मथुरा (उत्तर प्रदेश) के सनातन के ६७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक विनय वर्मा (आयु ४१ वर्ष) का १४.७.२०२० को दोपहर ४.५० बजे निधन हुआ । उनकी मां श्रीमती पुष्पा वर्मा को ध्यान में आई विनय की गुणविशेषताएं, निधन से पूर्व उन्हें हुआ कष्ट और निधन के उपरांत ध्यान में आए सूत्र और हुईं अनुभूतियां प्रस्तुत हैं ।
१. विनय की गुणविशेषताएं
१ अ. व्यवस्थितता : ‘वह अपनी दवाईयां डिब्बे में बहुत ही व्यवस्थित रखता था । उसके द्वारा पहने गए वस्त्र मलिन नहीं होते थे । शरीर से सुगंध आती थी ।
१ आ. प्रेमभाव : उसके मन में छोटे-बडे सभी के प्रति प्रेमभाव था । उसे पक्षियों से भी प्रेम था । हमारे घर मोर-मोरनियां और अन्य पक्षी आते हैं । उन्हें समय पर दाना और रोटी डालता था । वह पक्षियों से हिलमिल गया था । पक्षियों की चहचहाहट पर विनय कहता, ‘रुको, अभी आता हूं ।’ तब वे पक्षी तुरंत चहचहाना बंद कर देते और उसके पास बैठकर दाना चुगते । कभी-कभी जब विनय सेवा करता, तब कुछ मधुमक्खियां भी आती थीं । उनके लिए वह पानी रखता ।
१ इ. सेवा की लगन : आनंदी और सदा प्रसन्न रहकर गुरुसेवा में लीन रहता था । बीमार होने पर भी वह सेवाआें में मग्न रहता था । वह हिन्दी लेखों के संकलन की सेवा कर रहा था । वह दिनभर अथक सेवा में मग्न रहता था । सवेरे ८ बजे से लेकर रात १२ अथवा २ बजे तक जागकर सेवा करता था । थकान होने पर विश्राम करता था । चल-दूरभाष पर अलार्म लगाकर वह स्वसूचना सत्र और आध्यात्मिक उपचार करता था । गुरुदेवजी की कृपा से ही वह आनंद से सेवा कर पा रहा था । १ वर्ष से उसके मुखमंडल पर तेज दिखाई देता था । ऐसा लगता ही नहीं था कि वह बीमार है ।
१ ई. व्यष्टि साधना के प्रति गंभीरता : विनय सद़्गुरु राजेंद्र शिंदेजी द्वारा बताए भावजागृति के प्रयत्न औैर स्वभावदोष-निर्मूूलन के सत्संग सुनता और उनके द्वारा बताए चक्रों पर न्यास करता था । उसे न्यास करते देख हमारी भी भावजागृति होती थी । स्वास्थ्य ठीक न होने पर उसकी सेवा कम-अधिक होती थी; परंतु बिस्तर पर बैठकर अथवा लेटे-लेटे कर्पूर के उपचार, बक्से लगाना, ग्रंथ पढना, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ पढना इत्यादि नियमित रूप से करता था । विनय के प्रयत्न देखकर कभी-कभी मन में आता था कि ‘ईश्वर उससे इतनी भाव-भक्ति से प्रयत्न करवा रहे हैं ? कभी थकान नहीं, कभी कोई दुख नहीं, चिंता नहीं ।’ विनय ने स्वयं सदैव आनंदी रहकर हममें भी साधना की लगन बढाई । गुरुदेवजी ने हमें साधना करवाकर जीवन सार्थक कैसे करें, यह बताया । ३.७.२०२० को गुरुपूर्णिमा के सत्संग में बताया था, ‘द्वैत से अद्वैत में जाना है ।’ वैसे ‘अब हमें भी इस स्थिति में जाना है, ऐसा ध्येय रखना है’, ऐसा उसने विचार किया था । ‘गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में हम तीनों ने (मैं, विनय और श्री. वर्मा) निश्चित किया कि मिलकर घर की स्वच्छता करेंगे । विनय ने ‘स्वच्छता लगन से और भावपूर्ण कैसे करनी चाहिए’, यह ध्यान में लाकर दिया । उसके साथ मेरी सेवा भी हो जाती थी ।
१ उ. सेवा करते समय मां को घरकाम में सहायता करना : अपनी सेवा और साधना के साथ-साथ मुझे भी रसोईघर में सहायता करना, बर्तन धोना, गेहूं सुखवाना, मसाले बनवाना इत्यादि में सहायता करता था । ईश्वरने ही विनय को ‘सभी सेवाएं तत्परता से करना’, यह गुण दिया था । शारीरिक क्षमता न होते हुए भी उसने ६ से १२ जुलाई तक प्रतिदिन सवेरे ८ बजे से लेकर रात १२ बजे तक की और इसके साथ ही घर के कामों में मेरी भी सहायता की । ‘सभी से प्रेम कैसे करना है’, यह हमें उससे सीखने मिला ।
