कोलकाता की साधिका श्रीमती बिपाशा प्रमाणिक ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर प्राप्‍त कर जन्‍म-मृत्‍यु के चक्र से मुक्‍त !

श्रीमती बिपाशा प्रमाणिक

कोलकाता (बंगाल) – यहां पर श्री गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर साधकों के लिए ‘ऑनलाइन’ विशेष भावसत्‍संग का आयोजन किया था । सत्‍संग मेंं साधकों ने अपने गुरुसेवा के प्रयास बढने से स्‍वयं में हुए परिवर्तन बताए । फिर श्रीमती बिपाशा प्रमाणिक ने अपने प्रयास बताना आरंभ किया । उनके प्रयास सुनकर सभी साधकों को प्रेरणा मिली । इसके उपरांत पू. श्रीमती सुनीता खेमकाजी ने घोषित किया कि सनातन की साधिका श्रीमती बिपाशा प्रमाणिक ने ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर प्राप्‍त किया है । यह आनंद वार्ता सुनकर सभी साधकों की भावजागृति हुई । इस समय बिपाशा दीदी ने अपने मनोगत में कहा कि ‘‘मैंने कोई विशेष प्रयास नहीं किए । मेरी साधना में साधकों का ही योगदान है । हर स्‍तर पर उन्‍होंने मुझे संभाला है । साधकों और गुरुदेवजी के प्रति मैं बहुत कृतज्ञ हूं ।’’ बिपाशा दीदी का ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर प्राप्‍त बेटा चि. देवप्रसाद (७ वर्ष), दीदी के पति श्री. नरेंद्र प्रमाणिक, उनकी छोटी बहन श्रीमती अर्पिता देबनाथ एवं बहन के पति श्री. सुमन्‍तो देबनाथ ने अपना मनोगत व्‍यक्‍त किया । श्रीमती अर्पिता देबनाथ ने बिपाशा प्रामाणिक का भेंटवस्‍तु देकर सत्‍कार किया । इस ऑनलाइन कार्यक्रम में सनातन संस्‍था के पू. प्रदीप खेमकाजी की वंदनीय उपस्‍थिति रही ।

साधकों को श्रीमती बिपाशा प्रामाणिक की प्रतीत गुणविशेषताएं !

‘श्रीमती बिपाशादीदी प्रामाणिक विगत १३ वर्षों से सनातन संस्‍था के मार्गदर्शन में साधना कर रही हैं । अनेक पारिवारिक समस्‍याएं होते हुए भी के गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा रखकर साधना करती हैं; इसलिए के सदैव आनंदित रहती हैं और स्‍वयं में बदलाव लाने का प्रयास करती हैं । उनके साथ सेवा करते समय मेरे ध्‍यान में आईं उनकी गुणविशेषताएं मैं गुरुदेवजी के चरणों में समर्पित करने का प्रयास कर रही हूं –

१. सदैव हंसमुख रहना 

श्रीमती बिपाशादीदी का चेहरा हंसमुख है । उन्‍हें देखकर आनंद प्रतीत होता है ।

२. खुले मन से बोलना

बिपाशादीदी को कोई समस्‍या आई अथवा कुछ कारणवश उनके मन की स्‍थिति नकारात्‍मक हुई, तो के तुरंत उत्तरदायी साधकों से खुले मन से बोलती हैं और उत्तरदायी साधकों द्वारा बताए गए प्रयास भी गंभीरता से करती हैं । स्‍वभावदोष निर्मूलन सत्‍संग में उन्‍हें बताया गया कोई सूत्र उनके ध्‍यान में नहीं आया, तो के नि:संकोच पूछ लेती हैं । कोई भी सूत्र बताते समय उनके मन में प्रतिमा के विचार नहीं होते । के निर्मलता से सभी प्रसंग बताती हैं ।

३. निरंतरता

बिपाशादीदी के प्रयासों में निरंतरता होती है । के प्रतिदिन यष्‍टि समीक्षा के ‘वॉट्‍स एप’ समूह में अपना ब्‍यौरा रखती हैं । किसी दिन किसी भी कारणवश उनके प्रयास अल्‍प हुए, तो उन्‍हें उसके प्रति बहुत खेद प्रतीत होता है ।’
– कु. मधुलिका शर्मा, जमशेदपुर (झारखंड)

४. अनुसंधान

‘गुरुदेव मेरी ओर देख रहे हैं’, यह भाव रखकर के घर के सभी काम करने का प्रयास करती हैं ।

५. सीखने की वृत्ति

बांग्‍ला भाषी हाने के कारण उन्‍हें हिन्‍दी बोलने में कठिनाई होती है; तब भी किसी सत्‍संग में कोई सूत्र पूछने पर तुरंत हिन्‍दी में ही प्रत्‍युत्तर करती हैं । कभी उन्‍हें बोलते समय हिन्‍दी शब्‍द नहीं आ रहा हो, तो साधक उन्‍हें बांग्‍ला भाषा में बोलने के लिए कहते हैं, तब के कहती हैं, ‘‘नहीं, मुझे हिन्‍दी सीखनी है’’ और के हिन्‍दी में ही बात करती हैं ।

६. सत्‍संग में बताए गए सूत्रों का तत्‍परता के साथ क्रियान्‍वयन करना

६ अ. घर को आश्रम बनाने का प्रयास करना : बिपाशादीदी को यष्‍टि साधना के सूत्र बताने पर के तुरंत उनका क्रियान्‍वयन करने का प्रयास करती हैं । एक भावसत्‍संग में ‘प्रत्‍येक को अपने घर को ही आश्रम बनाना है’, यह सूत्र बताने पर उन्‍हेंने तुरंत ही उसके अनुसार प्रयास करना आरंभ किया ।

६ आ. ‘पति के साथ झगडा कर उनसे बात न करना’ अहं का लक्षण है’, सत्‍संग में ऐसा बताने पर पति के साथ झगडा होने पर भी उनके साथ बोलना न बंद कर स्‍वयं ही उनके साथ बोलना : गुरुदेवजी की सीख के अनुसार आचरण करना है ! एक सत्‍संग में एक प्रसंग के संदर्भ में चर्चा करते समय ‘पति के साथ झगडा होने पर क्षुब्‍ध होकर कुछ दिनों तक उनके साथ बातें करना बंद करना’, अहं का लक्षण होता है’, ऐसा बताया गया था । कुछ ही दिनों में किसी विषय पर बिपाशादीदी का उनके पति के साथ झगडा हुआ । तब उनके मन में ‘मैं उनके साथ बात नहीं करूंगी’, यह विचार आया; परंतु उसी समय उन्‍हें ‘सत्‍संग में इसे अहं का लक्षण होने का बताया गया है’, इसका स्‍मरण हुआ । तब उन्‍होंने तुरंत ही गुरुदेवजी के चरणों में क्षमायाचना की और स्‍वयं ही पति के साथ बात करना आरंभ किया । यह बताते समय बिपाशादीदी को बहुत
कृतज्ञता प्रतीत हो रही थी ।

६ इ. प्रत्‍येक कृत्‍य पूरा करने का प्रयास करना : उनकी यष्‍टि साधना अच्‍छी होती है; इसलिए उन्‍हें ‘प्रत्‍येक कृत्‍य से मेरी साधना होनी चाहिए’, ऐसा लगता है और के उसके अनुसार प्रयास भी करती हैं । बिपाशादीदी ने कहा, ‘‘कभी-कभी चाय पीने के तुरंत पश्‍चात मैं चाय का गिलास धोकर नहीं रखती थी । तब मुझे लगता था, ‘अब मैं स्‍वसूचना सत्र कर रही हूं अथवा जो काम हाथ में है, उसे पूरा कर उसके पश्‍चात चाय का गिलास धोकर रखूंगी; परंतु अब मुझे ‘गुरुदेवजी को यह अच्‍छा नहीं लगेगा और मेरी साधना भी नहीं होगी’, ऐसा लगता है । अतः अब मैं चाय पीने के पश्‍चात पहले चाय का गिलास धोती हूं और उसके पश्‍चात ही अगला काम करती हूं ।’’

७. अन्‍यों का विचार करना

बिपाशादीदी से मैंने एक बार कहा, ‘‘आप मेरे साथ बांग्‍ला भाषा में बातें करें, मुझे समझ में आती है’’; परंतु मुझे बांग्‍ला समझने में समस्‍या न आए’, इस विचार से के मेरे साथ हिन्‍दी में ही बोलती हैं ।’
– श्री. शंभू गवारे (कोलकाता, पश्‍चिम बंगाल)

८. परिस्‍थिति स्‍वीकार करना

‘बिपाशादीदी का बडा लडका (देवज्‍योति) मतिमंद है । उन्‍हें उसकी बहुत चिंता होती थी । वर्ष २०१९ में के रामनाथी आश्रम गई थीं । वहां से लौटने के पश्‍चात उन्‍हें उनके बडे लडके के प्रति होनेवाली चिंता अल्‍प हो गई । अब के परिस्‍थिति स्‍वीकार कर आनंदित रहती हैं । इसके साथ ही के देवज्‍योति को नामजप और आध्‍यात्‍मिक उपाय करने के लिए प्रोत्‍साहित करती हैं ।
– कु. मधुलिका शर्मा, जमशेदपुर (१३.७.२०२०)

९. संतों के प्रति भाव !

