हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का उच्च ध्येय सामने रखकर युवा शक्ति को उचित दिशा दिखानेवाले द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘एक बार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कह रहे थे कि व्यावहारिक शिक्षा का साधना में किसी काम की नहीं है ! उस समय मुझे साधना का पूर्ण रूप से ज्ञान न होने से उनके बताए उस वाक्य का मतितार्थ मेरे ध्यान में नहीं आया था । भगवान की कृपा से मैंने ‘बीसीएस’ के द्वितीय वर्ष में शिक्षा लेते समय ही पूर्णकालीन साधना करने का निर्णय लिया । उस समय ‘ईश्‍वर की कृपा से लिया हुआ निर्णय कितना उचित है और ‘व्यावहारिक शिक्षा साधना में किसी काम की नहीं है’, ये गुरुदेवजी के वचन कितने सत्य हैं !’ इसका मैं कदम-कदम पर अनुभव कर रहा हूं ।

१. व्यावहारिक शिक्षा की निरर्थकता

‘शिक्षा लेना, नौकरी करना, पैसा कमाना और मौज करना ही जीवन है’, यह विचार मेरे मन पर बचपन से ही अंकित होने के कारण स्वाभाविक रूप से मेरी तैयारी उसके अनुसार ही हुई । हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने से ‘शिक्षा लेकर अच्छे पैसे कमाकर सुख से जीवन व्यतीत करना’, यही मेरा लक्ष्य था; परंतु गुरुदेवजी की कृपा से मैं उस ओर नहीं मुडा । मैंने यदि शिक्षा पूरी कर अच्छी नौकरी कर पैसे कमाए होते, तो मेरा जीवन आर्थिक दृष्टि से अच्छा होता और मैं मायाजाल में फंसा रहता; परंतु आज मैं जिस आनंद का अनुभव कर रहा हूं, उससे मैं वंचित रहता । ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होंने अच्छी शिक्षा ली है, उनके पास पैसा है; परंतु वे संतुष्ट नहीं हैं । उनके लिए आनंद तो बहुत दूर की बात है ।

२. आश्रम में मिली शिक्षा की विशेषताएं और उससे समष्टिभिमुख व्यक्तित्व का बन जाना

इस क्षण मुझे ऐसा लगता है कि मैं शिक्षा छोडकर आश्रम आ गया और वास्तविक दृष्टि से यही मेरी शिक्षा का आरंभ हुआ ।

२ अ. राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में शिक्षा मिलना : आश्रम में मिल रही (गुरुदेवजी द्वारा दी जा रही) शिक्षा संकीर्ण नहीं है; अपितु वह राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में अर्थात समष्टि का विचार करनेवाली है । इससे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है’, इसका परिचय करवाकर दिया ।

२ आ. जब से मैं साधना में आया हूं, गुरुदेवजी ने मुझे समष्टिभिमुख तैयार किया । उनकी कृपा से मुझे सदैव ही समष्टि सेवा मिलकर मुझमें नेतृत्वगुण की वृद्धि हुई ।

२ इ. शिक्षा और पैसा न होते हुए भी आश्रम में रहने से विश्‍व की सबसे अनमोल बातों की प्राप्ति होना

१. संतुष्टता
२. श्रद्धा
३. आनंद
४. मोक्षप्राप्ति हेतु प्रयास करवाकर लेनेवाले

२ ई. सकारात्मक दृष्टिकोण देना : गुरुदेवजी ने मुझे जीवन में होनेवाले प्रत्येक प्रसंग की ओर सकारात्मकता से देखने का दृष्टिकोण दिया । इससे उन्होंने मेरे अंतर में संतुष्टता और श्रद्धा के बीज बोए और उससे ही मुझे आनंद के क्षणों का अनुभव करना संभव हुआ ।

२ उ. साधना करते समय मन के होनेवाले संघर्ष का स्वीकार कर लडने की शिक्षा देना : उनकी कृपा से ‘कोई भी प्रसंग हारने के लिए नहीं, अपितु हमें तैयार करने के लिए ही घटित होता है’, इसका अनुभव करना संभव हुआ । ‘साधना करते समय मन का संघर्ष होता है, साथ ही साधना की स्थिति भी ऊपर-नीचे होती है; परंतु हारना नहीं है, अपितु संघर्ष ही करना है’, इस शिक्षा के कारण मुझमें संघर्ष करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई ।

२ ऊ. सनातन परिवार में समष्टिभिमुख तैयारी की जाना : मैं यदि आश्रम में न रहता, तो ४ लोगों के परिवार में रहकर मेरी बनावट संकीर्ण हो जाती । गुरुदेवजी के आश्रम में आने से मेरी तैयारी २५० लोगों के परिवारवाले सनातन परिवार में समष्टिभिमुख और स्वार्थत्याग करने की दृष्टि से हुई । वर्ष २०२३ तक आज का २५० लोगों का यह परिवार हिन्दू राष्ट्र में रूपांतरित होकर वह कितना बडा परिवार बनेगा ! गुरुदेवजी ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ।’, अर्थात ‘संपूर्ण पृथ्वी ही एक परिवार है; इसलिए सभी से प्रेम करें ।’, ऐसी शिक्षा दी है ।

२ ए. गुरुदेवजी ने युवकों को हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में सम्मिलित कर उनके मन पर व्यापकता के जीवनमूल्य अंकित किए हैं ।

३. गुरुदेवजी द्वारा दी गई शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है । नौकरी करने हेतु, पैसे कमाने हेतु और मौज करने का अवसर देनेवाली शिक्षा मनुष्य को कभी भी शाश्‍वत आनंद नहीं दे सकती । आनंद प्राप्त करने के लिए साधना करना अनिवार्य
है ।

४. श्रीराम स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

रामसेतु के निर्माण में वानरों को सहभागी करवाकर उन्हें मोक्ष प्रदान करनेवाले प्रभु श्रीराम और मेरे जैसे अनेक युवकों को हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के प्रवाह में खींचकर उनका उद्धार करनेवाले गुरुदेवजी साक्षात मोक्षदायक श्रीराम ही हैं !

५. एक युवक के रूप में और मेरी साधना के अनुभव से मैं सभी युवकों का यह आवाहन करता हूं,
‘आप भी हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में यथाशक्ति योगदान कर समर्पित हों और अपना उद्धार करवा लें !’

‘हे परात्पर गुरुदेवजी, आपकी कृपा से मेरी साधना का आगे का पथक्रमण आनंददायक ही होनेवाला है, इसके प्रति मैं आश्‍वस्त हूं । हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में अपना योगदान करने का अवसर दिए जाने के लिए आपके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’
– श्री. अमोल बधाले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (९.५.२०२०)

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां
हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक