‘जम्मू-कश्मीर का आतंकी संगठन ‘हिजबुल मुजाहिदीन’ का युद्धविराम रद्द कर हिंसा आरंभ करना अनपेक्षित तो था ही नहीं ! हिजबुल मुजाहिदीन का मध्यवर्ती केंद्र इस्लामाबाद है । साथ ही इस संगठन की निर्मिति पाकिस्तान की प्रेरणा से हुई है । १९८० के दशक के आरंभ में आतंकी संगठन ‘जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ अधिकांश कश्मीरी आतंकियों का नेतृत्व कर रहा था । उसे तालिबानप्रणीत इस्लामी पुरातत्त्ववादियों का कार्यक्रम स्वीकार नहीं था । इसलिए इस संगठन ने पाकिस्तान के नियंत्रण से बाहर निकलने का प्रयास आरंभ किया । तब उस संगठन को छोडने हेतु पाकिस्तान ने ‘हिजबुल मुजाहिदीन’ नामक आतंकी संगठन स्थापित किया । हिजबुल ने पाकिस्तान को उसके ‘आकाआें’ द्वारा सौंपा गया दायित्व अचूकता से पूरा किया । जम्मू-कश्मीर लिबरेशन के कुछ नेताआें को मारकर उस संगठन को मिटाया गया । इस पृष्ठभूमि पर पाकिस्तान की प्रेरणा से संचालित संगठन द्वारा प्रस्तावित युद्धविराम को भारत ने स्वीकार ही क्यों किया ?, यह प्रश्न किसी के भी मन में उठ सकता है ।
१. हिजबुल मुजाहिदीन के युद्धविराम का प्रस्ताव भारत द्वारा स्वीकार करना और उचित समय पर चर्चा में रखी गई शर्तें अस्वीकार कर युद्धविराम कर देना
शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात विगत १० वर्षों में एक-दूसरे के साथ जन्मजात शत्रुता के संबंधवाले देश भी अब एक-दूसरे से संवाद कर रहे हैं। हिजबुल द्वारा चर्चा की तैयारी दिखाने के पश्चात भारत ने उसे स्वीकार करने की चतुराई दिखाई । इस अवधि में परदे के पीछे की गतिविधियों में अमेरिका ने हिजबुल पर शांति स्थापना हेतु बहुत दबाव डाला था । हिजबुल का पाकिस्तानवादी समूह इस दबाव का विरोध कर रहा था; परंतु प्रत्यक्ष कश्मीर घाटी में लडनेवाले आतंकियों के नेता चर्चा के लिए तैयार थे । उनके दबाव के कारण हिजबुल का प्रमुख सैय्यद सलाऊद्दीन ने युद्धविराम की घोषणा की । तब पाकिस्तान स्थित ‘यूनाइटेड काऊंसिल फॉर जेहाद’ ने तुरंत ही इस परिषद से हिजबुल को हटाया । उससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि सलाऊद्दीन के इर्द-गिर्द पाकिस्तान के गुप्तचर संगठन आईएसआई के गुप्तचरों ने घेरा डाला । अमेरिका की ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी’ ने अमेरिका की सरकार को ‘सलाऊद्दीन की जान को खतरा’ होने की चेतावनी दी । वॉशिंग्टन की विश्वविख्यात ‘ब्रुकिंग्ज इंस्टीट्यूट’ के स्टीवेन कोहेन ने एक अमेरिकी दूरचित्रवाहिनी को यह जानकारी दी और उसी समय अमरनाथ यात्रियों का हत्याकांड हुआ । तब जाकर भारत सरकार को, हिजबुल अपने वचन से मुकर जाएगा, इसका आभास हुआ था; परंतु कूटनीति की एक चाल के रूप में भारत सरकार ने चर्चा जारी ही रखी । तब हिजबुल ने अपनी नई शर्तें लगाकर अंतिम चेतावनी दी । इन शर्तों को मानना भारत के लिए संभव ही नहीं था; इसलिए युद्धविराम समाप्त होने पर उसके आगे हिंसा की अवधि अधिक जोर से आरंभ हुई ।
२. भारत को राजनैतिक स्तर पर पाकिस्तान की घेराबंदी करने हेतु व्यूहरचना करना अपेक्षित
परंतु इन गतिविधियों में २ बातें स्पष्ट हुईं, जो विश्व की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । एक यह कि इससे ‘भारत एक समझदार और शांतिप्रिय देश है’, ऐसी छवि विश्व के सामने आई । अमेरिका ने शांति की चर्चा निष्फल होने का दोष स्पष्टरूप से हिजबुल पर मढ दिया । तो दूसरी ओर हिजबुल में विभाजन होने के लक्षण दिखाई देने लगे । हिजबुल के प्रमुखों ने अमेरिकन समाचार वाहिनी ‘केबल न्यूज नेटवर्क’ (सीएनएन) को बताया कि श्रीनगर में वर्ष २००० में हमने सुरक्षाकर्मियों पर बम फेंके उसके पश्चात लष्कर-ए-तोयबा ने हमें अंधेरे में रखकर नागरिकों की जान लेनेवाला बम रखा था । यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है; परंतु उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह कि पाकिस्तान के सेनाप्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ इस्लामी पुरानपंथियों के विरुद्ध कुछ भी करने को तैयार नहीं है, यह स्पष्ट हुआ । मुशर्रफ ‘देश को विकासपथ पर ले जानेवाले एक प्रामाणिक सिपाही’, विश्व के सामने अपनी ऐसी जो प्रतिमा रख रहे थे, वह भंग हो गई । पाकिस्तान में सैन्य कानून जारी न कर समाचारपत्रों की स्वतंत्रता को सीमित मात्रा में ही क्यों न हो; परंतु अवसर देकर मुशर्रफ ने विश्व के सामने ‘मैं पाकिस्तान के पहले के सेनाप्रमुखों से अलग हूं’ की प्रतिमा रखने का प्रयास किया था । ताजा गतिविधियों को देखते हुए उस प्रयास को सफलता मिलने की तनिक भी संभावना दिखाई नहीं देती । इस पृष्ठभूमि पर भारत सरकार को अब राजनैतिक स्तर पर योजनाबद्ध पद्धति से पाकिस्तान की घेराबंदी करने की नीति बनानी चाहिए तथा अचूकता के साथ उसका क्रियान्वयन करना चाहिए ।
३. सुरक्षा बलों को प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के पास संदेहास्पद लोगों पर तत्काल गोली चलाने की स्वतंत्रता देना और ‘दगाबाज’ पुलिसकर्मियों को निलंबित करना आवश्यक
भले ही यह व्यूहरचना ठीक हो; परंतु प्रत्यक्षरूप से इस प्रतिशोध की लडाई में आतंकवादी भारतीय नागरिकों की जान ले रहे हैं और भारत सरकार की संपत्ति को बडी हानि पहुंच रही है । इस आग को बुझाने के लिए ३ स्तरों पर उपाय करने पडेंगे । पहली बात यह कि प्रत्यक्ष नियंत्रणरेखा से सटी बस्ती का नियोजनबद्ध स्थानांतरण कर न्यूनतम ३ कि.मी. गहरी और निर्जन पट्टी तैयार करनी पडेगी । उस पट्टी में किसी संदेहास्पद व्यक्ति के दिखाई देते ही सुरक्षा बलों को तत्काल उस पर गोलियां चलाने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए । संपूर्ण कश्मीर में नागरिकों के लिए अपना परिचयपत्र पास (आइ कार्ड) रखना अनिवार्य किया जाना चाहिए । प्रत्यक्ष नियंत्रणरेखा के निकट के गांव में सूर्यास्त से आधा घंटा पूर्व से सूर्योदय तक संचारबंदी लगाना आवश्यक है । उसके साथ ही गुप्तचर संगठन का जाल अधिक प्रभावशाली बनाना चाहिए । जम्मू-कश्मीर पुलिस बल में जिन पुलिसकर्मियों के ‘दगाबाज’ होने पर संदेह है, उन्हें पूरा वेतन देकर सेवामुक्त कर देना चाहिए । निलंबन में संपूर्ण वेतन देने के कारण आगे की जांच निहित समयसीमा में पूरी करने का बंधन नहीं होगा ।
४. भारत को पाकिस्तान को उच्च श्रेणी में हानि पहुंचाना अपेक्षित, सेवानिवृत्त सेनापति का मत
दूसरा स्तर पाकिस्तान का है । अब भारत को पाकिस्तान में नियंत्रितरूप में रक्तपात आरंभ करने का समय आ गया है ।
‘‘जबतक भारत पाकिस्तान को चढती श्रेणी में हानि नहीं पहुंचाता, तबतक पाकिस्तान पीछे नहीं हटनेवाला है, यह काले पत्थर पर खींची गई सफेद लकीर है ।’’ अर्थात यह कार्य कुशलता और संयम के साथ करना पडेगा । ‘ये सेनापति ईसाई हैं; इसलिए मुसलमानद्वेष के कारण वे ऐसा बोल रहे हैं’, यह तर्क कोई भी नहीं कर सकता । सरकार को उनके मत पर अवश्य विचार करना चाहिए । इस आक्रामक नीति में भारत को भी कुछ मूल्य चुकाना पडेगा, यह निश्चित है; परंतु उसे चुकाए बिना अब कोई विकल्प नहीं है, यह जनरल डिसूजा का मत है ।
५. स्थानीय प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना आवश्यक