१ ऊ. विनय के सान्निध्य में वेदना दूर होना : उसने मुझसे न्यास, मुद्रा और नामजप करना, सब कुछ करवा लिया । जैसे ईश्वर में गुण होते हैं, वे सभी गुण मुझे विनय में दिखाई देते थे । उसकी प्रत्येक कृति केे साथ प्रार्थना और कृतज्ञता व्यक्त होती थी । उसे देखकर, उससे बात कर अथवा कभी मेरे पैरों का स्पर्श करने पर मेरी सब पीडा दूर हो जाती थी ।
२. श्री. विनय के निधन से पूर्व हुए कष्ट
२ अ. १२.७.२०२० को हुए कष्ट : इस दिन विनय सदैव की भांति पूजाघर की सर्व सेवाएं, आरती और स्तोत्रपठन कर सेवा के लिए बैठा । उसे २ – ३ बार उलटियां हुईं । उसकी छाती में कष्ट हो रहा था । उसने उसके लिए औषधि भी ली । मैंने उसकी नजर उतारी । तब उसे थोडा अच्छा लगने लगा; परंतु कष्ट तब भी हो रहा था ।
२ आ. १३.७.२०२० को हुए कष्ट : इस दिन उसे उल्टियां हो रही थीं; इसलिए हमने उसे चिकित्सालय में भर्ती किया । उसके हृदय में पीडा हो रही थी । डॉक्टर आए और उन्होंने उसे सलाइन लगाया । विनय का रक्तचाप और हृदय की धडकनें (हार्ट पल्स) ३० – ४० तक थीं । डॉक्टर ने विनय की स्थिति देखकर बताया, ‘‘उसे पेसमेकर (हृदय को स्पंदन अथवा गति प्रदान करनेवाला यंत्र) लगाना पडेगा ।’’ उस समय हमें सूझ नहीं रहा था कि ‘क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ?’ तब सबकुछ ईश्वरेच्छा पर छोडकर उसे घर ले आए ।
२ आ ३. विनय को चिकित्सालय से घर लाते समय उसकी चप्पलों और कपडों के संदर्भ में मन में आए विचार : ‘विनय जो चप्पलें पहनता था, उन्हें हम सिर पर रखकर लेकर जाएंगे । उसके कपडे कभी भी अलग नहीं रखने चाहिए । अब हमें उसकी सभी वस्तुएं संभालकर रखनी चाहिए । ये चप्पलें मेरे परात्पर गुरुदेवजी ने धारण की हुई हैं; इसलिए वो मेरे सिर पर रखने के योग्य हैं’, ऐसा मुझे लग रहा था ।
३. निधन
१४ जुलाई को दोपहर ४ बजे तक उसे बहुत कष्ट हुए । तत्पश्चात दोपहर ४.३१ से ४.४५ की अवधि में वह छटपटाने लगा और मुझे कहने लगा, ‘‘सद़्गुरु पिंगळेजी को बताओ ।’’ तदनुसार सद़्गुरु पिंगळेजी को बताने पर उन्होंने कहा, ‘‘नामजपादि उपचार चल रहे हैं । परात्पर गुरुदेवजी ही इससे उसे मुक्त करनेवाले हैं । इसलिए हम परात्पर गुरुदेवजी से ही प्रार्थना करेंगे ।’’
कुछ समय पश्चात विनय मुझे कहने लगा, ‘‘मेरे प्राण निकल नहीं रहे हैं ।’’ उसपर मैंने उसे कहा, ‘‘तुम परात्पर गुरुदेवजी और श्रीकृष्णजी से पुकारो । वे ही तुम्हारा कष्ट न्यून कर सकते हैं ।’’ उसने एक बार ‘गुरुदेवजी’ कहा और वह तडपने लगा । उसके पश्चात उसका तडपना न्यून होकर उसकी सांस रुक गई ।
४. श्री. विनय के निधन के पश्चात प्रतीत सूत्र एवं अनुभूतियां
४ अ. विनय की छाती पर हाथ रखने पर अंदर से नामजप चलते रहने के स्पंदन प्रतीत होना : हम विनय की छाती पर हाथ रखकर सद़्गुरु गाडगीळजी द्वारा बताया ‘महाशून्य’ नामजप और मंत्रजप कर रहे थे, तब उसका भी नामजप चल रहा था । जब हमने उसकी छाती पर हाथ रखा, तब हमें उसके अंदर से नामजप चलने के स्पंदन प्रतीत हो रहे थे । उसकी छाती में व्याप्त कुछ वायु उसके मुंह के द्वारा ४ – ५ बार नामजप के साथ बाहर निकला । उसके पश्चात विनय एकदम शांत होता गया । जब तक उसका शरीर घर में था, तब तक वह मुलायम और कोमल था । वहां उपस्थित सभी को लग रहा था, ‘‘अब विनय उठकर कुछ बोलनेवाला है ।’ सभी लोग उसके गुणों का गुणगान करते हुए बोल रहे थे, ‘‘वह संत अथवा तपस्वी की भांति लग रहा है ।’’
