‘गरीबी होना अथवा न होना, इसके पीछे ‘प्रारब्ध’ ऐसा कुछ कारण है’, यह न जाननेवाले साम्यवाद की डींगे हांकते हैं और जो गरीब हैं अथवा नहीं है, उनमें समानता लाने का प्रयत्न करते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
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