तीसरा महत्त्वपूर्ण स्तर है स्थानीय प्रशासन में व्याप्त बडे भ्रष्टाचार को समाप्त करना । कश्मीरी जनता को यदि विकास के फल खाने को मिलें, तो निश्चितरूप से वह हिंसा का समर्थन नहीं करेगी; परंतु यह काम सरल नहीं है । अफगान एवं पठान आतंकी जीविका के लिए हिंसा पर निर्भर हैं, तो स्थानीय नेता और नौकरशाह अपनी जेबें भरने के लिए भ्रष्टाचार पर निर्भर हैं । इन प्रस्थापित हितसंबंधों को तोडते समय कठोरता दिखानी चाहिए, यह तो स्पष्ट है । कुल मिलाकर कठोर क्रियान्वयन के बिना अब कोई विकल्प नहीं है ।
६. भारत को शत्रु के प्रदेश में प्रतिकार्यवाही कर सैन्य ठिकानों को ध्वस्त करना आवश्यक
‘कुशलता एवं संयम के साथ कार्यवाही को अंजाम देने’ की कल्पना का स्पष्टीकरण पूछने पर जेनरल डिसूजा ने कहा कि वर्ष १९८३ के आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र की अधिसूचना के अनुसार पीडित देश को शत्रु के देश में प्रतिकार्यवाही करने का अधिकार है । भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह घोषित करना चाहिए । सुरक्षा परिषद इस कार्यवाही को मान्यता नहीं देगी; परंतु विरोध भी नहीं करेगी । भारत ने यदि इतनी सतर्कता बरती, तो आगे जाकर पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर दौड लगाकर वहां कुछ लीपापोती करने का अवसर नहीं मिलेगा । उसके पश्चात भारत को पाकिस्तान के केवल सैन्य ठिकाने चुन-चुनकर उन्हें ध्वस्त करना चाहिए और उसमें नागरिकों को हानि नहीं सहन करनी पडे, इसे देखना होगा ।
७. भारत को वर्तमान परिस्थितियों में पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध कार्यवाही करना अपेक्षित !
वर्ष १९७१ के युद्ध में ‘महावीर चक्र’ प्राप्त (सेवानिवृत्त) मेजर जनरल अनंत वि. नातू ने अपने अनुभव बताते हुए कहा, ‘‘जब पाकिस्तानी सेना भारत से मार खाएगी, तब वहां की जनता के मन में पाकिस्तानी सेना का जो भय है, वह समाप्त हो जाएगा और इसके फलस्वरूप अप्रत्यक्षरूप से वहां लोकतांत्रिक आंदोलन को बल मिलेगा । पाकिस्तानी सेना को मार पडने पर कश्मीरी जनता के दृष्टिकोण में भी बदलाव आएगा ।’’ युद्ध से पहले प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर स्थित गांवों के सरपंच भारतीय सेना के सामने उद्दंडता से चलते थे । मेजर जनरल नातू झुककर ‘सलाम आलेकुम’ बोलकर उनका अभिवादन करते थे । तब उनके सहयोगी सेनाधिकारी कहते थे, ‘‘आप यह क्या बोल रहे हैं ? आप उन्हें ‘जय हिन्द’ बोलने के लिए कहिए ।’’ तब नातू कहते, ‘‘आप रुकिए और आगे मजा
देखिए ।’’ उसके पश्चात जब नातू की ब्रिगेड ने टक्कर दी, तब ३ दिनों में पूरा चित्र ही बदल गया । तब कश्मीरी सरपंच केवल ‘जय हिन्द’ ही नहीं, अपितु ‘राम राम’ बोलकर नातू का अभिवादन करने लगे । जेनरल डिसूजा ने कहा कि भारत को भी तमिल टाईगर्स जैसे आत्मघाती दल तैयार करने चाहिए । मैं हिरोशिमा का नरसंहार देखनेवाला पहला भारतीय था; इसलिए कोई मुझे युद्धखोर नहीं बोल सकेगा; परंतु वर्तमान परिस्थितियों में भारत के सामने और कोई विकल्प भी नहीं है ।’
– स्व. मिलिंद गाडगीळ, वरिष्ठ युद्ध पत्रकार
(संदर्भ : विवेक, ३ सितंबर २०००)
(भारत को कश्मीर की समस्या हल करने और पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाने के लिए सरकार सेना के सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा दिए गए विकल्पों का उपयोग करे, यह राष्ट्रप्रेमी नागरिकों को अपेक्षित है । पाकिस्तान को स्थाईरूप से नष्ट करने पर ही वास्तव में कश्मीर की समस्या का समाधान होगा और उससे भारत सहित पूरे विश्व में शांति आएगी ! – संपादक)