९ अ. सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी द्वारा बिपाशादीदी को लघुसंदेश भेजकर उनका कुशलक्षेम पूछने पर पूरे दिन भावस्‍थिति का अनुभव करना : ‘गुरुपूर्णिमा से पहले सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने बिपाशादीदी को लघुसंदेश भेजकर गुरुपूर्णिमा की शुभकामनाएं दीं और ‘आप सभी कैसे हैं ?’, ऐसे कुशलक्षेम पूछा । इस प्रसंग के संदर्भ में बताते समय भी उनकी बहुत ही भावजागृति हो रही थी । उन्‍होंने बताया कि उस दिन वह संदेश मिलने से लेकर पूरे दिन मैं भावस्‍थिति का अनुभव करती रही ।’’

९ आ. भले कितनी भी समस्‍याएं क्‍यों न आएं; परंतु परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के प्रति श्रद्धा के बल पर आनंदित रहना : बिपाशादीदी के घर में बहुत समस्‍याएं होती हैं । उनके बडे लडके को आध्‍यात्‍मिक कष्‍ट भी है; परंतु किसी भी स्‍थिति में उनके मन में कभी भी नकारात्‍मक विचार नहीं आते । के सदैव आनंदित रहती हैं । ‘उनके मन में गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा होने के कारण ही उन्‍हें यह संभव होता है’, यह सीखने को मिला ।

१०. प्रतीत हुए बदलाव

१० अ. साधना की लगन बढना : ‘पिछले कुछ दिनों से बिपाशादीदी में साधना की लगन बहुत बढ गई है’, ऐसा ध्‍यान में आता है । पहले उन्‍हें नींद बहुत प्रिय थी । के दोपहर में भी सोती थीं; परंतु अब के देर रात सोने पर भी सकेरे शीघ्र जाग जाती हैं और दोपहर में भी नहीं सोतीं । इसके संदर्भ में बताते हुए उन्‍होंने कहा, ‘‘अब काल कठिन आ गया है और साधना के लिए बहुत ही अल्‍प समय बचा है ।’, ऐसा गुरुदेवजी बता रहे हैं । इसलिए अब जब भी मेरे मन में नींद के विचार आते हैं, तब मुझे इसका भान होता है कि अब मुझे नींद में समय यर्थ नहीं गंवाना चाहिए । अब मुझे अधिकाधिक साधना ही करनी चाहिए । मेरे लिए जितनी नींद आवश्‍यक है, वह मुझे रात में मिलती ही है ।

१० आ. परिवारजनों के प्रति कृतज्ञता प्रतीत होना : कुछ महीने पहले तक बिपाशीदीदी के मन में परिवार के सदस्‍यों के प्रति नकारात्‍मक विचार थे । उनके मन में पति, लडका और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों के प्रति पूर्वाग्रह था; परंतु जब से उनके यष्‍टि साधना के प्रयास बढे हैं, तब से उनके मन में सभी के प्रति सकारात्‍मकता बढी है । अब उन्‍हें परिवार के सभी सदस्‍यों के प्रति कृतज्ञता प्रतीत होती है । इस संदर्भ में के कहती हैं, ‘‘मेरे परिवार के लोग पहले से ही अच्‍छे हैं; परंतु मेरे अयोग्‍य दृष्‍टिकोणों के कारण मेरे मन में उनके प्रति नकारात्‍मकता थी ।

१० आ १. पति के प्रति प्रतीत होनेवाली कृतज्ञता : के बताती हैं, ‘‘श्री. नरेंद्र (बिपाशादीदी के पति) बहुत अच्‍छे हैं । अब के भी नामजप करते हैं । के मुझे कभी भी साधना के लिए विरोध नहीं करते । के बहुत अल्‍प बोलते हैं । आजकल के मेरी प्रशंसा करते हुए कहते हैं, ‘‘तुम सकेरे शीघ्र जागती हो और देर रात तक सेवा, घर के काम और यष्‍टि साधना करती हो । सचमुच अब तुम्‍हारी क्षमता बहुत बढ गई है ।’’

१० आ २. बडा लडका देवज्‍योति : उनके बडे बेटे देवज्‍योति के संदर्भ में  कहती हैं, ‘‘अब उसके कष्‍ट अल्‍प हुए हैं और यह सब परात्‍पर गुरुदेवजी की कृपा से ही हो रहा है । अब देवज्‍योति भी मुझे यष्‍टि साधना का ब्‍यौरा देता है ।’

१० आ ३. बडे देवर: बिपाशादीदी के बडे देवर ने कुछ दिन पूर्व उनसे संपर्क कर पूछा, ‘‘ घर में सब ठीकठाक है न ? तुम्‍हें किसी भी प्रकार की सहायता लगे, तो मुझे बताओ ।’’ इसके संदर्भ में बताते हुए बिपाशीदीदी ने कहा, ‘‘वे भी पहले से ही अच्‍छे हैं । मैं ही मेरे स्‍वभावदोषों के कारण उनकी अच्‍छाई को समझ नहीं पाई ।’’ ये सब बताते समय बिपाशादीदी बहुत अंतर्मुख हुई थीं तथा उन्‍हें उनके देवर के प्रति बहुत कृतज्ञता भी लग रही थी ।
परात्‍पर गुरुदेवजी की कृपा से हमें भाव से परिपूर्ण और गुणसंपन्‍न ऐसी साधिका के साथ सेवा करने का अवसर मिला है; इसके लिए गुरुदेवजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’
– श्री. शंभू गवारे (कोलकाता, पश्‍चिम बंगाल)
(१३.७.२०२०)