ भाग)]