४ आ. श्रीकृष्णजी को पुकारे जाने पर बालकृष्णजी का सूक्ष्म से आकर गोद में बैठ जाना, उसे स्वयं को हो रही पीडा बताए जाने पर उसके द्वारा उसे सुना जाना और गोद पर मस्तक रखना : उस समय मैंने परात्पर गुरुदेवजी से प्रार्थना की, ‘हे गुरुदेवजी, आप इसे अपने साथ ले जाइए ।’ उसके पश्चात मैं श्रीकृष्णजी को पुकार रही थी । तब मुझे बालकृष्णजी वहां की एक कुर्सी पर आकर बैठे हुए दिखाई दिए । मैंने बालकृष्णजी से प्रार्थना की, ‘आप मेरी गोद में बैठकर मुझे मातृत्व प्रदान करें ।’ तब वे धीरे-धीरे विनय के पास के स्थान पर आकर मेरी गोद में बैठ गए । मैंने उनका बहुत लाड-प्यार किया । मैंने उन्हें अपना दुःख बताया । तब बालकृष्णजी ने मेरी सभी व्यथाएं सुनीं और अपना मस्तक मेरी गोद पर रखा ।
४ इ. निधन के समय विनय के बाएं गाल पर ‘ॐ’ अंकित हुआ दिखाई देना और उस समय वहां श्रीकृष्णजी उपस्थित रहने की प्रतीति होना : जब विनय अपने प्राणत्याग कर रहा था, तब उसके बाएं गाल पर ‘ॐ’ अंकित हुआ । तब मेरी दृष्टि विनय पर थी । (मैंने उसका छायाचित्र खींचा, तब उसकी छाती की बाईं बाजू में भी ‘ॐ’ अंकित होने का ध्यान में आया ।) उसी समय विनय ने एक लंबी सांस ली, तब मुझे ‘स्वयं श्रीकृष्णजी यहां उपस्थित हैं और उन्होंने हमें संभाला है ।’, इसका भान हुआ । तब श्रीकृष्णजी ने मुझे कहा, ‘अब विनय मेरे साथ है ।’
४ उ. गोबर के उपले का टुकडा प्रज्वलित कर उसपर आहुति देने पर वह ४ घंटे तक जलना और उससे मधुर गंध फैलना : निधन के पश्चात दूसरे दिन गोग्रास दिया गया । तब हमने गोबर के उपले का छोटा टुकडा प्रज्वलित कर उसपर आहुति दी । वह टुकडा ४ घंटे तक जला और उसपर दी गई आहुति के कारण संपूर्ण घर में मधुर गंध फैल गई ।
४ ऊ. तेल के दीप का दूसरे दिन तक भी जलते रहना और तत्पश्चात उसमें थोडा तेल डालने पर उसका घंटों तक जलते रहना : १४.७.२०२० को विनय का अग्निसंस्कार होने के पश्चात दूसरे दिन सायंकाल तेल का दीप जलाया गया था । वह दीप दूसरे दिन सायंकाल तक जलता रहा । इसे देखकर मैंने ईश्वरेच्छा समझते हुए दीप में और थोडा सा तेल डाला । वह दीप तीसरे दिन भी अखंड रूप से जल रहा था ।
परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से ही हमें यह जीवन मिला है । ‘उनकी आज्ञा का पालन कर हमें अपनी साधना बढानी है’, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए । परात्पर गुरुदेवजी ने हमें ‘साधना कर जीवन का सार्थक कैसे कर लेना है’, इसकी शिक्षा दी; इसके लिए हम परात्पर गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञ हैं ।
‘हे परात्पर गुरुदेवजी, आपके चरणों में प्रार्थना है, ‘आपके चरणों के धूलिकणों की भांति आपके चरणकमलों को जोर से पकडकर उन्हें प्रतिक्षण वंदन करते समय हमें आपके दर्शन होकर आपका स्मरण होने दें ।’ प्रतिक्षण शरणागत रहकर मैं कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।’
– श्रीमती पुष्पा वर्मा (विनय की मां), मथुरा (२०.७.२०२०)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |